पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३८०

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पाइकेल पघुम्दन दा पाकरी . कैल गई । मे मुखर और मुपरित कालाने , परीक्षा उत्तीर्ण होकर इन्होंने मार्च मासमें स्वदेशी गे। यावा कर दी। भाट यो मादा एनेके बाद मधुण्दन फलकमा फलकत्ता पहुंच कर इन्होंने हाईकोर्ट में पारिती लौटे । चार वर्ष पहले तीन मानापिना परलोक्यासी आरम्भ कर दी। रिष्ट्रीय इन्दौने विशेष लाम नदी देगा, हो चुके थे। कराने मा कर ये निमहाय योर निग परन बन्दा मादित्यमें भारोधका पहुंचा। एडसे याद हो गये। उसके भागीय लोगाने ममाज और लौर कर ये सिर्फ : या जीवित रहे। इतने समय धर्मत्यागोको आश्रय नहीं दिया। मौभाग्ययगतः कुछ अन्दर इन्दौन नीतिमूलक करितामाला, हेहरषध और दिनों बाद इन्हें पुलिस मनिष्टके अधीन एक, मायापालनको रचना भारम्म कर थी, पर दुःका विषय किरानोका काम मिला। धीरे धीरे उनको तरको है.कि उनसे एक भी प्राध घे समान कर सके। गा। इस ममय मपाइपलमें भी काफी रुपये मिल शेप जीवन पे रिष्ट्रो ध्ययसायको छोट कर मिमि. जाने। । योनिसलमें अनुवादकका काम करनेको पाश हुप । १८५७० मारम्भमें उनका लिवा शर्मिष्ठा नाटक अन्तिम समय इनका बड़े ही फटमे योता । १८७३१०की प्रकाशित भा। कुछ दिनों को याद 'पद्मावती' नाटक। २०यों जून रयियारको मधुसूदन इस लोकसे चल बसे। और 'तिन्दोनमासम्मयफाग'को भी इन्होंने रचना की। गाई(हि० रखो.) मार देगी। इन सय प्रन्याम भी इन्होंने प्राचीन रौतिके पक्षपाती न माई ( हि स्त्री० ) १ माता, जननी। २ पट्टी या यही हो कर पाश्चात्य अन्धकारोंगो प्रर्तित रोतिका दी अनुः सी लिये मादर सूचक शब्द। सरण किया था। माउलक्ष्म ( म० पु०) हिकमतमें मांसका पना दुमा एक १८६१ ३०में मधुसूदनने यसाहित्य में सुप्रसिद्ध मय प्रकारका भरका यद यहुन अधिक पुटिफारक माना जामा गाय कायको रमना की। भाषाफे लालित्यमायक! और इसका व्यवहार प्रायः जाके दिनों में शरीरका और गासीय तथा नारिल समूह यादि गुणसि । यल पाने के लिये होता है। या प्रा मोत्यार हो गया। इस समय एक ओर जिस मान्य (सं० पु. ) मातीनि मा किमा: परिमिता गुप- प्रकार उनको प्रतिमा पूर्ण यिफाश था, इमरी ओर! रितः कन्द य फल ! माश, मामका पेड़। उसी प्रकार उनकी पाश्चात्य भायमयणना भी मपूर्ण २मानान्द देगे। अपणे देगी जाती यो । मेगनादव, रामचन्द्रका माकन्दी ( सं खो०) माकन्द-डोष । १ मामलको, यमालय दर्शन, प्रमिलाका विक्रम आदि यर्णन युरोपीय !' मायला। २एक गांपका नाम । युधिष्ठिरत दुर्योधनः माहित्यमे लिया गया है। इसके बाद इन्दन दा राज- । म जोपांन गांव मांगे थे उन पर माकन्दो मी । प्रधानसे वियोगान्त कृष्णपुमागे नाटर, आरमविला (भार. १२२५) और पोराङ्गना काणको रनना की। पौरागना फाम्पमें मगइनकी प्रतिमाका पूणे निकाल लक्षित होना है। ३ पौनचन्दन, पोन्टा नन्दन ! ४ माद्राणी, मंगनी । १८६२ १०को यो जनको मधुम्दनने कोरिया पहनी, माइनी, गरयलिया । गुप-कट, नामा 8 पर मददगी यात्रा कर दी ! १८६२ लिटा, मधुप दोपन, गरिझर, मल्ययातकारक भार पप्प। १० जुलाामासफे मेगा ये गए पहुंचे और tiray's (पति) Tumit करन्ट्री परीक्षा लिये प्रस्तुत प मारम्द (म० fro) मकरन्द पुषको नियाम मागधीप। हम समय गोमांमारने उनका पीछा नहीं छोड़ा ! मार । म नि मर गए । मार-सरधोग। सपा गागर पिपामागा परि महापाम करतं, सो माग (मी ) मामा ' चमी गो परीक्षा गदी दे माले धे। १८६० परिधी मापसे (सं. ) मारयुगा पौर्णमासम्पनि मार