पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३८१

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माकरी-पाकोट ३३५ 'अण् कोप । माघमासकी शुक्ला सप्तमी, माकरी सप्तमी। इस तिथिमें स्नान करने और अयं देनेसे परलोकमे यह एक पुण्यतिथि मानी जाती है। करोड़ सूर्यग्रहणमें पुण्य तथा इहलोकमें आयु, आरोग्य और सम्पत्तिलाभ स्नान करनेसे जो फल होता है वही फल इस तिथिमे | होता है। भी गंगा-स्नान करनेसे होता है। स्नान सूर्योदयके समय इस दिन सूर्यदेव के उद्देशसे यदि रथयात्रा की जाय, करना चाहिये । इस दिन सात पत्ते येरके भऔर सात तो महापातक विनष्ट होता है ।* आकके ले कर सिर पर रखने चाहिये और निम्नोक मंत्र माकलि (सं० पु० ) १ चन्द्र, चन्द्रमा। २ इन्द्र के सारथी पढ़ना चाहिये। मन्त्र यथा-- मातलिका पफ नाम । "ओं यद्यन्नन्मकृतं पापं मया सप्तसु जन्मनु । माकप्टेय (सं० पु० ) मकष्टुका गोतापत्य । तन्मे रोगञ्च शोकञ्च माकरी हन्तु सप्तमी ।" माकारध्यान (स क्लो०) एक तरहको ईश्वरचिन्ता। (तिभितत्त्व) माकिस, (सं० अश्य०) मा, मत। स्नान के बाद सूर्य को अर्घ्य देना चाहिये । येरके पत्ते. माकी ( स० स्रो०) निर्मात्री, भूतजातको निर्माणकतीं। के साथ आफ.के पत्ते, दूव, राक्षन नथा चन्दन द्वारा अयं मारम--आसामप्रदेश लखिमपुर जिलान्तर्गत एक बड़ा तैयार कर निग्नोक्त मन्त्रसे अध्य देना होता है। गांव। यह बुडिडिहिंग नदीके किनारे जयपुरसे दश "जननी सर्वभूतानां सप्तमी सप्तसप्तिके। कोस पूर्वम अवस्थित है। यहां एक विस्तृत कोयले सप्तव्याद्दतिके देवि नमस्ते रविमपडले n" ( तिथितत्त्व)। और किरासन तेलकी खान निकलो है। अध्यं देने के बाद इस मन्त्रसे प्रणाम करना चाहिये। माकुति-मद्रास प्रदेशके नीलगिरि-शैलकी कुण्डमालाका •मन्त्र यथा- | एक शृङ्ग। यह अक्षा० ११२२ १५० उ० तथा देशा० "सप्तमप्ति बहुप्रीत सप्तलोक प्रदीपन । ७६३३ ३०"० समुद्रपृष्ठसे ८४०३ फुट ऊंचे पर सप्तम्याच नमस्तुभ्य नमोऽनन्ताय वेधसे ॥" (तिथितत्त्व) अवस्थित है। यह स्थान विनोद-विहारके लिये यड़ा ही उपयोगी है। इस शृङ्गो पश्चिम जो गहरा गड्ढा

  • "सूर्यग्रहणतुल्या हि शुक्ला माघस्य सप्तमी । है उससे यहांके तोड़ोंका अनुमान है, कि मनुष्य और

. . अरुणोदयवेक्षायां तस्यां स्नानं महाफलम् ।। मैंसको प्रेतात्मा यही हो कर यमलोक जाती है। ...माधे मासि सिते पक्षे सप्तगी कोटिभास्करा । माकुला (संपु० ) सुश्रतके अनुसार एक प्रकारका .. दद्यात् मानार्थदानाभ्यामायुरारोग्यसम्पदः ।। सांप। अरुणादयवेझायां शुक्ला माघस्य सप्तमी । माफूल (अ० वि०) १ उचित, बाजिय। २ लायक, योग्य । . . ग़गाया यदि लभ्येत सयंग्रहातेः समाः || ३ अच्छा, वढ़िया । ४ यथेष्ट, पूरा। ५ जिसने याद- कोटिभास्करा कोटिसप्तमीनुल्या सप्तम्या भास्करदेवता- विवादमें प्रतिपक्षीकी यात मान लो हो, जो निरुत्तर हो मत्वात् , सर्य ग्रहया फलं साननं । गया हो। ' , यस्मानमन्वन्तरादौ तु रथमापुर्दियाकराः । माकोट ( क्ली० ) तीर्थभेद । यहां दाक्षायणीकी पूजा माघमासस्य सप्तम्या तस्मात् साः रथसप्तमी।. करनेसे देवलोफको प्राप्ति होती है। . : अरुणोदयवसायां तस्यां स्नान महाफलम् ।। अयंदानपरिपाटो यया-

  1. माघमासस्य सन्तम्या देव शाम्बपुरं नराः।।

1. अपनः सवदरदूषितसचन्दनः ।। रथयात्रां प्रकुर्वन्ति सर्व द्वन्द्वविवर्जिताः॥ .. 2. , अष्टाङ्गाविधिनाचार्यों दद्यादादित्य तुष्टये ॥ गच्छन्ति तत्पद' शोत सूर्य मण्डलभेदकम् । । .... अशामध्यमापूर्दा भानोमूनि निवेदयेत् ॥ एतत्ते कथितं देवि शाम्यशापसमुद्भवम् । -: .. . . . । (तिथितत्त्व ) पापग्रगमनारल्यानं महापातकनाशनम् ॥" (वराह पुराण) Vol. XVII. 85