पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/६६७

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पिणीय-मिष्टपाक मिश्रणीय ( स० वि०) मिश्रणयोग्य, मिलाने लायक । | मिश्रीभूत ( स० त्रि०) अमिश्रो मिश्रः सम्पन्न इति मिश्र मिश्रता (स स्त्री०) मिश्रका भाय, मिलने या मिलाने- अभूतद्भाचे च्विः। एकत्रीभूत, एकमें मिला हुआ। का भाव। ___"मिश्रीभुता विरेजुस्ते नभश्चरमहीचराः ॥" मिश्नदिनकर-शिशुपालवधके टोकाकार। (योगवाशिष्ठ वैराग्य०) मिश्रधान्य (सं० क्ली०) मिश्रित धान्य, एकमें मिलाये | मिश्रेया (स. स्त्री०)१ मधुरिका, सौंफ। २ शाक- • हुए कई प्रकारके धान । विशेष, एक प्रकारका साग । ३ शतपुष्पा, तालपर्ण । मिश्रपुष्पा (स' स्त्री०) मिश्राणि परस्पर संश्लिष्टानि | पर्याय-ताल्लपणी, मिपि, शालेया, शोतशिवा, शालोना, पुष्पाणि यस्याः। मेथिका, मेथी। बनजा, अवाकपुष्पी, मधुरिका, छत्रा, सहित पुष्पिका, मिश्रवन (स.पु०) वार्ताको, भंटा। सुपुष्पा, सुरसा, वला । गुण-मधुर, स्निग्ध, कटु, मिश्रवनफला (स० स्त्री०) वार्ताको, भटा। प्रवलककहर, वातपित्तोत्थ दोष भीर लोहोदिनाशक । मिश्रवण ( स० लो० ) मिश्रः मिलितः वर्णोऽस्य । १ मिश्रोदन ( स० क्लो०) खेबरिका, खिचड़ी ! कृष्णा-शुरु, फाला अगरु । २ गन्ना, पौढा । ( त्रि०) | मिप ( स० क्ली० ) १ छल, कपट । २ वहना, होला ।२ नानावर्ण समन्वित, भिन्न भिन्न रंगका। ईर्पा, डाह। ३ स्पर्धा, होड़। ४ दर्शन । ५ सेचन, मिश्रवर्णफल (स०सी०) मिश्रवणं फलमस्याः। वार्ताकी, सींचना । . भंटा, बैंगन । मिपि (सं० स्त्री० ) १ जटामांसो। २ मधुरिका, सौंफ । मिश्रव्यवहार (स० पु०) लोलारत्युक्त गणनाविशेष, ३ अजमोदा। ४ उशीर, खस। गणितकी एक क्रिया । | मिपिका ( स० स्त्री० ) मिपि-कन् टाप । १ जटामांसी, मिश्रशब्द (स.पु०) मिधः मिलितः अश्वरासभचोरिव. वालछड़। २ मधुरिका, सौंफ । ३ शताहा, सोयां । शम्दो यस्य । खच्चर। मिष्ट (स' क्लो०) १ मधुररस, मोठा रस । (लि.) गिधित (स० वि०) मिश्रः श्रेष्ठत्यमस्य संजातमिति .२ मोठा, मधुर । ३ सेका, भूना या पकाया हुआ | मिश्र-इतच अथवा मिश्र-क्त । १ युक्त, एकमे मिला | | मिष्टकर्तृ ( स० वि० ) जो उनम रसोई बनाता हो । . हुआ। २ गौरवित ! ३ सम्मिलित । मिष्टजिम्बु (स.पु०) निम्बरक्ष, मोठो नीम । मिश्रिता (स. स्त्रो०) मिश्रित टाप् । मन्दा आदि सात मिनिम्ब ( स० पु० ) मोठा नोबू, जमोरा नोवू । गुण- प्रकारको संक्रान्तियोमसे एक प्रकारको संक्रान्ति, यह स्वादिष्ट, गुरु, घायुपित्तहर, विपरोग और विपनाशक, सूर्य संक्रमण जो कृत्तिका और विशाखा नक्षत्र के समय कफन, रक्तकर, कोप, अरुचि, तृष्णा और छर्दिनाशक तथा वलकर और वृहण। (भाषप्र०) - "मन्दा ५ वेषु विशेया मृदौ मन्दाकिनी तया । मिष्टपाक ( सं० पु०) मिष्टन पाको यस्य । १ मिष्टान्न, - सि ध्यानीं विजानीयादु घोरा प्रकीर्तिताः॥ मुख्या। मुख्या अनेक प्रकारसे बनाया जाता है। इन . .चरैमहोदरी शेया करदस्तु संक्रमे ॥" ( तिथितत्त्व ) में एक प्रकार यों है - भामको दो दो खण्ड कर उन- मिथिन् (सनि० ) १ मिश्रकारी, मिलानेवाला। (पु०) में छेद करे। पीछे उन्हें चूनेके जलो चार दण्ड (१॥ २ नागभेद एक नागका नाम । घंटा ) तक रन छोड़े। अनन्तर उन्हें जलसे धो कर मिश्रो ( दि० स्रो०) मिसरी देखो। धीमी आंच में सिद्ध करे। जय सिद्ध हो जाय तब उन मिभीकरण (सं० लो०) एकलकरण, मिलानेकी क्रिया।। निर्जल आमके टुकड़ोंको चीनीकी चाशनीमें डुबो कर मिश्रोतुत्य ( स०क्लो०) स्वर्पर, खपरिया। आंच पर चढ़ावे । आध दण्ड तक इस प्रकार यांच पर मिश्रीभाव (स० पु०) विमिश्रावस्था, मिलानेको क्रिया चढ़ाये रखनेसे जव रस गाढ़ा होने लगेगा तव जानना या भाव। चाहिये कि मुरव्वा ठीक पर आ गया। . . Vol, XVI1, 150