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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


कभी कड़ी बातचीत अथवा अनुचित क्रिया करने का अवसर न आवे । मिथ्याभिमान अथवा कोरी ऐंठ की प्रवृत्ति से दोनो को हानि होने की सभावना रहती है।

( ७ ) वेश-भूषा में

अाजकल जब कोट, टोप, कालर, नेकटाई और अर्द्ध-पतलून का साम्राज्य है तब किसी को यह बतलाना प्राय व्यर्थ ही है कि उसे अपने देश, काल ओर पात्र के अनुसार कपडे़ पहिनना चाहिए । इन दिनों सर्वसाधारण की ओर विशेषकर सकारी नौकरों की यह धारणा है कि प्रतिष्ठा और पद की प्राप्ति अँगरेजी पोशाक पर निर्भर है। यह धारणा मिथ्या नहीं है, क्योकि उच्च सरकारी नौकरी के लिए विदेशी पोशाक वहुधा एक आवश्यक गुण माना जाता है और कई लोग तो केवल पोशाक को प्रभुता ही से प्रतिष्ठित पदों पर स्थापित हो गये हैं। प्राय ऐसे ही कई कारणो से देशी लोग भी अपने देशी पहिनावे का विशेष आदर नहीं करते । यद्यपि मनुष्य की योग्यता बहुधा पोशाक से जानी जाती है, तथापि उसके लिए विलायती पोशाक पहिनना अनिवार्य नहीं है। आज भी हिन्दुस्थानी समाज में आधे से अधिक लोग अपना पहिनावा पहिनते हैं, चाहे वह नगर का हो अथवा ग्राम का । श्रीमान मालवीयजी सदृश सज्जन आज भी अपनी पोशाक पहिनकर उच्च प्रतिष्ठा ओर पद के पात्र हैं।

अंँगरेजी पोशाक का प्रचार संसार में प्राय सर्वत्र बढ़ रहा है। ऐसी अवस्था में जिन हिन्दुस्थानी लोगो ने इस विदेशी पहिनावे को ग्रहण कर लिया है, उनसे उसे छुड़वाना साध्य नहीं है, तथापि इतना अवश्य हो सकता है कि वे इस पोशाक के साथ भी अपनी जातीयता का कोई चिह्न सुरक्षित रख सकते हैं । नेकटाई अंगरेजो का निजी धार्मिक चिह्न है जिसमे ईसा मसीह के क्रूस का बोध