पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/४०३

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पातकः-मातृकाकुन्द वैष्णवपूज्य-मातृकागण- अजब दैत्य जमीन पर देर होने लगे, पर इससे भी

. "यत्र मातृगणाः पूज्यास्तत्र ोताः प्रपूजयेत्। - - असुरवंश समूल निवंग नहीं हुमा । एकके मरने पर

- सदा भागवती पौर्णमासी पनान्तरङ्गिका ॥ दूसरा अंधकासुर तय्यार हो जाता था। इस पर रुद्रको .. गला कमिन्द तनया गोपी वृन्दावती तथा। बाहुन क्रोध हुश्रा । क्रोधवशतः उनके मुखमण्डलसे एक • गायत्री मानसी.चाणी पृथिवी गौश्र वैषयावी। यतिशिखा निकली। यह वहिशिखा एक देवीरूपमें परि- श्रीयशोदा देवहूति देवकी रोहिणी मुला। णत हुई। योगेयरी उनका नाम रखा गया । यही योगे. श्रीमती द्रौपदी कुन्ती ह्यपरे ये महर्षयः॥ भ्वरी प्रथम और प्रधान मातृका कहलाती हैं। धीरे धीरे - रुक्मिपयाद्यास्तथा चाष्ट महिष्योगाश्च ता अपि " ब्रह्मा, विषणु, इद्र, कार्तिकेय, यम और वाराहरूपी विष्णु- (पद्मपुराण उत्तरा० ७८ १०) ने एक एक मातृका मूर्तिकी सृष्टि की। इस प्रकार कुल • भागवती पौर्णमासी, पना, अन्तरङ्गिका, गङ्गा, कलिंद मिला कर माठ मातृकाकी उत्पत्ति हुई। तनया, गोपी, गृन्दापती, गायत्री, तुलसी, पृथिवी, गो, शरीरमें जो काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मात्सर्य, वैष्णयो, श्रीयशोदा, देवहतो, रोहिणी, श्रीसती, द्रौपदी, पैशन्य और असूया नामक बाट पदार्थ हैं, वे अष्टमातृका कुन्ती और रुक्मिणी आदि अष्टमहिपो पे समो वैष्णयो- कहलाने हैं। इनमें काम योगेश्वरी, क्रोध माहेश्वरी, मातगण हैं। लोभ चैष्णवी, मद ब्राह्मणी. मोह कौमारी, मात्सर्य २गामी, गाय । ३ भूमि. पृथ्वी। । विभूति, ऐश्वर्य। ऐन्द्राणी, पशन्य दण्डधारिणी और असूया वाराही नाम- .५ लक्ष्मी। ६ रेवतो। ७ आखुकाणी, मूसाकानी। ८. से प्रसिद्ध है। उक्त माठ मातका जब उत्पन्न हुई तव । इन्द्रवारुणी। महाशायणी। १० जटामांसी । (त्रि०)। उन्होंकी एकत्रित शक्तिसे अवशिष्ट असुरोंका विनाश ११ परिमाणकर्ता, नापनेवाला । १२ निर्माणकर्ता, बनाने २ निमाणकत्ता, बनाने । हुआ। यह मातृकागण नमोसे देव मनुष्य दोनों ही वाला। लोकमें पूजी जाती हैं। माफ (संत्रि०)१ माता-सम्बन्धी। (पु० ) २. रेलवकर जो इन मातकाओंको पूजा करते हैं मातुल, मामा। उनके सभी अभीष्ट सिद्ध होते हैं। मातृकच्छिद (स.पु० , मातुः कं शिरश्छिनत्तीति छिद-क, पिलादेशात् मातृशिरश्छेदनादस्य तथात्यं । परशुराम । ___ मार्कण्डेयपुराणमें लिखा है, कि दैत्यपति शुम्भक मातृका (सं० स्त्रो०) मातेच मातृ (इवे प्रतिकृती ! पा ५॥३६६) सेनापतियोंके साथ,जव चण्डिका देवोका युद्ध हुआ, तब इति कन-टाए। १घात का, दूध पिलानेवाली दाई ।। ब्रह्मा, महेश्वर, कार्तिकेय, विष्णु और इन्द्र इनको अपनी मातेव मात -स्वाथै कन् । २ माता, जननो। ३ देयो । अपनी शक्ति अपने अपने वाहन, भूषण और आयुधके साथ "भेद । असुरका विनाश करनेके लिये समरक्षेत्र में कूद पड़ी। . मात, कागणकी उत्पत्तिके सम्बन्धौ वराहपुराणमें ब्रह्माको शक्ति ब्रह्माणी, महेश्वरको शक्ति माहेश्वरी, कार्ति- इस प्रकार लिखा है-पूर्व समयमें रुद्रदेवने अपने फेयकी शक्ति कौमारो, विष्णुशक्ति धाराही और इन्द्रशक्ति । त्रिशूलसे अन्धकासुरफा शरीर मिद डाला। किन्तु ऐन्द्राणी कहलाई थो। यह समवेत शक्तिपुञ्ज भी मातृका इससे उसका जीवन नष्ट नहीं हुआ, बल्कि शरीरसे जो | नामसे प्रसिद्ध है। .... .

लेह निकला उसमे असंख्य अन्धकासुरकी दृष्टि हुई। ४ वर्णमालाको बारहखड़ी। ५ कारण । ६प्रोचा-

• सदैव इस आश्चर्य घटनाको देख कर अपने विशलकी देशस्थ आठ गिराभेद, ठाउ परफी आठ विशिष्ट नसे। , नोक पर अन्धकासुरको उठा रणाईनमें नाच करने लगे।। ७ स्वर । ८-उपमाता, सौतेली मा। अन्यान्य जो सब अन्धकासुर समरक्षेत्रमें विचरण करते मातृकाकुन्द (संपु०) वैधफफे अनुसार गुदाका एक • थे, ब्रह्मा और विष्णु उनका संहार करने लग गये। फोडा या व्रण जो बहुत छोटे पोंको होता है। -- --