४१६ मानसिंह मंदिनीपुर जानेका हुकुम दिया और भाप अवशिष्ट सेना, आक्रमण कर दिया। राजा मानसिंह उनके इस अंसद्ध.. को ले कर सैयद खाँफे साथ जो मिले । अफगानी सेना व्यवहारसे ऋद्ध हो पुनः रणक्षेत्रमें उतरे। किन्तु दोनों इस आयोजनसे डर कर सुवर्णरेखाको पार कर गई और ही माफी मांग कर अपनी अपनी पूर्व सम्पत्तिका भोग . पहाड़ी प्रदेशमें जा कर शत्रुको प्रतीक्षा फरने लगी। करने लगे। दोनों पक्षमें युद्ध छिड़ गया। अफगानोंने नदी पार कर १००२ हिजरोमें सम्राटके. पौत्र सुलतान खुशरू . मुगलसेनाका नाश करनेका सङ्कल्प किया। इस · : उड़ीसाका शासनकर्ता यन कर बङ्गाल आये। राजा समय मुगलसेनाको गोलोसे कुछ अफगान तो नदीमें : मानसिंह सम्राटके मादेशसे युवराजके साहाय्यकारी हो : इय मरे और कुछ जमीन पर गिर कर पञ्चत्वको प्राप्त हुए। राजकार्यका पर्यवेक्षण करने लगे। उसी वर्ष घे सनारसे - पची खुची सेनाको भागते देख मानसिंहने उसका पीछा मिलनेके लिपे दिल्लीको चले गये। दिल्लीदरवारमें यथायोग्य . किया। जलेश्वर मानसिंहके हाथ लगा। मुगलसेना सम्मान लाभ कर वे पुनः बङ्गाल लौटे। , .... पति सैयद खां युद्धमें क्लान्त और कर्मचारीको जयस्पर्धा १००४ हिजरी में विहाराधिप राजा लक्ष्मीनारायण . से ईर्यान्वित हो विना मानसिंहकी अनुमतिके समरक्षेत्र मुगल वादशाहको अधीनता स्वीकार कर राजा मानसिंह का परित्याग कर तोड़ा लौटा। के समीप उपस्थित हुए। उनके आत्मीयवर्ग तथा ____ इस प्रकार सहायहीन हो कर भी राजा मानसिंहने . बङ्गालके अन्यान्य राजन्यवर्ग लक्ष्मोनारायणकी इस शत्रुका पोछा नहीं छोड़ा। अफगानोने भाग कर कटकहीनता पर क्रुद्ध हो उनके विरुद्ध लड़ाईको तय्यारी करने । के राजा रामचन्द्र के दुर्गमें आश्रय लिया। राजा मान लगे। फोनविहारपतिने कोई उपाय न देख मानसिंहः . ' सिंह उस दुर्गमें घेरा डाल कर जगन्नाथदेवके दर्शनके को शरण ली तथा आत्मरक्षार्थ सहायता मांगी। . लिपे पुरीधाम चले गये। इस सूत्रसे मुगलसेनाने कूचबिहार में प्रवेश किया। . ___ आत्मरक्षामें असमर्थ हो राजा रामचन्द्र और अफ- मुगलसेनापति जेहज खाँको इस विद्रोहदमनकाल में मोटी गागोंने मानसिंहको शरण ली। उड़ीसा मुगलसाम्राज्य. रकम हाथ लगी थी। . में मिला लिया गया। फुतलू खाँके पुत्रोंको पसियावाद ____ इस कृतोपकारके पुरस्कार स्वरूप राजा लक्ष्मीनारा- जागीर तौर पर मिला और रामचन्द्र कटकप्रदेशके यणने अपनी बहन को राजा मानसिंहके हाथ समर्पण शासनकर्ता बनाये गये। यह घटना १००० हिजरोमें किया। उसी साल घोड़ाघाटेमें राजा मानसिंह विशेष घटी थी। रूपसे पो ड़त हुए। मौका पा कर अफगानोंने उन पर युद्धविजयसे स्पद्धित हो कर मानसिंह दलवल के चढ़ाई कर दी, पर उनके दूसरे लड़के हिम्मतसिंहने साथ विहार लौटे। बङ्गाल और विहारका शासन उन्हें सुन्दरयन तक पदेरा । दूसरे वर्ष राजा लक्ष्मीनारा- करनेको इच्छासे उन्होंने राजमहल में राजधानी वसाई ।। यणको विपदमें डालनेके लिये फिरसे पड़यन्त्र रवा उनके यतसे प्राचीन हिन्दूराजधानी पुनः सौधमालासे गया। मानसिंहने अपने सालेकी रक्षा करनेके लिये विभूपित और सुद्गढ दुर्गसे सुरक्षित हुई। मुसलमानी. हाजिज खाँ नामक एक सेनापतिको कूचबिहार भेजा। इतिहासमें यह स्थान 'मकदर नगर नामसे प्रसिद्ध है। मुगलसेनाके आगमन पर विद्रोहिदल छत्रभङ्ग हो गया। 'इस समय उन्होंने भाटी 'प्रदेशको जीत कर 'ब्रह्मपुत्रके १००७ हिजरीमें सम्राटको दाक्षिणात्य जीतनेकी 'पश्चिमी किनारे तक समस्त पूर्वयङ्ग अपने दखलमें कर इच्छा हुई। इसलिये उन्होंने राजा मानसिंहको एक पत्र लिख मेजा कि, 'वङ्गालमें एक सहकारो रख कर तुम लिया था। विहार लौटते समय ये अपने पुत्र जगत्- सिंहको ससैन्य उड़ीसा-सीमान्तमें रख आपे थे। : जल्दी वडोय सेनाके साथ दाक्षिणात्यकी चढ़ाई कर दो।' आशा पाते ही मानसिंह अपने पुत जगसिंहको दूसरे वर्ष राजा रामचन्द्र पुनः मुगलराजके विरुद्ध | बङ्गालका सहकारी शासनकर्ता बना कर अजमीरमें 'खड़े हो गये तथा अफगानोंने भी सातगांव बन्दर पर कुमार सलीमसे मिलने चल दिये। उनका विश्वास था, कि
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