लिए नियम बनाना और उनका पालन करना आर्य-जाति का एक
प्रधान लक्षण था । राजा ओर प्रजा तन मन-धन से ऋषियों का
सत्कार करते थे और प्रजा राजा को ईश्वर का अंश मानती थी।
राजा लोग भी प्रजा के प्रेम की प्राप्ति के लिए सतत उद्योग करते थे।
वेदिक काल के शिष्टाचार का स्पष्ट ओर पूर्ण विवरण सरलता से उपलब्ध न होने के कारण केवल पूर्वोक्त सक्षिप्त विवेचन ही लिखा जा सका है। यदि वैसा विवरण उपलब्ध भी होता, तो भी वह यहाँ विस्तार-पूर्वक न लिखा जा सकता, क्योकि इस पुस्तक का मुख्य उद्देश्य केवल आधुनिक शिष्टाचार का वर्णन करना है।
( २ ) रामायण-काल में
वैदिक काल की अपेक्षा इस काल मे शिष्टाचार पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा, क्योंकि इस समय समाज का संगठन अधिक ढृढ़ हो गया था और जाति भेद की प्रथा प्रचलित हो गई थी। धर्म-संस्कार और यज्ञ-यगादि भी इस समय विशेष आडम्बर से किये जाने लगे और प्रचीन प्रकृति-प्रजा के बदले प्रकृति के देवताओं की पूजा होने लगी।
रामायण काल में सामाजिक सदाचार की ओर विशेष प्रवृत्ति होने के कारण शिष्टाचार की भी परीक्षा की जाती थी। केवल वाल्मीकि रामायण ही से तत्कालीन सभ्यता और शिष्टाचार की अनेक बातें जानी जा सकती हैं। यहांँ इस विषय की कुछ बातें हम संक्षेप में लिखते हैं।
उस समय अपने वचन का पालन करना और धर्म-संकट
उपस्थित होने पर कर्तव्य का निश्चय तथा अनुसरण करना प्राय
प्रत्येक व्यक्ति अपना ध्येय समझता था। माता पिता की आज्ञा
मानना और छोटे-बड़ो के साथ शिष्ट व्यवहार करना भी उस काल