मान्द्राज । ४२५ ।" उत्तर-पूर्वसे दक्षिण-पश्चिममें इसकी लंबाई १५० मोल गई हैं। पर्वतोंमें पूर्व और पश्चिमबाटश्रेणो, नीलगिरि, 'और चौड़ाई ४५० मील है। इस प्रेसिडेन्सीमें वृटिश-सर- आनमलय, पलनी, पालघाट और सेरवार गिरिमाला कारके खास शासनमें २२ जिला है तथा स्वतन्त्र यन्दो- उल्लेखनीय है। आनमलय शैलफ्रेणीका आनमुड़ी शृङ्ग 'यस्तसे गजाम, विशाखापत्तन और गोदावरीका एजेन्सी । (८८५० फुट) तथा नीलगिरिका दोदावेत्ता शिखर (८७६० विभाग एवं विवांकुड़, कोचिन, पुदुकोटा, बगनपल्लो और फुट) दक्षिण भारतको पर्वतमालाका सबसे ऊंचा सन्दूर नामक पांच सामन्तराज्य मान्द्राज गवर्मेएटके शिस्त्रर है। कत्तं त्वाधीनमें परिचलित होते हैं। पलिकाट हुद ही सबसे बड़ा हद है। यह उत्तर- 1... उत्तरको छोड़ कर वाकी तीन दिशामें समुद्र है। उत्तर दक्षिण में ३७ मोल विस्तृत है। मध्यदेश भागका सभी पूर्वमै चिल्कासे ले कर समस्त पूर्व उपकूल तक वङ्गोप- वाणिज्यद्रष्य इसी हद हो कर मान्द्राज नगर और उत्तर- सागर विस्तृत है । दक्षिण-पूर्व में अङ्करेजोंका सिंहल उप- दिग्यत्तों प्रदेशोंमें जाता है । कनाड़ा, मलवार और लिवां- निवेश, सेतुबन्ध और पाक्प्रणालो, दक्षिण और पश्चिम- कुड़-समुद्रके किनारे परके पहाड़ोंसे निकली हुई प्रखर में यथाक्रम भारतमहासागर और भरवसागर है। उत्तरी स्रोतवाली नदियोंके साथ समुद्रस्रोतके घात-प्रतिघातसे सीमा उत्तर-पूर्व से क्रमशः दक्षिण-पश्चिममें नीची होती | यहुतसे छोटे छोटे हद बन गये हैं। इनमें कोचीनका गई है। इसके पूर्वोत्तरसे उड़ीसा, मध्यभारतका पहाडी हृद सबसे पड़ा है। इस हदके दक्षिणसे एक नहर निकल प्रदेश. निजामराज्य तथा धारवाड़ और उत्तरकनाड़ा। कर कुमारिका अन्तरोप तक चली गई है। जिला इसको घेरे हुए है । महिसुरका मित्रराज्य मान्द्राज खनिज पदार्थों में विभिन्न जातिके पत्थर, कोयले, गप्रमेण्टके वदित होने पर भी भौगोलिक अवस्थानुसार लोहे, सोने आदिको खान यहांके विभिन्न जिलों में पाई चच एक प्रेसिडेन्सीफे अन्तर्भुत हो गया है । अलावा | जाती हैं। सालेम जिलेमें वढ़िया लोहे, बैनाड़ और इसके लाक्षाद्वीपपुआ भी मलवार और दक्षिण कनाड़ा कोलारमें सोने, मद्रावल और दमगुड़म नामक स्थान जिलेके शासनमुक्त हो जानेसे मान्द्राज प्रेसिडेन्सोका में कोयलेकी सान है। अलावा इसके नीलगिरि और मशविशेष समझा जाने लगा है। येल्लरीमें माङ्गनिज, पूर्वघाट पर्वत पर तावा, मदुरा ... दक्षिण भारतका मानचित्र देखनेसे मालूम होता है, चांदी और रसाअन, कावेरी नदीको उपत्यकामें पन्ना कि पर्वत, नद, नदी और वनमालासमाकुल इस विस्तीर्ण और उत्तर सरफारके स्थानयिशेपमें हीरा और अकोक भूभागका प्राकृतिक सौन्दर्य-स्थान विमिन भाव धारण | | मानिक पाया जाता है। वन्यविभाग शाल और महो. किये हुए है। पूष. और पश्चिमधार पर्वतमालाकी यन गनी वृक्ष ही अधिक है । वनविभागसे गवर्मे एटको फाफो मय दृश्यावलि संभाव सौन्दर्यको रङ्गभूमि है। नील- आमदनी है। गिरिको अधित्यका और उपत्यका भूमि निझरप्रवाहिणी मान्द्राजविभागका इतिहास समन दाक्षिणात्यके स्रोतस्पिनोसे परिष्याप्त हो फर मानवजीवनके लिये इतिहासके साथ जड़ा हुआ है। यथार्थमें द्राविड़नाति- विशेष स्वास्थ्यप्रद हो गई है। महिसुर निवांकुड़ विचिन- का प्रकृत इतिहास ले कर ही इस प्रदेशका इतिहास वना पलो आदि शब्दों में यहां के स्थानविशेषका प्राकृतिक इति है। किन्तु उपयुक्त इतिहासकारफे अभाव में ये सब हास दिया गया है। अतएव अनावश्यक समझ कर घटनाएं धारावाहिकरूपमें लिपिबद्ध नहीं हुई। यह उनका विवरण यहां पर नहीं किया गया। । जाति किस प्राचीन समयमें यहां आई थी उसका कोई • । नदियों में गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, पिनाकिनी, ! प्रमाण नहीं मिलता तथा किस जातिके साथ इनका पलार, फैग, येल्लूर और ताम्रपणी प्रधान हैं। अलावा निकट सम्बन्ध था, वह भी आज तक- मालूम नहीं इनके धारगिरिमाला और अन्याय पर्वतासे बहुत- हुमा है। सी छोटो छोटी स्रोतस्विनी निकल कर इधर उधर यह ! प्रातत्त्वयिद्गण अनुमान फरते हैं, कि रामायणोक्त rol. II. 107
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