मित्र को दोषों की सूचना से बुराई जान पड़ तो इस विषय में उसका समाधान करना आवश्यक है। समझदार मनुष्य अपने
मित्र की बताई हुई सूचनाओं को अपने लिए लाभदायक समझकर
उनका पालन करेगा। जब किसी भी उपाय से मित्र के दोष दूर न
हो सके और उनसे बड़ी भारी हानि होने की सम्भावना हो तब
अन्त में इस बात का विचार करना आवश्यक है कि ऐसे मनुष्य
से मित्रता स्थिर रक्सा जाये या नहीं। यदि दोष साधारण है और
मित्रता में विध्न पड़ने को कोई सम्भावना नहीं है, ना उसे क्षमा
की दृष्टि से देखना चाहिये।
जर तक कई बढ़ी आवश्यकता न हो तब तक मनुष्य को किसी के साथ अपनी मित्रता का विषय सर्व साधारण में प्रकाशित न करना चाहिये । दो आदमियों के परस्पर व्यवहार और सम्भाषण की रीति ही से बाहरी लोगेा को इस बात का पता लग सकता है कि उन दोना से कैसा भाव है। सभी बातों में और सभी कही अपने मित्र का अन्ध पक्षपात करके दूसरे लोगो को मित्रता की घनिष्ठता न बताई जाने। अपने मित्र की भलाई के लिए सब कुछ किया जावे, परन्तु उसके लिए आत्म-गौरव न खोया जावे और दूसरे की बुराई न की जावे।
संकट के समय मित्र की सेवा तन मन-धन से की जावे। यह
एक बड़ा भारी अवसर है जिस पर लोग अपने मित्रो से बहुत
कुछ आशा करते हैं और यदि ऐसे समय में शक्तिशाली होने पर
भी कोई मनुष्य अपने मित्र की सहायता न करेगा तो उनकी मित्रता बहुत दिन नहीं चल सकती। यथार्थ में सहानुभूति ही मित्रता का प्रधान लक्षण है और यदि मित्रता में इसी गुण का प्रयोग न किया जावेगा तो वह मित्रता कैसे रहेगी? इसी सहानुभूति से मित्र की और उदारता का भाव उत्पन्न होता है।