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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


में जहाँ देश-विदेश की चर्चा होती है, उस मनुष्य के मत को बहुत कम मान दिया जाता है, जिसने थोड़ा बहुत प्रवास नहीं किया। आजकल प्रवास के साधनो की बहुतायत होने से शिक्षित मनुष्यों में कोई विरला ही होगा जो अपने गांव या शहर से बाहर न गया हो।

प्रयास में या तो पूर्व प्रबन्ध से अथवा देवयोग से कुछ लोगो का साथ हो जाता है और कभी कभी यह संगति मित्रता का रूप धारण कर लेती है। प्रवास के समय इन साथियो से हमारा व्यव हार इस प्रकार का होना चाहिये कि उन्हें हमारी ओर से कोई कष्ट न पहुंचे और यदि हो सके तो हम से उन्हें उचित सहायता प्राप्त हो । इस सद्-यवहार के बदले बहुत संभव है कि हमारे वे साथी हम से भी वैसी ही सभ्यता का व्यवहार करेंगे।

प्रवासी मनुष्य को अपने साथ इतना रुपया, भोजन-सामग्री और कपड़े-लत्ते रखना चाहिए जिसमे वह किसी वस्तु के लिए दूसरो का आश्रित ( मुहताज ) न हो । यद्यपि प्रवास में कभी-कभी दूसराें से कोई एक आवश्यक वस्तु मांँगने का प्रयोजन पड़ जाता है तथापि किसी से कोई वस्तु बार-बार अथवा कई वस्तुएँ माँगना निन्दनीय समझा जाता है। अपने साथियों से बात-चीत करते समय मुंँह से ऐसी कोई बात न निकाली जावे जिससे उन्हें खेद हो अथवा आपस में झगड़े का अवसर उपस्थित हो जाय । यद्यपि प्रत्येक प्रवासी को अपने और अपने साथियों के लेन-देन का ठीक लेखा रखना उचित है, तथापि उन्हें एक दूसरे के लिए थोड़ी-बहुत आर्थिक हानि सहने का धीरज होना चाहिए।

यदि हमारा कोई प्रवासी भाई किसी जगह अचानक बीमार हो जाय अथवा किसी विपत्ति में पड़ जाय तो उस समय हमे अपनी क्षमता के अनुसार उसे सहायता देना और कुछ सा..च