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चौथा अध्याय


होता है, अतएवहिन्दुस्थानी हिन्दुओं को उसे त्याग देना चाहिए। उसके त्याग देने से उनके वेतन में संभवत कोई कमीन होगी और न वे ऊँचे पद से वज्जित रक्खे जायेंगे। साथ ही वे, समय पड़ने पर, अंँगरेजों और ईसाइयों से, जिनस नेकटाई का विशेष प्रचार है अलग समझे जा सकेंगे। पराधानावस्था में भी कुछ स्वाधीनता रख लेना गौरव का चिह्न है । नेकटाई के सिवा उन्हें टाप लगाना भी छोड़ देना चाहिए। उसके बदले साफा बांधने अथवा टापी लगाने से वे अपनी जातीयता का कम से कम एक चिह्न स्थिर रख सकेंगे। लाला लाजपतराय सरीखे सज्जनो को उनके साफेही के कारण हम लोग “अपना" समझ सकते हैं और समझ रहे हैं। ऐसे स्थान में पहुँचने पर जहाँ हमारा कोई न हो, हम केवल अपनी भाषा सुनकर और अपना भेष देखकर ही कुछ ढ़ाढ़स प्राप्त कर सकते हैं। यदि हमे यहाँ इन दोनो चिह्रो में से एक ही चिह्न मिल जावे तो भी हमारे क्रोध की सीमा न रहे । अतएव जातीयता ओर जाति प्रेम की दृष्टि से हैट और नेकटाई धारण करने वाले हिदुस्थानियों का यह प्रधान कर्त्तव्य है कि ये अपनी वेश भूषा में उनके बदले अपने एक-दो चिह्न अवश्य रक्खे।

धार्मिक और सामाजिक उत्सवों में हम लोगो को अपना ही पहिनावा पहिनना चाहिए । यदि कोई हिदुस्थानी हाफ-पेण्ट पहिन कर मंदिर में पूजा करेगा अथवा विवाह में कन्या दान देगा वे लोग उसकी दासता को धिक्कारेंगे और उसके स्वांग पर तालियाँ पीटेंगे। घर में भी हमें बहुधा अपनी पोशाक में रहना चाहिए।

अाजकल बंगालियों का अनुकरण कर हम लोगेा में से कई एको ने खुले सिर रहना स्वीकार कर लिया हे, पर हिंदुस्थानी समाज में यह रीति अशिष्ट और अशुभ समझी जाती है । घर से थोड़ी दूर तक इस अवस्था में जाने से विशेष हानि नहीं है, पर