पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/७१०

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शोना मोना--कायो मायोहा मफेद और निकना पदार्थविशेष रंग तय्यार रहनेसे पहले गतिएका मिलाना प्रत्य धानुट्यप, अनार और यरतन आदि पर तरह तरह भायश्यक होता है । पिना इसके पफा या रिकार गोगा येटाया जाता है। बहुत प्राचीन समयसे भारत नहीं होता। पीछे लोह और कोबाल्ट धातुको असा राम इमका प्रचार है। जड़ाऊ गदनोंके इस तरहफे (Oxide ) से रंग तय्यार होता है। जयपुरफे मंगो शिवनैपुण्यको मीनाकारी ( Art of enamelling) या सामन्त-राज्यमें कोवान्ट धातु बहलायतसे मिलती है माना-गिलय कहते हैं। उन. गिल्प इस समय प्रायः इसी धातुसे नीले रंगका उत्तम मीना तयार होता है विन्द्रप्त होता दिखाई देना है। केवल जयपुर-राज्यमै | स्वर्णके ऊपर सब रंगके मानेको जड़ाई हो सकती आज मो इम शिल्पको मजोर अवस्था दिमाई देती है। रोय पर दरा, काला, गाढ़ा, पीला और लोदित रंग इसके काय नैपुण्यफो देख कर सुसभ्य पाश्चात्य जातियां । मौनेको जड़ा होता है। तांये पर सादा और फाले भी यिमुग्ध हुई है। 'सिवा किसी दूसरे रंगके मोनेकी जमाई होना मम्म जयपुर, अलवर, दिलो और काशीका स्वर्णमीनाः | नहीं। किसी भी देश शिल्पी लोदित यर्णके मोने। मुलनान, यहयलपुर, काश्मीर, कांगड़ा, कुन्ट, लाही, किसी धातु पर स्थायीरूपसे प्रयुक्त न कर सके। पैदराबाद, फरांनो यम्बटाबाद, नूरपुर, लखनऊ, कच्छ और किन्तु ग्लासगो नगरको शिल्पप्रदर्शनोमें जयपुर लोदित जयपुरका रौप्य मीना तथा काश्मीर और जयपुर आदि । मौनेको चमत्कारिता देव यहां शिल्पी नवितस्तम्भि म्यागोंका ताम्रमांना आज भी पृथ्योमें मीनाशिल्पका हुपथे। प्रसिद्धिलाम कर रहा है। ___ जयपुरमें नाना प्रकार गहों पर मोनाको जदाई द्वार ऐएडली मायने भारतीय शिला पत्रिकामें है। कड़ा, वाला, वाजू और हार मादि गहने यापूर लिसा , कि जयपुरके शिल्ली इस सरह अपने गिल्प | मुरत मोनेसे जड़े जाते हैं। होग और मुक्तावधि- नेपुण्यको महायतासे मोनेका मोना तय्यार करते हैं, . गहनोंको वगलमें दुमरी ओर मीना लगाया जाता है ऐसा तैयार करने है, कि सात रंगका इन्द्रधनुष भो । एक जोमा घडियालमुग्नी मीनासे जड़ी हुई चूडी (Dr. उसफे मामने मान हो जाता है। यानो उसको उजन्य' celet ) १००, यायेको मिलता है। मणिपचित होने प लता तथा निर्मलताम इन्द्रधनुष भी बराबरी नही कर इसका मृत्य २००) कापे तक हो जाता है। एक शो. सस्ता । मोनाफे ऊपर मणिपचित करने पर भी मोना। कर्षफल १८). मछलीके उपक कर्णफल) और गिर को नमक कमी नहीं होती। कांटे १२ सापेको मिलते हैं। बहुत प्रकारफे गाने सेया- जो मोनार पहले मोनेके पत्तर पर पुरानो पुस्तकका होते हैं। मामको नाकी 'धुकधुकी' अत्यन्त नैपुण्यः नम्ना देग नि यतिन किया करते हैं, उनको मिनेरा माघ वनाई जाती है। हिन्दु गुमलमान इसका य या चित्रकार कहते हैं। ये यालफे गानो करने मादरपं. माथ पयार करते है। मोहनमाल जाति वालों को तह। पाले गहनों पर घर बनाते हैं. पीछे गहनों को देन माँगनमा जातो.। प्राय हो घरों में माना पंठा देते है। में मीना बैठाने पर पहले मौनाकारी का काम दिलोस यहालमें मापा पा गानाका अपूर्व मौन्दयं ही माता है| किन्तु यह पटने में कुछ दिनो तर माफर गुम हो गया पदलेय. पर बनानयाले दूसरे मरे फागर हैं। मिटर यादेन पायन (Mr. usdcn'towel') किन्तु माना ठायाले दुमरे है। इनकी मीनाकार , मोनागिन पनारमको जयपुरगं. नीने होम्यान दिया पहने। मोना यटाने से पहले मोने के गहनों ने पर. किन्तु इस ममप बनारममें जमको पिसा देगी को चिकना कर लिया जाता है। इसका रंदा नाना नहीं जाती। लमाऊ और रामपुर मानमें मातमी सरहको मिटायरमे नप्यार किया गाता है। अपपुरफे. याला मोना लगाया जाता है। गिगोरग पनामा नहीं जान। दिली. पाहा, मुरनान, शादिप्रदेश में माना