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हिन्दुस्थानी शिष्टाचार

( ७ ) राजा और अधिकारियों के प्रति

यद्यपि अनेक राजा और अधिकारी लोग अपनी प्रभुता के अभिमान में साधारण लेगा को अत्यन्त तुच्छ समझने हैं, तथापि जब तक इन लोगो का व्यवहार मनुष्यता के अनुरूप है, तब तक लोगो को इन महानुभावों का उचित और नियमानुकूल आदर करना आवश्यक है । राजाओं और अधिकारियों के सामने जाकर जहाँ ओर जैसे खड़े होने अथवा बैठने की रीति हो, वहाँ वैसे ही खड़े होना अथवा बैठना चाहिये । इन लोगों को प्रणाम भी निश्चित रीति से किया जावे। कोई कोई राज्याधिकारी अपने अधीन कर्म चारी और प्रार्थियो को बैठने तक के लिए आसन नहीं देते और उन्हें खड़ा रखने में अपना गौरव समझते हैं। आवश्यकता के कारण इस अपमान को सहना ही भाग्य है क्योकि शक्तिशाली महापुरुषों को उदण्डता के लिए कोई सहज और सभ्य प्रतिकार नहीं है। कोई-कोई अधिकारी प्रणाम का उत्तर केरल अभिमान पूर्वक सिर हिलाकर देते हैं। यह भी एक अत्याचार है जिसके रोकने के लिए आन्तरिक घृणा के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं दीखता।

पूर्वक्ति महानुभावों से मिलने और बातचीत करने के सम्बन्ध में सावधानी की आवश्यकता है। उनसे केवल नियत समय पर मिलना और निश्चित बातचीत करना चाहिये । जहाँ तक हो बात चीत में किसी दूसरे मनुष्य की निन्दा न की जाय और न अपनी बड़ाई प्रकट की जाय । राज्याधिकारियो के पास उतने ही समय तक ठहरना चाहिये जितने समय तक कार्य की आवश्यकता हो । बात-चीत संक्षेप में परन्तु स्पष्ट-रीति से करना चाहिये जिसमें । कहनेवाले का उद्देश्य सिद्ध हो और सुननेवाले को यथार्थ व्यवस्था सरलता से प्रकट हो जावे । संकोच के वश कुछ न कहना और