पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/५५

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मस्तिष्क ५७ भोजन, शरीरमें रक्तको मधिकता या कमीका होना, दूषित। इससे रोगो कमो कभी वाय.मति सो भो देता । मृगी यायुका सेवन, पलयुमिनिउरिया और जण्डिस (न्याया)। या संन्यास रोगयो बाद इस रोगका उत्पन्न होना दिखाई रोग, विकारयुक्त ज्यर और अभुक्त अवस्थामें सोना, देता है। स्मरणशक्तिका द्वास ( sminecial ) होने •आदि कारणोंसे मस्तिष्कको परायी हो जाती है। इस पर रोगी एक वातके बदले दूसरी बात कह देता है, कमी कारणसे निद्राफर्पण ( Somnolence ) रोग और ज्वर. कभी व्यक्ति या स्थानविशेषका नाम भूल जाता है। में, पागलपनमें, चाय या काफी पोनेके बाद सिलिपिम् किसो लिखावटको देख कर भले ही कुछ लिप लेता है। ट्रिमेन्स, धनुटद्वार में, जलातङ्गमें, मेनिजाइटिस पीडामें और फिन्तु उसने क्या लिसा, उसका उसे स्मरण नहीं गर्भावस्था स्वभावतः ही अनिद्रा ( Insomnia ) रोग रहता। आ उपस्थित होता है। मस्तिष्कफी उष्णता, रकाधिक्य, : मानसिक प्रतिको इस तरहको विलक्षणतासे और रकशून्यता इसका एकमात्र कारण है। ' स्थलयिशेषमें एक ही समय अवशता और युद्धिगतिका

. . कुछ रोगो खप्नावस्थामें विविध स्थलोका परि- हास हो जाता.है । इसके बाद स्मरणशनिका हास

.म्रमण कर आश्चर्यजनक कार्य किया करते हैं। किन्तु निद्रा, इसके उपरान्त डिमेन्सिया (जड़ता )का लक्षण दिलाई .मर होने पर उनको उस स्वमदष्ट अदभुत फाँका जरा, देता है। पहले जिहा ही भवसन्न होने लगती है। मी स्मरण नहीं रहता। यौवनकालमें अत्यधिक भोजन, दोनों कनिनिकायें असमान रूपसे फैली रहती हैं। अधिक मनस्ताप और अत्यधिक पठनपाठनसे मस्तिष्क | फी कमो उसमें अपाङ्गहष्टि ( Suuinting ) और गझि. एक प्रकारठे विस्त हो जाता है। इसको Somnam-1 पुटपात ( Ptosis) विद्यमान रहता है। इस समय bulism कहते हैं। रोगीके चलने फिरनेको शक्ति नहीं रह जाती । यद ऐसा

. मस्तिष्कमे किसी तरहको चोट लगने या दूषित भाव प्रकट करता है, जिससे मालूम होता है, कि इसको

रक्तफे सञ्चालनसे पेशीका सङ्कोचन या माक्षेप उपस्थित | चलने फिरनेको शक्ति है दो नहीं। चलते समय उसके होता है। इस तरह वारम्बार आक्षेप होते रहनेसे सांस पाय मतवालेको तरद घर उधर पड़ते हैं। स्थिरताने लेने या मस्तिष्कफे रकसशालनमें रकावटें होती हैं। उसका पैर नहीं जमता) रोगद्धिके साथ साथ पार कमी कभी तो इससे भयराता और दर्शन, प्राण, श्रवण, और चलने फिरनेको शक्तिको कमी, युरित्तिका हास, यायोचारण और स्मरणशक्तिको हीनता उपलब्ध होती सहोचक पेशियोंकी अयशता, फनिर्सनका फैलाय, देखी गई है। हाथ और पैरमें प्रत्यावर्ग निक स्पन्दन होता है। अन्तम . मानसिक शकिका हास अथवा जिल्हा आदि वागे. रोगोका मुखमएल माकुश्चित, सान और निराधप रिद्रय पेशियोंको होनताफे कारण जड़ता उत्पन्न होने पर मायापन्न हो उठता है। मस्तकका उत्ताप स्वामायिक 'एफेसिया ( Aphasia) नामक रोग उत्पन्न हो जाता से अधिक, फिर भी, शरीर तापको कमी बोध दोसो है।.शरीरके दक्षिण पार्थ में 'हेमिलिजिया' या 'प्यारा है। इसको शिपायस्थाको भयसन्नता (General parn. लिटिक स्ट्रोक होने पर प्रायः ही एफेसिया यतमान रहता! lysis of the insane ) फाहते हैं। है। मस्तिष्कफे, पाम 'कर्णपाली' (Lote )के अप्र. मस्तिष्क और मजाकी पैधानिक पोमानियन्धनसे भागमें (जो मंश लेफ्ट मिडल अधर द्वारा परिपोपित | देमिलिजिया रोगको उत्पति होती है। मन्यान्य रोगों होता है) कोई अदल बदल होनेसे यह लक्षण दिसाई में मस्तिष्क कियाफे गावान्तरसे भी यह रोग हो जाता देता है.। . . .. । है। मृगी, कोरिया, हिष्ट्रिरिपा मार उपदंश रोग भी इस पेफिमिया (Apharnin ) या यापयका लोप-- पोड़ा कारण है। साधारण सौर पर कर्पोरा ट्रापेटमफे नीचे तक कोई परि मस्तिरम शुनविधानको कोमलना, इसमें सामान्य पन दोने पर यापपरोध होनेको सम्मायना रहती है। रूपसे शोणितपिरष्ट उत्पन्न होनेमे घोडाफ मारम्भिर Vol. XVII. 16