पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/८२

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
७२
हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


मतलब की बातें डाकघर को खोजकर निकालनी पड़ती हैं और उससे समय की बहुत हानि होती है। पते में पाने वाले का नाम आदर-सूचक उपपदों के साथ लिखा जावे । उसको जो उपाधियाँ प्राप्त हो वे भी नाम के साथ लिखी जावें । निजी पत्रों में विद्या सम्बन्धी उपाधियाँ बहुधा छोड़ दी जाती हैं।

गूढ़ विषय का पत्र कभी कार्ड पर न लिखना चाहिये । आज-कल डाक महमूल दूना हो जाने के कारण लोग कार्डों का अधिक व्यवहार करने लगे हैं, परन्तु जहाँ तक हो प्रतिष्ठित लोगो को कार्ड के बदले लिफाफा ही भेजना उचित है। शिष्टाचार का एक साधारण नियम यह भी है कि कार्ड को उत्तर कार्ड में दिया जाय । यद्यपि रजिस्ट्री चिट्ठी विशेष कर मुकद्दमों के सम्बन्ध में भेजी जाती है तो भी बहुत ही आवश्यक निजी पत्र भी रजिस्ट्री करके भेजे जाते हैं । इनकी आवश्यकता तभी होती है जब चिट्टी के खो जाने का अथवा देर से मिलने का भय हो । वेरंग पत्र कभी किसी को न भेजना चाहिये। यदि समय पर टिकट कार्ड या लिफाफा न मिल सके तो इस प्रकार का पत्र भेजा जा सकता है।

जहाँ तक हो शिक्षित लोगो को पत्र अपने हाथ से लिखा जावे। यदि अस्वस्थता की अवस्था हो अथवा कार्य की अधिकता हो, तो दूसरे में पत्र लिखकर उस पर हस्ताक्षर कर देने से काम चल जाता है, तो भी इस बात का स्मरण रखना चाहिये कि साधारण अवस्था में दूसरे के हाथ से लिखाये हुए पत्र से पाने-वाले को असंतोष होता है और वह पत्र-प्रेरक को कुछ अभिमानी समझने लगता है। छपे हुए साधारण और निमत्रण पत्र को भी लोग असंतोष की दृष्टि से देखते हैं, इसलिये यदि पत्र-भेजने वाला पत्र पाने-वाले की विशेष सहानुभूति प्राप्त करना चाहे तो छपे