पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४९८

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४४० मायले-मायाकोएडा करते हैं। जाड़ा ऋतुके बाद विना गणेशको पूजा किये करता है, किन्तु माया विषयमें सो नहीं है। एक तरहके। ये कभी भी गुड़की मिठाई नहीं यनाते हैं। कारणसे दश प्रकारके कार्य हो सकते हैं तथा स्वप्न और . ___ मृतदेहको अन्त्येष्टि क्रिया होनेके बाद कोई कोई ) इन्द्रजालको तरह जिसका फल अचिन्तनीय है. उमीको भस्म वा नाभि ले कर गङ्गामें फेंकता है। ३० दिन माया कहते हैं। । . . . . तक अशीच रहता है। ३१ दिन श्राद्ध तथा ब्राह्मणादि "विचित्रकार्य कारणा अचिन्तितपालप्रदा। . . . . . भोजन करा कर शुद्ध होते है। स्वप्नेन्द्रजालवडोके माया तेन प्रकीर्तिता ।।"...... . मायल (फा० वि० ) १ प्रवृत्त, झुका हुआ। २ मिश्रित, . . ..:. ( देवीपु० ४५-१०) . मिला हुआ।

विसदृश प्रतीति साधनका नाम माया है । अघटनके ।

मायव ( स० पु०) मायुका गोलापत्य । · घटनाविषयमें जो अत्यन्त पटुतमा हैं उन्हें मापा कहते . मायवत् ( स० वि०) मायायुक्त । 1: हैं। कोई कोई ईश्वरको शक्तिको माया वतलाते हैं। .. माया (सं० स्त्रो०) मीयते अपरोक्षवत् प्रदथ्यतेऽनया इति । इनका नामान्तर-प्रकृति, अविद्या, अज्ञान, प्रधान, शक्ति . मा (माच्छाससिसूभ्यो यः । उया ३२१.६) इति य, टाप् । और अजा। मायावाद देखो। . .. १ इन्द्रजालादि, छलमय रचना, जादु । पर्याय-शाम्यरी, लक्ष्मी । १० धन, सम्पत्ति । ११ अशानता, भ्रम। . साम्यरो। २ युद्धि, अल। मीमीते जानाति संख्या- १२ ईश्वरकी वह कल्पित शक्ति जो उसकी आज्ञासे,सव . त्यनयेति मा-य-टाप् । ३ कृपा, दया। ४ दम्भ, चाल काम करती हुई मानी गई है। :१३ इन्द्रवज्रा नामक वाजी । ५ शठता, बदमाशी। ६ प्रशा, शान। ७ वर्णवृत्तका एक उपभेद। यह इन्द्रवजा और उपेन्द्रवज्रा . राजाओंका क्षद्र उपायविशेष । • के मेलसे बनता है। इसके दूसरे तथा तीसरे चरणका "मायोपेक्षेन्द्रजालानि शुद्रोपाया इमे प्रयः ।" (हम), . प्रथम वर्ण लघु होता है। १४ .मगण, तगण, यगण, । माया, उपेक्षा और इन्द्रजाल यही तीन राजाओंके सगण और एक गुरुका एक वर्णवृत्त । ५ मयदानवकी सामान्य उपाय हैं। फन्या। इसका विवाह विश्रवासे हुआ था। त्रिशिरा, ८ दुर्गादेवी । इस नामको निराक्ति में - इस प्रकार सूर्पनखा, खर और दूषण इसीके गर्भसे उत्पन्न हुए थे। लिखा है, मा शब्दका अर्थ श्री और या-का अर्थ | १६ देवताओमिसे फिसोको कोई लीला, शक्ति, इच्छा या प्रापण है। जो श्रीको दिलाती हैं उन्ही का नाम माया प्रेरणा । १७ कोई आदरणीय स्त्री ।।१८. बुद्धदेव (गीतम). है। अथवा मा शब्दका अर्थ मोह और या शब्दका की मातफा नाम। ... ... ... .: अर्थ प्रापण है, जो मोहित करती हैं, उन्हीं को माया माया (हिं० स्त्री०) १ किसीको अपना समझनेका भाव, . कहते हैं। ममत्यक। २.कृपा, दया। . : . .. जिनका कार्य और कारण विचित्र अर्थात् भिन्नरूप मायाफार (सपु०) मायां इन्द्रजाल व्यापार करोतीति है, साधारण स्थलमें जैसा कारण है वैसा ही कार्य हुआ | कृ अण। ऐन्द्रजालिक, जादूगर, यह जो मायाके जैसा ‘विसदृश कार्य दिखानेमें पारग हो । पर्याय मातिहारिक।

  • "दुर्गे शिवेऽभये माये नारायणि सनातनि ।

मायाकृत (स' पु०) मायां स्थलजलादी जलस्थलादिशानं जये मे मगलं देहि नमस्ते सर्व मझले ॥ करोति कारयतीति कृ-क्विप तुगागमश्च । मायाकार, . राजन श्रीवचनो मात्र याश्च प्रापण्याचकः। वह जो माया करता हो। . ता प्रापयति या सद्यः सा माया परिकीर्तिता ।। मायाकोण्डा-महिसुर राज्यके चित्तलदुर्ग, जिलान्तर्गत माश्च मोहार्थवचनो याश्च प्रापणवाचनः। एक बड़ा गांव। यह अक्षा० १४ १७.१५उ तथा तं प्रापयति य नित्य सा माया परिकीर्तिता॥" देशा० ७६ ७२५ पू०के मध्य अवस्थित है । यहाँ . (ब्रहाव पर्तपु० श्रीकृष्णजन्म० २७ अ०)। १७४८ ई० में चित्तलदुर्गके पालेगार मदफेरो नायकके सथ .