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छठा अध्याय


नौकर के द्वारा मोल मॅगाई गई वस्तुओं को सावधानी से देखना और उनका मूल्य जाँचना बहुत आवश्यक है, पर आने दो आने के अन्तर पर उसे सहसा झूठा बनाना उचित नहीं।

कई नौकर स्वभाव ही से दुष्ट चोर और चालाक होते हैं। इसलिये ऐसे नौकरों को बिना पूरा विश्वास किये काम में लगाना ठीक नहीं । यदि भूल से ऐसे नौकर काम म लगा लिये जायें, तो भूल मालूम होने पर उन्हें चतुराई से जवाब दे देना चाहिये। किसी भी अवस्था में ऐसा अवसर कभी न लाया जाय कि मालिक और नौकर के बीच में खुल्लम-खुल्ला कहा सुनी या गाली-गलोज होने लगे।

यदि आदमी अकेला हो तो उसे तरुण स्त्रियों को नौकर न रखना चाहिये, क्योंकि इससे निन्दा तथा हानि होने की सम्भावना रहती है। नौकरी से बहुधा उतना ही काम लिया जाय जितना वेतन उन्हें दिया जाता है। ज्यादा काम के लिए ज्यादा दाम देना वाजिव ओर जरूरी है। नौकर से कभी ऐसा काम न कराया जावे जो उसके गौरव के विरुद्ध हो । यदि लाभ के वशीभूत होकर कोई नौकर अपनी प्रतिष्ठा के विरुद्ध कोई काम करना स्वीकार कर ले तो उसका यह भेद सब में प्रकट न किया जावे ओर न सब के सामने उससे वैसा काम करने को कहा जावे। इस प्रकार के अपमान-कारी कामों का एक उदाहरण यह है कि लोग कमी-कभी ढोमरों से जूते साफ करवाते हैं जिसको वे लोग बहुधा अपनी जाति के विचार से स्वीकार नहीं करते । नौकर से कभी ऐसा गूढ़ कार्य न कराया जाय जिसे वह किसी समय नौकरी छोड़ने पर प्रगट कर दे । उसके आगे दूसरो की निन्दा करना भी उचित नहीं। बहुत पुराने नौकर के साथ कई बातो का अनुग्रह करने की आवश्यकता है।