पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४४३

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पानवि-मानतुङ्ग मानकवि-चरखारोके रहनेवाले. एक वन्दोजन । ये , मालवराजको 'भक्तामर स्तयन' सुना कर प्रसन्न किया विक्रमशाह बुन्देला राजा चरखारीके दरबार में थे। था। 'भटिभर' प्रारम्भसूचक स्तोत्र भी उसीकी रचना मानकवि-एक कवि। ये वैसवारेके रहनेवाले ब्राह्मण है। प्रभावक चरितमें मानतुङ्गका चरित सविस्तार थे। इनका जन्म संवत् १८१८में हुआ था। इन्होंने लिखा है, किन्तु उनमें से कितने किंवदन्ती और अनैति- कृष्णकल्लोल नामक एक ग्रन्थ धन या और कृष्णखएडका हासिक वातोंसे पूर्ण है। वाराणसी में हर्पराजको सभामें अनेक छन्दोमें भाषा किया। इस प्रन्धमें इन्होंने कई याण और मयरके साथ .मानतुङ्गका तर्कयुद्ध चलाया। राजाओंको वंशावली भी दी है। यही विवरण बहुत बढ़ा चढ़ा कर प्रभावचरितमे लिखा मानकृत (स.लि. ) सम्मानजनक । गया है। भाषाकल्पसूत्रके मतसे मानतुङ्गका भकामर- मानकोट-शिवालिक पर्वतके अन्तर्गत एक छोटा सामंत- स्तवन ८०० विक्रम सम्वत्में रचा गया। किन्तु उज. राज्य । सम्राट अकवर शाहने ६६४ हिजरीमें इस समार अफवर शाहले ४ हिजरीमें इसयिनोसे १०३६ सम्वत्में उत्कीर्ण मालवराज वाकपतिको नगर पर चढ़ाई कर राजा भक्तमल्लको परास्त किया था। जो शिलालिपि पाई गई है उसमें मालवराजाओंकी मानकोड़ा ( स० खो०) सूदनके अनुसार एक प्रकारका तालिका इस प्रकार है,-१म कृष्णराज, २य वैरसिंह, ३य सियक, ४ अमोघवर्ष वा वाक्पति । (१०३६ स०) मानक्षति ( सं स्त्रो०) मान हानि । ____ मानतुङ्गरचित परिप्रहप्रमाण-प्रकरण और द्वादशवत. मानगांव-१ वम्यई प्रदेशके कोलावा जिलान्तर्गत एक , निरूपण नामक दो मागधी ग्रन्थ पाये जाते हैं। जो कुछ उपविभाग। भू-परिमाण ३५३ वर्गमील है। हो, उनके भक्तामरस्तोत्र और भयहरस्तोत्रका जैन- .. २ उक्त उपविभागके अन्तर्गत एक वड़ा गांव । यह ! पण्डित समाजमें बहुत आदर है । १३६५ सम्वत्मे जिन- प्रसिद्ध राजगढ़दुर्गसे १५ मील दूर पड़ता है। यहां साक प्रभसूरिने भयहरस्तोत्रकी तथा शातिसूरिने भक्तामर धर, महकूमेकी कचहरी आदि हैं। स्तोलको एक एक टोका लिखी थी। मानगृह (सं० पु० ) रूठ कर बैठनेका स्थान, कोपभवन ।। सिद्धजयन्तीचरित्रके रचयिता। उनके शिष्य मलय. मानग्रन्थि (संपु० ) मानस्य प्रन्पिरिव वाधकत्यात् ।। प्रभने १२६० सम्वत्में सिद्धजयन्तीचरित्रको टीका रची १ अपराध, जुर्म । २ अभिमानवद्धंन । है। मलयप्रभने अपने गुरुफे सम्बन्धमें लिखा है, कि मानचित्र (सपु०.) किसी स्थानका बना हुआ नकशा, । प्राग्वाट (पोवार)-वंशसे वट या वृहद्गच्छ उत्पन्न हुआ। जैसे ऐशियाका मानचित्र । इस गच्छमें सर्वदेवने आचार्य पद लाम किया। सर्वदेव. मानज ( स० पु०) १ क्रोध, गुस्सा । (पु.)२मानसे के शिष्य जयसिंह, जयसिंहके शिष्य चन्द्रप्रम, धर्मघोप उत्पन्न । और शीलगण थे। इन्ही तीनोंसे पूर्णिमागच्छ उत्पन्न मानत ( स० पु० ) पर्पटक, खेतपापड़ा । हुआ। मानतुङ्गने शीलगणसे दीक्षा ली। उनके एक मानतस् (सं० अय्य०) मान पञ्चम्याः सप्तम्या वा तसिल । और शिष्यका नाम प्रद्युम्नसूरि था। इन्दी प्रद्युम्नने मानसे या मान विषयमें। १२९२ सम्बत्में हेमचन्द्र के योगशास्त्रविवरण नामक मानता (.हि खो०) मनौतो, मन्नत । | अन्धके शेषमें लिखा है, कि मानदेव, मानतुङ्ग और पुद्धि- मामतुङ्ग स० पु०) इस नामके एफसे अधिक जैनाचार्य सागर ये तीनों ही चन्द्रफुलमें प्रधान आचार्य थे। उक्त और जैनप्रन्यों के नाम मिलते हैं, यथा-१ शातवाहन- अन्य के शेपर्मे २य मानतुङ्गको गुरुपरम्परा इस प्रकार राजके समसामयिक एक आचार्य 1 २ मालवके चौलुक्य-/ लिखी है,- राज वयरसिंहका एक मन्त्री, जैन-श्वेताम्यरोंका तपा. घुद्धिसागर, पोछे प्रद्युम्नसूरि, प्रद्युम्नके वाद देव गच्छ कुलोद्भव । तपागच्छ-पट्टावलीसे जाना है, कि) चन्द्र, देवचन्द्रयो याद मानदेव और पूर्णचन्द्र चौर सबसे उसने चाराणसी धाममें वाण और मयूरके फूहकसे मुग्ध । अन्तमें मानदेवके शिष्य मानतुङ्ग हुए। Vol. X.1.98