पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५८

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५८ मस्तिष्क समयमै रोगीका शान नष्ट नहीं होता, किन्तु अधिक महितको यथार्य प्रदाद मानेसे पहले सरसे प्रथम रक्त गिरनेसे रोगो मूरित हो जाता है। इस रोग / शिरमें दर्द, लाल नेत्र तथा मुख पर लालिमाको एस: कमी कमी माक्षेप, अवशता, वामशकिको होनता . तया स्वल्पनिद्रा तथा निद्रा, शरोरके चमड़े का सूखना, स्मरणशनिफा हास भादि लक्षणादि दिखाई देने मलको कायर, मूवशप्छ, नाकसे कुछ कुछ रक्तका लगते हैं। गिरना, कर्णछिदमें सदा सहीत ध्यानिका सुनाई देना मस्तिष्कको दाहिनो धगलमें रजमाप होनेसे याम | और स्पर्श शनिको अधिकता गादि लक्षण दिखाई पार्श्व अयश हो जाता है और मस्तक तथा दोनों मांधे देते हैं। 'दक्षिण घोर विघी रहती है। मस्तिष्क अथया उसके। जय प्रदाहफा विकास होता है तब समूचा भट्ट मेनेजिसमें अधिक रक्तस्राय होनेसे हाथ पैरको अय- प्रत्यङ्ग प्रयल दाहग्यरको तरह गलता रहता है। माशी. शताके साथ दृढ़ता भो मा उपस्थित होती है। को गति धोरे घोरे क्षीण और दृढ़ तथा पैपभ्यभायापन मस्तिष्कको कोमलताफे कारण हेमिलिजिया हाय पैरको होती है। किन्तु जब हदमातृका (dura mater) भार शिथिलता देखी जाती है। कोमल मातृका (Pin mater) मामान्त होती है, तर रोगो सिया इसके स्पर्शशक्तिको हीनता (Anacstiresis) | पूर्वको तरह तगागी शब्दों का अनुभव करता रहता स्प शक्तिकी अधिकता ( Hyperaesthesia), शिर: है। उसके रगकी शिराये फड़कती रहती हैं, प्यास शल ( Tic.donloureux), अद्ध शिराशल ( Hemit न लगने पर जीभ सूमी रहती है गौर यह. पीलो हो cranin ), मृगोरोग ( Epilepsy. Epilepsin mitior जाती है। उसके विस्तमें पहले जिन यस्तुओं तथा और Epilepsin Gravior).और हिटिरिया (llystiria)) घटनायिशेषको छाया अद्धित रहती है, मन सदा उसी हिप्टेरिफेल फिट (Hysterical tits) मादि रोगोंमें मोरफो दौड़ता है। साथ ही साथ असम्बन्ध यापया. मस्तिष्कफियाका सरावीफे कारण माक्षेप आदि भी लापका सिलसिला जारी हो जाता है या यापयशक्ति उत्पन्न होते रहते हैं। तत्तद्रोग शम्दमें देखो। अन्यना मा जाती है । इसके बाद दो रोगी,प्रमशः पराव प्रीपप्रधान देशों में मनुष्यमालको दो मस्तिष्कके / अयस्थाको मात्र होता गार शय्या त्याग पार उठ प्रदाह (Phrenitis या Iniiammation of the thrain) | भागनेका यत्न करता। . .. : रोगसे पौमित होना परता है। कामी, सनयरत लिगने । ऐमो अयस्यामें यदि फराडार ( Tendons ) पग पढ़नेफे काममें रत रहनेवाले अथया स्नाययिक दुर्बलता. पन फर नानते हों, सो रोगोका रोग असायही ज्ञाता ., से पीड़ित व्यक्ति अर्थात् जिनकी लायुमण्डली स्यमाः है। इसके बाद मूबरोध यानी पेशापका म होगा, यता उत्तेजित हो उठती है इस तरदको मयस्या- निवफा न माना, दांतका बजना गौर माक्षेपका सशण पाला व्यकि इस रोगसे छुटकारा नहीं पा सकते। पा! दिशा देने पर भपया इस प्रशाहो फुस फुममें और रासिसागरण अयया रात रात भरका पढ़ना, अत्यधिक गले में माने पर रोगको असार ममाना माहिये। मदिरापान, मोध, दुप धार चिन्ता, ययासोरसे सूनका किन्तु यदि पसीना निकलना, नाक और यथामौरसे गिरना और रमणियोंके नियमित मार्तस्त्रावनिरोप यूनका गिरणा, रमणोफे भात पारण या यधिक पेशार मादि कारणोंसे भी यह रोग उत्पन्न हो सकता है। होमेसे प्रदाहफे उपशम हो जानेको अधिक मम्मापना मुरांतापश बुले स्थानों में धूपके समय सो रहने पर रहती है। कमी कमी प्रलापके साथ मस्तकशा प्रदाद मा उपस्थित यह रोग जलदो सांगतिको हासा, इसमे होता है। सिपा इसके मस्तकम जोरोसे चोट लगनेबन जल्द इनके प्रतिकारका उपाय कामा प्रापि। पर दादरी पापस भी मौतरी प्रदादको उत्पत्ति हो । मापरया तयामिहिरमाको मपणे पार पहने । आती है। . . | उग्मादका रूप धारण करता है। कमी कमी तो रोगी