पृष्ठ:हिन्दुस्थानी शिष्टाचार.djvu/१३१

यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
११५
छठा अध्याय


धृष्टता के वश आयश्यकता से अधिक कह डालना, ये दोनों ही अवस्थाए त्याज्य हैं।

राज्य की उचित आज्ञाओं का पालन करना प्रत्येक नागरिक का कर्त्तव्य है। आवश्यकता पड़ने पर प्रजा के प्रत्येक मनुष्य को शासन के कार्य में सहायता देना चाहिये और अपने राजा तथा देश के लिए तन मन, धन अर्पण करने में भी सोच न करना चाहिये। प्रत्येक उत्तरदायी नागरिक का यह कर्तव्य है कि वह प्रजा पर होने वाले अत्याचारों की सूचना राजा अथवा दूसरे अधिकारियों को देने में किसी प्रकार का संकोच न करे । यदि हो सके तो उसे राज्य की ओर से की गई किसी भारी भूल की सूचना भी उपयुक्त अधिकारी के पास पहुँचा देना चाहिये।

राज्य की ओर से जिन लोगों को सम्मान अथवा उन्च पद प्राप्त हुआ है उनके प्रति भी हमे आदर प्रकट करना चाहिये । जब तक असंतोष का कोई कारण उपस्थित न हो, तब तक राज्याधिकारियों के प्रति सदैव आदर और सभ्यता का व्यवहार किया जावे। किसी लोक प्रिय राज्याधिकारी का स्थानान्तर होने पर छोटा मोटा उत्सव कर देना भी शिष्टाचार की सीमा के भीतर है । प्रजा हितैषी राजा के किसी स्थान में पधारने पर वहाँ के निवासियो को अपनी राज भक्ति का पूरा परिचय देना चाहिये । राजा चाहे छोटी अवस्था का हो अथवा युवराज ही हो, पर उसके आदर-सत्कार में किसी प्रकार की त्रुटि न की जावे । राज परिवार के लोगों के साथ भी, जब तक उनमें राजोषित सभ्यता है, आदर और शिष्टाचार का व्यवहार किया जावे।

उच्च राज-कर्मचारियो से बात चीत करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिये कि जब तक उनके साथ घनिष्ठता का सम्बन्ध न तब तक उनसे विनोद पूर्ण सम्भाषण न किया जाय।