के प्रश्न नहीं पूछे जाते । किसी पिता से उसकी बड़ी अवस्था-वाली लड़कियो की अवस्था न पूछना चाहिये । यदि आवश्यकता हो तो इस प्रकार के प्रश्न परोक्ष रूप से अथवा दूसरी बातो के सम्बन्ध से पूछे जा सकते हैं । जो स्त्रियाँ सभा-समाजो में आती हैं और पर्दे का पालन नहीं करतीं उनसे भी बात-चीत करने में बड़ी सावधानी की आवश्यकता है। यदि किसी सभा में कोई स्त्री भाषण देती हो तो उसकी ओर टकटकी लगाकर न देखना चाहिये । सभा में आई हुई स्त्रियों को हार पहिनाने की आवश्यकता हो तो यह काम सोलह वर्ष तक की अवस्था-वाले लडको से कराया जाय अथवा हार स्त्रियों के हाथ में दे दिया जावे।
संकट में पड़ी हुई स्त्रियों को बचाना केवल शिष्टाचार ही का कार्य नहीं, किन्तु वीरता (सदाचार) का भी कार्य है। यदि कोई लुच्चा या गुंडा किसी सभ्य स्त्री के साथ छेड़-छाड़ करता हो तो मनुष्य कहलाने वाले प्रत्येक मनुष्य का धर्म है कि यह शक्ति-भर उसे बचाने और अत्याचारी को दण्ड देने या दिलवाने का प्रयत्न करे । राजपूतकाल में तो वीर लोग स्त्रियों की रक्षा के लिए प्राण तक दे देते थे,पर दुर्भाग्य-वश अब वह समय दिखाई नहीं देता।
स्त्रियों में जहाँ तक हो नम्रता का व्यवहार किया जावे । उनके
प्रति क्रोध प्रगट करना अथवा दिल दुखाने वाला कोई बात कहना
अनुचित है। उनकी भूलें धीरता से सुधार दी जावें और आगे-पीछे
बिना किसी विशेष कारण के उन भूलो का उल्लेख न किया जावे।
उनकी उचित सम्मति को मान देना चाहिये और महत्व-पूर्ण विषयों
में उनकी सम्मति लेना चाहिये । जहाँ तक ही घर का भीतरी
प्रबन्ध स्त्रियों ही को सौंप दिया जावे और उनके कार्यों में व्यर्थ हस्तक्षेप न किया जावे।