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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार


को उसी प्रकार “जातीय" बना सकते हैं जिस प्रकार “ईद" और “बड़ा दिन" बनाये जाते हैं।

राजाश्रय प्राप्त होने के कारण रजवाडो में यह तेवहार बड़ी धूमधाम से होता है। वहीं इसका पालन नियम-पूर्वक होता है जिससे लोगो के नेत्रों के आगे प्राचीन दृश्य एक बार फिर भूलने लगता है । इस उत्सव से सम्बन्ध रखने वाले शिष्टाचार का पालन रजवाड़ो में बड़ी सावधानी से किया जाता है। स्थानाभाव से रजवाड़ो के इस उत्सव का व्यारेवार वर्णन करना कठिन है, तथापि इतना अवश्य कहा जा सकता है कि अमयादित होने पर भी रजवाड़ो का शिष्टाचार अन्य स्थान के लोगो के लिए अनुकरण का विषय है। यदि हमारे हिन्दु राजा-महाराजा अधिक कर्तव्य शील, सदाचारी और वास्तविक शिष्याचार के अनुरागी हो जायें, तो हमारी सामाजिक अवस्था भी अनुकरणीय हो जाय।

(६) व्यवसाय

व्यवसाय में शिष्टाचार के यथोचित पालन से अनेक लाभ हैं। इससे ग्राहक और परिचय वाले ही प्रसन्न नहीं होते, किन्तु व्यवसायी की साख और आय भी बढ़ती है। जो व्यापारी उदासीनता से अथवा अहभाव से किसी ग्राहक के साथ रूखा अथवा असभ्य व्यवहार करता है उसके यहांँ लोग केवल विवशता के समय जाते हैं। रुखे दुकानदार को उचित मूल्य देना भी ग्राहक को भारी जान पड़ता है, पर शिष्टाचारी व्यापारी को कुछ अधिक देना भी नहीं अखरता।

व्यवसायी के शिष्टाचार में यथासभव सत्य-भाषण भी सम्मिलित है। यह गुण उसमें विशेषकर इसलिए आवश्यक है जिसमें ग्राहको का विश्वास उसपर बना रहे और वे उसे सभ्य और सज्जन समझे । भूठ बोलना केवल सदाचार ही के विरुद्ध नहीं है, किन्तु