मान्द्राज ४२६ लड़ाई छिड़ गई । अगरेजोंको कर्णाटक और तझोरके , था। महिसुरराज हैदर और उनके लड़के टोपू सुल- । राजासे सहायता मिली थो । उधर फरासियोंने भी तानके साथ अंगरेजोंका जो युद्ध हुआ उसमें अंगरेजों अपने निर्वासित एक राजपुरषको हैदराबाद सिंहासन ! को नाकोदम मा गया था। उस समय उन्होंने महिसुरसे पर विठा कर अपने पक्षको मजबूत कर लिया था। ले कर कर्णाटक तकके सभी प्रदेशों और अंगरेजी दुर्गफे • इस प्रकार असंख्य विप्लव और पड़यन्त्रसे दाक्षि- सम्मुख प्रदेशोंको लूटा। १७६६ ई में हैदरके साथ अङ्ग- णांत्यका इतिहास विशेष रूपसे परिवत्तिन हुया था। रेजोंका प्रथम युद्ध भारम्भ हुआ। २य युद्ध में अगरेज- 'अन्तमें फरोसी राजनैतिक डुप्लेका अभ्युदय हुमा । चे| सेनापति बेली हैदरके हाथ काश्चोपुरके निकट मारा कुछ समयके लिये दाक्षिणात्यके विभिन्न देशीय राज्योंके गया। इस समय सोपूने मलवार प्रदेशसे अंगरेजोको राजकीय मध्यस्थ हुए थे। विना उनकी सलाहके कोई कुछ दिनके लिये मार भगाया। जी देशी राजा स्वेच्छासे किसी कार्य में हाथ नहीं डाल काञ्चीपुरको यह विपद्वार्ता सुन कर बङ्गालके 'सकते थे। जब उन सामर्थ्य और मौभाग्य शीर्षः शासनकर्ता वारेन हेप्टिंगस्ने सेनापति कूटको मान्द्राज़ स्थान पर पहुंचा, उस समय इङ्गलैण्डके वीरपुत्र क्लाइव | दलवलके साथ भेजा। पोटोनभोके युद्ध में दोनों पक्षने इट-इण्डिया कम्पनीके कर्मचारिरूपमें मान्द्राज में रहते । वीरताको पराकाष्ठा दिखलाई धो। आखिर हैदर परा. थे। आर्यटके भोषण युद्ध में सेनापतित्व ग्रहण कर जित हो कर रणक्षेत्रसे भागा । तभीसे हैदरने . फिर 'उन्होंने जैसी घोरतासे अङ्गारेजीकी रक्षा की थी कि उसो फमो-भी अंगरेजों के विरुद्ध मन्त्र नहीं उठाया। १७८२ से उनका नाम इतिहासमें मशहर हो गया है। . . ईमें हैदरफे मरने पर उसका लड़का टोपू सुलतान राज. . लाइवको इसी विजयले भारतीय इतिहासका परिः । तख्त पर बैठा। इसके दो वर्ष बाद मङ्गलूरको सन्धिके वर्तन हुआ था। इप्लेफे फूटनीति कौशलसे हो इतने । अनुसार जिसने जो देश लिया था, पापिस कर दिया। दिनों तक फरासीका अधिकार दाक्षिणात्यमें निष्कएटक | १७६०ई० तक किसी भी पक्षने सन्धि नहीं तोड़ी। इस रहा। युद्धके बादसे हो अगरेजी कौशलसे उनके छपफे के बाद टीपू सुलतानने जव त्रियांकुड़को लूटा, तब लाई छूट गये । डुप्लेके बुद्धिविपर्ययको हो. इस अनिष्टका मूल कार्नवालिसने दलबल के साथ उनके विरुद्ध यात्रा कर जान कर फरासी-सभाने उन्हें स्वदेशमें बुला लिया। १७६१ ई० में वङ्गलूर दुर्ग अधिकार कर लिया। दूसरे .लाली और यूसी नामक सेनापति उन पद पर भारत- वर्ष टोपू सुलतान फिर भी पराजित हो कर अपना वर्ष आये। युद्धविद्या विशेष पारदर्शी होने पर भी 2 | आधा राज्य को बैठा। १७६६ ई०में यह फरासियोंके डुप्लेको तरह नीतिज्ञ नहीं थे। इसलिये वे विशेष दक्षता- साथ पड़यन्त्र करके अंगरेजोंके विरुद्ध खड़ा हो गया। से राजकार्य नहीं चला सके। . धोरडापत्तन अवरोधके समय मुलतानकी मृत्यु हुई। • ..१७६० ई०में फर्नल फटने वन्दिवासके युद्ध में लाली.] यहो इतिहासमें ४र्थ महिसुरयुद्ध कहलाता है। को हराया। अव दाक्षिणात्यमें अंगरेजोंका मुकावला. पहले ही कहा जा चुका है, कि १८घीं शताब्दीके करनेवाला कोई भी न रह गया । इस युद्धके वादसे हो | यारम्भसे यहां और किसी प्रकारका युद्ध नहीं हुआ। फरासी-शक्तिका हास होने लगा। दूसरे वर्ष महिसुर• ये सव प्रदेश मंगरेजोंके अधिकारमें रहने पर भी पलि. राजसहायता न ले कर हो पुदिवेरी पर अधिकार कर | गार-सरदार स्वाधीन होनेकी कोशिश कर रहे थे। लिया। तभीसे देशीय राजाओंके हृदयसे फरासीकी | पश्चिम उपकूलमें दुई नायर और माप्पिला जातिके भनधिकार चर्चाका भय जाता रहा। विद्रोहसे दोनों पक्षमें येहद खूनपरावी हुई थी। उत्तर- - इसके बाद- यद्यपि अगरेजोंको यूरोपीय शक्तिके सीमान्तवत्ती गबाम मोर विशाखपत्तनके पहाड़ी प्रदेश साथ युद्ध नहीं करना पड़ा, तथापि महिसुरके उन्मत्त बासी भी वागो हो गये। ,१८३६ ई०में गुमसुरफे सर- मुसलमानोंके संघर्षसे उन्हें विशेष-कष्ट भुगतना पड़ा! वारके वागी होने पर उसका राज्य छीन लिया गया। 'Trol, ITI, 108
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