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पांँचवाँ अध्याय


कारते हैं कि उनके कारण दूसरे अक्षरों तक का रूप लुप्त हो जाता है। यह चित्रकारी शिष्टाचार के विरुद्ध है । लिपि में अक्षरों का सिरा बाँधना सुन्दरता का साधन है । पत्र में काटा-कूटी बहुत कम हो।

आजकल अंगरेजी शिक्षा के प्रभाव से हिन्दुस्थानी (हिन्दी- भाषी) अनेक सज्जन अपने मित्रों को ही नहीं, किन्तु अपने परिवार-वालों को भी अंगरेजी में पत्र लिखते हैं। ऐसा करना केवल अशिष्ट ही नहीं है, बरन जातीयता का विद्यातक है। जिस जाति में अपनी भाषा के प्रति आदर-बुद्धि नहीं वह जाति बिना पेंदी का घड़ा है। हाँ, यदि विद्यार्थियों की अँगरेजी योग्यता की जाँच करना अभीष्ट हो तो अवश्य ही उन्हें उस भाषा में पत्र लिखा जाय और उसका उत्तर उसी भाषा में देने के लिये उनसे आग्रह किया जाय।

पत्र में किसी बात को बहुत बढ़ाकर लिखना अनुचित है। अपना आशय स्पष्ट और संक्षिप्त रीति से प्रकट करना चाहिये । हाँ, जिस बात को विशेष रूप से समझाने की आवश्यकता हो उसे कुछ विस्तार पूर्वक लिखने में हानि नहीं । पत्र में यदि किसी मनुष्य के विरुद्ध कुछ लिखने की आवश्यकता आ पड़े तो वह केवल संकेत-रूप से लिखी जावे जिसमें आगे पीछे पत्र किसी दूसरे के हाथ में पड़ने पर मान-हानि के अभियोग की आशंका न रहे। कई एक ऐसे भी गूढ़ विषय होते हैं जो बहुधा पत्र में नहीं लिखे जाते और उनकी चर्चा भेंट होने पर ही अपने सामने हो सकती है, पर जो गूढ़ बात किसी मुकद्दमे से सम्बन्ध रखती हैं वे आवश्यकता पड़ने पर वकील या मुरत्यार को सावधानी से लिखी जा सकती हैं। जो बातें पत्र में लिखी जाती हैं वे एक प्रकार से स्थायी हो जाती हैं और अदालत में गवाही के तौर पर उपस्थित की जा सकती हैं, इसलिये कलम को कागज पर चलाने के पहिले लेखक को प्रत्येक बात दो-बार सोच लेना चाहिये । पत्र की भाषा,