पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४११

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मातृशर्मण--मात्रा मातृशर्मण-एक प्राचीन वि। . कण भूपा, कानमें पहननेका एक आभूषण। ५वित्त, मातृशासित ( स० लि०) साना शासितः । स्नेहाधिपयात् । सम्पत्ति। ६ अक्षरका एक अवयव, वारहखड़ी लिखते केवल मालव शासितः। मूर्ख । । समय यह स्वरसूचक रेखा जो अक्षरके अपर या आगे मातृपेण-एक प्राचीन कवि । पोछे लगाई जाती है। काल विशेषसे उतना काल मातृष्वसा ( स० स्त्री०) मातृश्वस देखो। जितना एक हस्व अक्षरका उच्चारण करनेमें लगता है। मातृष्यस ( सं० वि०) मातुः स्वसा ( मातृपितृभ्यां स्वसा। "कानेन यावता पाणिः परति जानुमयडने । पादा।६४ ) इति पत्वं । मातृभगिनी, मौसी । मौमी सा मामा कनिभिः प्राक्ता हाय दीर्घप्लुता मता ॥" माताफै समान पूजनीया है। (प्राचीना.) "मातृवसा मातुलानी पितृव्यस्त्री पितृभ्यसा। जितने समयमें हाथ एक वार जानुमण्डल पर गिरता स्वथः पूर्व जपत्नी च मातृतुल्याः प्रकीर्तिताः ॥" है, उतने समयका नाम मात्रा है। ( दापभाग) तेलसारमें लिखा है- मातृष्यमेय ( स० पु. ) मातृष्वसुरपत्यं पुमान् मातृ "बामजानुनि तद्धस्तभ्रमण यावता भवेत्। वस ( मातृष्वसश्च । पा १२१३४ ) इत्यत्र 'छण प्रत्ययो । कालेन मापा शेया मुनिमिरेव पारगः ढकिलोपञ्च' इति काशिकोफ्तेः ढक । मातृश्यसपुव, । (तन्त्रसार) मीसेरा भाई। पर्याय-मातृश्यत्रीय । मातृप्यसेयी (स. स्त्री०) मातृभगिनी कन्या, मौसेरी वाए घुटने पर वायां हाथ रखनेमें जितना समय लगता है, उतने समयको पक माता कहने हैं। शब्दका बहन। उच्चारण करने में मावाका ज्ञान रहना बहुत जरूरी है। मातृप्यत्रीय (स'० पु०) मातृप्वसुरपत्यं पुमान् मातृथ्वस्- छण (पा १११११३४) मानआंगनीपत मौसेरा भारत मात्रा द्वारा ही हस्थ, दोध और प्लुतका उच्चारण मातृष्वस्त्रेया ( सं० स्त्री०) मौसेरी बहन। समझा जाता है। मातृसपनो (स'. स्त्री.) समानः पतिर्यस्याः सपती, "एकमात्रो भवेद्धवाद्विमात्रा दीर्घ उच्यते । मातुःसपनो । सौतलो माता, धिमाता। त्रिमावस्तु प्लुतोशे या व्यानं चार्द्धमाप्रकम् ॥" मातृसिंदी ( स० स्रो० ) यासकवृक्ष, अइसका पेड़ा । (व्याकरण) मातृसूनु-सुरोधपञ्जिका नामक बेदान्त ग्रन्थके रचयिता ।। हखस्वर एकमात्र है, जैसे--अ, इ, उ इत्यादि । दीर्घ मातृस्थान-प्रभासके अतर्गत एक तीर्थ । यहां विनायक स्वर द्विमाव. प्लुत विमान और व्यञ्जन अमात्र है। को मूर्ति प्रतिष्ठित है। हस्य एक स्वर है अर्थात् यह शब्द उच्चारण करने. मातृहन (सं० पु०) मातरं हन्नि (बहुतं छन्दसि । पा १२८) में जो समय लगता है उसे मातापरिमितकाल कहते हैं। -- इति इन् पियप् । मातृहन्ता, यद्द जो गाताबा हनन ! साफ साफ उच्चारण विना माताज्ञानके नहीं हो करे। सकता। सङ्गोतमें भो मात्राका शान रहना बहुत माल (सं० अव्य० ) मीयते इति मा त्रण! . १ कात्स्न्य, आवश्यक है, नहीं तो महोतफा ताल मालूम नहीं सफलता। ५. केवल, सिर्फ। ३ अवधारण, निश्चय ।) होता। मात्रराज ( अनङ्गहप), तापसवत्सराज नामक नाटकके ...८ छन्दका हस्व-दीर्घादि प्रभेद । ६ इन्द्रिय । इसके प्रणेता। द्वारा सभी विषयोंका अनुभव होता है, इसोस इसको माता (स० स्त्री० ) मोयनेऽनया मा (हुपामाश्रुभसिम्यनन् । मात्रा कहने हैं। १० इन्द्रियवृत्ति । ११ अवयव, मंग। उप-४१६८ ) इति खन् राम् । १ परिच्छद, हाथी, प्रोडा -१२ मक्ति। १३ रूप । १४ किसी चीजका कोई निश्चित आदि। २ अल्प, थोड़ा। ,३ परिमाण,, मिकदार । ४/ छोटा भाग। १५ एकवार म्नाने योग्य औषध। . ___Vol. XVII. 92