पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/६००

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५२८ मासिक-मासुरकण मासिक (स' नि०) मासि भय इति मास णिम् । मास- 1 वाला मर जाय, तो वाकी श्राद्ध, दूसरे आदमीको पूरा सम्यन्धीय, महीनेका। .. कर देना उचित है । मासिक व्यवस्था के सम्बन्धमें अन्यान्य '. "पणो देयोऽयकृष्टस्य पत्कृष्टस्य वेतनम् । । विषय भाद शब्दमें देखो। . . पापामासिकस्तथान्छादी धान्यद्रोणस्तु : मासिकः॥" मासिक कोटिए घाटमा un गो-armire ( मनु० ७१२६) : पहले दिन निरामिप एकाहार करके दूसरे दिन स्नानादि मासे भयमिति मास ( कालाट ठञ्च । पा ४३३२११) करने के बाद यथासमय भोज्योत्सर्ग फर कुशमय ब्राहाण. इति । मृतके सजातीय द्वारा संवत्सर या वर्षके स्नान, वास्तु-पुरुषादिकी पूजा और भूस्वामी पितृगणको भीतर प्रति मासको कृष्णा तिथिमें जो श्राद्ध किया जाता | श्राद्धोन भाग दान करना चाहिये । इसके बाद दक्षिण है उसे भो मासिक कहते हैं। यह नैमित्तिक श्राद्ध है। मुंह हो कर इस तरह अनुशा-याफ्य पढ़ना चाहिये। पर्याय-अन्याहार्य। जैसे-यद्यामुके मासि भमुफ पक्षे अमुक तिथौ अमुक गोत्रस्य ___ "पितृणां मासिकं श्राद्धमन्याहाय्यं विदुर्वधाः ॥" । प्रतस्य अमुक देयशर्मयः प्रथममासिककोदिष्ट भास' दर्ममय __(मनु १२३) | ब्राहाणोऽहं करिष्ये ।" पीछे पुरोहितको 'फुरुम्ब' ऐसा उत्तर नेतको प्रेतत्वयिमुक्तिके लिपे माद्य एकोद्दिष्ट, द्वादश देना चाहिये। इसके बाद गायत्री, "देवताभ्प" इत्यादि , मासिक, प्रथम और द्वितीय पाणमासिक तथा सपिण्डी. | मन्त्रीका तीन बार पाठ, पुण्डरीकाक्ष स्मरण कर भूजल फरण -ये पोड़स श्राद्ध करने होते हैं। प्रति महीनेकी निर्दिष्ट द्वारा श्राद्धोय द्रष्य प्रोक्षण और रक्षार्थ उदकपूर्ण पात्रको तिधिमें शास्त्रानुसार मासिक तथा प्रथम और द्वितीय | एक जगह स्थापन, दर्भासन दान, अादि दान, अन्न पाणमासिक (छः माहो ) श्राद्ध करना चाहिये। यदि । दान, गायत्री 'मधुवाता' और 'यशेश्वरो हव्यः समस्त' किसी कारणवश मासिक-श्राद्ध महीने महोने न हो सके, इत्यादि मन्त्र पाठ, पिण्डदान, पिण्ड-पूजा, पिण्डोपरि- नो यथार्थ तिथि पूर्वाहमें प्रथम और द्वितीय पाणः | वारिधारा, दक्षिणा, ब्राह्मण विसर्जन, अच्छिद्रायधारण, मासिक फर दूसरे दिन वारहों मासिक किया जा | दीपाच्छादन और विष्ण स्मरण आदि करना कर्तव्य , सकता है। है। श्राद्धके दाद श्राद्धीय पिएड गो या वकरीको खिला "पाणमासिकान्दिके भाद्ध स्याता पूर्व रेख ते।' दे या ब्राह्मणको दे दे या अग्निमें जला दे अथवा जलमें मासिकानि स्पफीपे तु दियसे द्वादशापि च ॥" (पेठीनसि) • फेक दे। मासिक श्राद्धप्रयोगके सन्यन्धमें मोटा. सपिण्डीकरण करनेके पहले मलमास उपस्थित मोटी ये कई बाते कही गई। इसमें जिन सब पाप्यों, होने पर मासिकके सम्बन्धमें अलग व्यवस्था है। मृताह. मन्त्री तथा अन्यान्य प्रक्रियाओंका उल्लेख्न है, विस्तार हो से ग्यारह महोनेके योचमें कहीं मलमास पड़ जानेके भयसे ये यहां पर महीं लिखे गये । मासिक गया, तो एक मासिक अधिफ करना होगा। अर्थात् १२. श्रादका प्रयोग वाहुस्यश्राद्धप्रयोग तत्त्यमें देखो। को जगई १३ मासिक-श्राद्ध करना होगा। छः महीने में इसी तरह २रा ३रा मासिक भी करना कर्तव्य है। 'मलमास पड़नसे छामासिकको पूर्व तिथिमे प्रथम पापा. श्राद्ध देखो। 'मासिक और १३ मासिकफी पूर्व तिथिमें द्वितीय पाण- मासिक करना होगा। इन मासिक श्राद्धोंमें यदि कोई मासी (दि० स्रो० ) माँको वहिन, मौसी। मासिक पतित हो, या छूट जाय, तो कृष्ण एकादशी, मासीन (स नि०) मासं भूतं मास-(मायाइयसि यत् पम्। भमावस्या अधया मासिकान्तर तिथि, मासिक श्राद्ध पा ५११६१) इति सम्। जिसकी अयस्था एक महीने कर पोछे यथार्थ कार्य सम्पादन करना चाहिये। अशौच की हो, महीने भरका, जैसे-दिमासीन, पञ्चमासोन, होने पर जब अशीच शेष हो जाय, तय मासिक धाद्ध करनेको .पण्मासोन इत्यादि। .: . :.:.; यिधि है। एकादगाहादि कई श्राद्ध कर यदि भाद्ध करने-मासुरकर्ण (स० पु०) मसुर कर्ण अपत्यार्थे मणः (तिवा.