४२४ पान्दानय मान्द्रान मान्दालय-उत्तर ब्रह्मकी राजधानी । यह अक्षा० २१. शासनप्रणाली यथेच्छाचार-भावपिन थी। राजगण ५६' उ० तथा देशा० ९६८ पू०फे मध्य ६०० सौ फुट बुद्धके सियां और किसीकी भी उपासना नहीं करते थे। 'उय एक पहाइके पाददेशमें इरावती नदीसे १ कोस दूर थियोने राज्यशासन सुलभावसे नहीं किया। अंग समतल भूमि पर अवस्थित है. सिंहासनच्युत राजा रेजो प्रजाके साथ अंसदथ्यवहार करनेसे के राज्यच्युत थियोफे पिताने १८६० ई०में राजधानी अमरपुरका त्याग हो वन्दिमायमै भारतय लाये गये। तभीसे ग्रहादेश पर मान्दालय में एक नई राजधानी वसाई । उस समयसे. अंगरेजोंके अधिकार में चलाया रहा है। ले कर १८८६ ई०की श्लो . जनवरी तक यहां स्वाधीन प्रम जबसे अंगरेजोंके अधिकार आयो, तवसे यहां ब्रह्मदेशको राजधानी रही। -पोछे मंगरेजोंने इसे कन्जा | बहुत परिवर्तन हुआ है। नगरके भीतर और बाहर बहुत- कर लिया।. . . . . . . . . . . | सं बाजार है। जनसंख्या दो लाख करोय है। यहां .. राजधानीका आयतन समचतुर्भुज सरीखा है। राज. सभी जातियोंका वास है। नगरके बाहर और भीतर धानोके चारों ओर २६ फुट ऊंची और ३ फुट चौड़ो। देहुतसे में और मन्दिरादि इधर उधर पड़े हैं। दीयार दौड़ गई है। : .... वती नदोके जलायसे यहांका याणिज्यकार्य चलता है। नगरमें प्रवेश करने के बारह द्वार हैं । प्रत्येक पाश्चम रपतनीमें राई, महोगनि लकड़ो, मिट्टोका तेल, चमड़ी, तीन तीन कर दरवाजे हैं। तोरणद्वारका ऊपरी भाग गुड़, हाथोके दांत, लाख, सींग, गेहूं, तमांक, पोला चन्दन' गुम्बजाकार लकड़ोके टुकड़ोले बना है। दो और तीन और चाय प्रधान है। प्रधानतः चीनदेशके साथ स्थल. 'तल्लेमें दुर्गरक्षाका अच्छा प्रबंध है। १०० फुट लंबी और पथसे बाणिज्य चलता है। ग्रादेशके साथ चीनकों ६६ फुट चौड़ी एक खाई राजधानीको चारों भोरस धेरै वाणिज्य ही उल्लेखनीय है । .. ... हुई है। यह साई हमेशा । गहरे जलसे भरी रहती शहरं में ८ सिकेन्द्री और ३ प्राइमरी स्यूल हैं। इनमें ६। उसंफो पार करने के लिये पांच पुल बने हैं। ये सव | सेएट पेटरका हाईस्कूल और सेएट जोसेफ, अमेरिकन पुल लकड़ीके इस प्रकार बने हैं, कि शनुके हठात् माग चैपटिष्ट मिशन स्कूल, यूरोपियन स्कूल और यूरोपियन मन पर वे सहजमें उठा लिये जा सकते हैं। वेसलिन मिशनका हाईस्कूल 'प्रधान है। स्कूल के अलावा __ राजमासाद नगरके ठोक योच में अवस्थित है। राज एक अस्पताल और जेगयो बाजारफे समीप एक चिकि- प्रासादको बाहरी' दीवार दुर्गको दीवार के साथ एक त्सालय है। सो in सीधमे चली गई है।. .::.:.:... मान्द्राज-दक्षिण भारतवर्षको एक प्रसिडेन्सी । फोर्ट अट्टालिकाका याहरो भाग २० फुट अची महोगनि संएट जार्ज नामक दुर्गके 'शासनभुक्तः समस्त दक्षिण लकड़ीकी दीवारसे घिरा है। इस प्रकार काठको दीवार- भारतको मान्द्राज प्रेसिडेन्सी. फहत भूपरिमाण के पर और भी कई पक ईटोंकी दीवारके वाद राजभवन १४२७०५ वर्गमोल है। मान्द्राज नगरमें मंगरंज सौदा वना आहा. .... ..E: गरीने पहले पहल उक्त दुर्ग यना कर कोठो खोलो थी। , धिपो १८७८ १० अपतृघर महीने पितृसिंहासन : वाणिज्यकार्यको रक्षाके लिये यहां एक गर्वनर रहते थे। पर बैठे। ये उक्त राजवंशके प्रतिष्ठाता पालम्पासे ग्यार.. तमोसे दक्षिणमारतके अंगरेजो इतिहासमै मान्दाज. हवे राजा थे। घंह्मयासियोंका कहना है कि जिस नगरकी स्थातिका प्रथम सूत्रपात हुआ। जब सारा भारत घंशमें युद्धदेवने जन्मग्रहण किया था. ये लोग उसी : वर्ष अंगरेजोंके हाथ गाया, तब दाक्षिणात्यक अधिकार शाक्यवंशके हैं। ६.१ ६० सन्फे पहले जव रामा अर्जुन को अक्षुण्ण रखने तथा विचार कार्यको परिचालना कर फपिलवस्तुमें राज्य करते थे उसी समयसे ब्रह्मदेशका इतिः प लिये उन्होंने यहां दाक्षिणात्यका राजपाट बसाया। हास आरम्भ हुआ है। अलगाने पूर्व राजाओंको भगा कर महिमुरमादि कुछ सामान्तराज्य, जिला और यन्य.' एक शताम्दी पहले सिंहासनाधिकार किया था। उनकी विभाग ले कर यह प्रेसिडेन्सी संगठित ) :
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