न की जावे जिसमे श्रोता को उकताहट मालूम होने लगे । बात-चीत करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि बोलने-वाला बहुत देर तक अपनी ही बात न सुनाता रहे जिससे दूसरों को बोलने का अवसर न मिले और वे बोलने-वाले की बक-बक से ऊब जावे । बात चीत बहुधा संवाद के रूप में होना चाहिए जिससे श्रोता और वक्ता का अनुराग सम्भाषण के विषय में बना रहे।
सभ्य वार्तालाप में इस बात का ध्यान रखा जाता है कि किसी के जी को दुखाने-वाली कोई बात न कही जाय । सम्भाषण को, जहाँ तक हो सके, कटाक्ष, आक्षेप, व्यङ्ग, उपालम्भ और अश्लीलता से मुक्त रखना चाहिये । अधिकार को अहम्मन्वता में भी किसी के लिए कटु शब्द का प्रयोग करना अपने को असभ्य सिद्ध करना है। किसी किसी को बोलते समय बीच-बीच में क्या कहते हैं, ‘इसका क्या नाम', ‘जो है से करके', ‘राम आप का भला करे', आदि कहने का अभ्यास रहता है । ऐसे लोगो को अपनी आदत सुधारना चाहिये, पर दूसरो को उचित नहीं है कि वे उनके इन दोषों पर हॅसें । कोई लोग बात चीत में किसी बात की सभ्यता सिद्ध करने के लिए सौगंध खाया करते हैं । शिक्षित लोगों में यह दोष न होना चाहिये। यदि वे भी गुँडो के समान—‘जवानी की कसम' या ‘ईमान से' कहेंगे तो उनका हल्कापन प्रकट होगा।
किसी नये व्यक्ति के विषय में परिचय प्राप्त करने के लिए बात-
चीत में उत्सुकता प्रकट न की जावे और जब तक बड़ी आवश्यकता न हो तब तक किसी की जाति, वेतन, वंशावलि, धर्म आदि न पूछी जावे । किसी से कुछ पूछते समय प्रश्नों की झड़ी लगाना उचित नहीं । यदि कोई सजन तुम्हारा प्रश्न सुनकर भी उत्तर न दे तो फिर उससे उसके लिये अधिक आग्रह न करना चाहिए । यदि ऐसा