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दूसरा अध्याय

प्राचीन आर्य शिष्टाचार

( १ ) वैदिक काल में

वैदिक काल में प्रचलित शिष्टाचार का पता हमे आर्यों की प्राचीन सभ्यता से लग सकता है। हमारे पूर्वजो ने कई सहस्र वर्ष पहले अनेक विद्याओ ओर कलाओ में विशेष उन्नति कर ली थी, इसलिए यह सम्भव नहीं कि समाज मे उपयोगी होनेवाले शिष्टाचार सरीखे गुण का उनमे अभाव रहा हो । जो जाति शेष संसार की बाल्यावस्था के समय धातुओ का उपयोग जानती थी, सोने-चाँदी के गहने और युद्ध के अस्त्र शस्त्र तैयार कर सकती थी, तत्वज्ञान के गूढ़ विषयो पर सम्मति दे सकती थी और हजारो खंभों के “भवन" बना सकती थी, वह अशिष्ट कैसे रह सकती थी। वेद-कालीन साहित्य से जाना जाता है कि उस समय केवल पुरुष ही नहीं, कितु स्त्रियांँ भी शिक्षित होती थीं। वेदो के अनेक मन्त्रों की रचना स्त्रियों ने की है । यज्ञ-कार्य में पुरुषो के साथ स्त्रियाँ सम्मिलित होती थीं और ये विशेष आदर की दृष्टि से देखी जाती थी। उस समय परदे की प्रणाली प्रचलित नहीं थी और कन्याएँ उपवर होने पर स्वयंवर की रीति से विवाही जाती थी।*

सभ्यता की इस अवस्था में शिष्टाचार की अवहेलना नहीं हो सकती थी । विवाह के समय वर-कन्या एक-दूसरे को जो वचन देते थे उनसे वेदिक-काल के शिष्टाचार का बहुत-कुछ ज्ञान हो'


*“भारत की प्राचीन सभ्यता का इतिहास"।