पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/३

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भूमिका

इस विषय की एक दो पुरानी तथा अप्रचलित पुस्तकों को छोड़ अन्यान्य उपयुक्त पुस्तकों का अभाव देखकर हमने इस पुस्तक को लिखने का साहस किया है। समाज की सभ्यता की बढ़ती के साथ साथ उसमे शिष्टाचार की सूक्ष्मता की भी वृद्धि होती है, इसलिए यह आवश्यक है कि उसके शिष्टाचार के नियम व्यवस्था पूर्वक संगृहीत किये जाएँ। यह पुस्तक इसी उद्देश्य से लिखी गई है और आशा है कि जब तक इससे अधिक उपयुक्त संग्रह का अभाव है तब तक पाठक-गण इसे उदारता की दृष्टि से देखेंगे।

इस पुस्तक में इसके नाम के अनुसार हिदुस्थानी समाज के शिष्टाचार का विवेचन किया गया है। "हिन्दुस्थानी" शब्द से बहुधा हिन्दी भाषा भाषी तथा उस समाज की व्याप्ति अभिप्राय है जिसका नाम भौगोलिक "हिन्दुस्थान" शब्द से व्युत्पन्न हुआ है। यद्यपि हिन्दुस्थानी शिष्टाचार के नियम “हिदुस्थान” के प्राय सभी भागों में एक ही हैं, तथापि स्थान भेद से थोड़ा बहुत अन्तर पड़ने की संभावना है। ऐसी अवस्था मे पाठक लोग यह समझ लेने की कृपा करें कि अमुक एक रीति किसी न किसी हिन्दी भाषी स्थान में अवश्य प्रचलित है ये नियम संभवत दूसरे प्रदेशो में भी प्रचलित हो।

शिष्टाचार के जो नियम इस पुस्तक में लिखे गये हैं उनमें से थोड़े-बहुत मुसलमानी तथा अँगरेजी शिष्टाचार के अनुकरण के फल-स्वरूप हैं। तो भी पिछले दोनों शिष्टाचारों की अस्वाभाविक चरम सीमा से ये नियम मुक्त हैं—अर्थात् इनमें अपने को