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छठा अध्याय

बड़ी उमरवालो के सामने छोटो के लिए बढ़ बढ़कर बाते करना अथवा गप्प हांकना उचित नहीं है। उनसे बात-चीत करते समय स्थिति के अनुसार “आप" शब्द का उपयोग किया जाय । बड़ो और बूढ़ों के उचित रीति से अप्रसन्न होने पर छोटो को अपनी उद्दण्डता से उन्हें और भी अप्रसन्न न करना चाहिए । उन लोगो से अपने अपराधों के लिए क्षमा माँगने में कोई लज्जा की बात नहीं है।

बूढ़े लोगों का कभी उपहास न किया जाय । कोई कोई मूर्ख लड़के बड़ो और बूढ़ों को चिढ़ाने में अपना गौरव सा समझते हैं, पर ये यह नहीं जानते कि एक दिन उनकी भी वैसी ही दशा होगी और दूसरे लोग उन्हें चिढ़ायेंगे । लोगों की असभ्यता से कष्ट पाकर ही बूढ़े लोग कुछ चिड़चिड़े हो जाते हैं। बड़ा और बूढ़ों से मुँह-जोरी करना भी अशिष्टता का चिह्न है।

भीड़ मेला में बूढ़ों की रक्षा करना तरुण पुरुषों का कर्त्तव्य है। यदि कोई बूढ़ों के प्रति अनुचित बताव करता हो तो दुसरो को उचित है कि वे उस उपद्रवी का दमन करें। यदि आवश्यकता हो तो बूढ़ों को हाथ पकड़कर मार्ग दिखाना चाहिए और उनका सामान आदि ले जाने में भी सहायता देना चाहिए।

बड़ो और बूढ़ों से बाद विवाद करना उचित नहीं समझा जाता। यदि उनकी कही हुई बात सुनने वाले को स्वीकृत अथवा प्रिय न हो तो उसे चुप हो जाना उचित है। यदि कोई विशेष हानि न हो तो दे लोगों के मत का खण्डन न किया जाये। यदि इसका प्रसङ्ग आजावे तो बहुत ही नम्रता पूर्वक खण्डन किया जावें। कभी कभी बूढ़े मनुष्य ही आपस में अनुचित व्यवहार करते हैं और अवस्था के गुण के कारण एक दूसरे की बात मानने में अपनी हीनता समझते हैं। ऐसी अवस्था में किसी योग्य तरुण पुरुष को बीच में