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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


जिससे किसी को अपनी हीनता का अनुभव होने लगे और उससे मन में खेद उत्पन्न हो। जाति-वालों के यहांँ कम से कम दो एक महीने में एक बार अवश्य जाना चाहिए । उस मनुष्य के यहाँ हमें विशेषकर जाना आवश्यक है जो हमारे यहाँ बहुधा आया करता हो । यद्यपि किसी के यहाँ बार-बार जाना अशिष्ट समझा जाता है, तथापि उसके यहाँ कभी न जाना और भी अशिष्ट है।

जाति वालों के यहांँ गमो में एक दो बार अवश्य जाना चाहिए और उनसे सहानुभूति सूचक वार्तालाप करना चाहिए । यदि उनके यहाँ स्त्रियों के भी आने-जाने का सम्बन्ध हो तो ऐसे अवसर पर स्त्रियों का जाना भी आवश्यक है। इस अवसर पर किसी के यहाँ सवारी में बैठकर जाना उचित नहीं पर यदि सवारी के बिना काम न चल सके तो उसे उस स्थान से कुछ दूरी पर छोड़ देना चाहिए और वहाँ से उसके यहाँ पैदल आना चाहिए । सारांश यह है कि ऐसा काम न किया जाय जिसमे बनावट या दिखावट दिखाई देवे।

तेवहारौ के अवसर पर जाति-वालो के यहाँ जाना बहुत आवश्यक है। ऐसे समय में इस बात को बाट न देखना चाहिए कि जब कोई हमारे यहाँ आयगा तब हम उसके यहाँ जायेंगे । यदि दोनेा पक्षों के मन में ऐसे ही विचार एक ही समय उत्पन्न हो तो उनका मिलना कभी सम्भव नहीं हो सकता । तेवहारो में जाति-वालों को भोजन कराना भी बहुत उपयुक्त है, विशेष कर बड़े लोगो को इन अवसरों पर छोटों को निमंत्रित करना चाहिए । इस प्रकार के सम्मेलन में जाति के मुखिया जाति वालों को आवश्यक उपदेश भी दे सकते हैं जिससे उनमें प्रचलित कुरीतियों का परिहार हो सके।

यदि जाति में किसी मनुष्य पर संकट उपस्थित हो जाये तो जाति-वाले प्रत्येक मनुष्य का यह कर्तव्य है कि वह अपनी