पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/३१९

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कर दी। महिषासुर २८१ करने लगा। भगवतीने प्रसस हो कर अपने दर्शन शानशक्तिके हाथसे अज्ञानमूर्ति महिषासुर मारा गया । दिये। , तब महिगमरने प्रणाम कर उनसे कहा, 'देवि! मार्कण्डेयपुराणके चण्डो माहात्म्यमें लिया है.-- मैंने स्वप्नमें गैसा देखा है, यह टलनेको नहीं, फिर उस- पूर्वकाळमें देव और असुरोंमें सौ वर्ष तक युद्ध चलता से मैं क्षध भी नहीं हूं। मैं तीन मन्वन्तर काल | रहा। उस दीर्घकालव्यापी युद्ध में देवताओंकी अमुरों- तक निष्कएटक सुरामुरका राज्यभोग कर चुका, भोग- के हाथसे अच्छी तरह हार हुई। पोछे असुराधिपति सुखको अब मुझे जरा भी लालसा नहीं है। आपसे महिप स्वर्ग से देवताओंको भगा कर स्वयं इन्द्र बन गया मेरी अन्तिम प्रार्थना यही है, कि जिससे समो योंमें। और वहांका शासन करने लगा । अब देवगण मत्त्यलोकमें मेरी पूजा हो और मैं सर्वदा मापके चरणोंको सेवामें मर्त्य चाप्तीको तरद विचरण करने लगे। कुछ समय बाद निरत रह, यही वर मुझे दीजिये।' देवीने उत्तर दिया, वे ब्रह्माको आगे करके जहां हरि और हर विराज करते 'महिषासुर! यशका भाग कुछ शेष न रह गया, कुल थे, यहीं पहुंचे। देवताओंने महिषासुरको अत्याचार- देवताओं में बांट दिया गया। जो कुछ हो, मैं तुम्हें कहानी उन्हें आद्योपान्त कह सुनाई । महिषासुरने अपनी पद-सेवामें निरत रसूगा और जहां जहां मेरो | अपने वाहुघलसे इन्द्र, यम, कुवेर, वरण और अग्नि यादि पूजा होगी, यहां यहां तुम भी पूजे जागोगे।' इतना कह देवताओंको अधिकारभूमि छीन ली है, सुन कर तथा कर भगवतीने उप्रचएडा, भद्रकालो और दुर्गा इन तीन ! देवतायोंको शरणापन देख कर हरि और हर दोनों ही मुत्तियोंके साथ साथ महिपासुरको पूजाको व्यवस्था मागयबूले हो गये। उन्होंने सभी देवताओं के शरीरसे सुमहत् तेज निकाल कर उसे एकल किया। अब उस वामनपुराणमें लिखा है.-रम्म और करम्भ नामक ) तेजपुअसे एक अद्भुत नारोमूर्तिका आविर्भाव हुभा। दो प्रवल पराक्रम असुर पञ्चनदके जलमें पैठ कर पुत्र- उस हजार भुजावाली भोषण, फिर भी प्रशान्ताति लामकी कामनासे कठोर तपस्या कर रहे थे। इन्द्रने देवीमूर्तिको देख कर देवताओंने उन्हें अपने आयुधादि तपस्यासे भय खा कर कुम्भीका रूप धारण कर करम्भ- देकर सम्मानित किया । इस समय देवी खिलखिला का विनाश किया। भ्रातृवियोग पर रम्भ बहुत दुःखित फर हंस उठों। सीके शब्दमे जल, स्थल, शैल, हुभा और अपना शिर काट कर अग्निमें होम करनेको फानन और वसुन्धरा कांप उठो । देवताओंके भाशाका उधत हो गया। यह देख कर अग्निने उस दारुण , संचार हुआ। वे सबके सब भक्तिपूर्वक सिंहवाहिनी. अध्यवसायसे उसे रोका और अभिलपित पर मांगनेको) की स्तुति करने लगे। कहा । रम्मने अग्निकी यात मान ली भोर एक विलोक्य उधर महिपासुरने भी घोर गर्जन किया। यह दलबल. विजयी पुनके लिये प्रार्थना की। अग्निदेव 'तथास्तु' के साथ विपुलविक्रमसे विविध मायुधोंके साथ युार्थ कह कर अन्ताईत हो गये। पर पा कर रम्भ गद्गद् देवोके सामने खड़ा हो गया । फिर क्या था, दोनों में हो गया और अपने घर लौटा। राहमें एक युवतो घोर संग्राम चलने लगा। वह देर तक विविध युद्ध के महिपिको देख कर वह कामपीड़ित हो गया। सभके बाद संहारिणी देवीके हायसे वास्कल, असिलोमा और संसर्गसे मदिपीक गर्भ रहा। उसा गर्भसे यथासमय विडालाश आदि महिषासुरफे सेनापतियों द्वारा परि- देवासुरविजयी मायावी महिपासुरने जन्मग्रहण किया। चालित सैन्यदल मारा गया। देवगण बड़े प्रसा हुए । (वामनपु० १७ म०) आकाशसे पुष्पष्टि होने लगी। अनन्तर सैन्यदल और सेना- वराहपुराणमे लिखा है-स्वायम्भुव मन्वन्तरमें देवी पतियोंमेंसे एक एकको देवोफे हाप निहन और निगृहीत धैष्णयोने मन्दर पर्वत पर दैत्य महिषासुरको मारा । पोछे होते देख विस र गौर चामर याद महिपामुरके प्रधान वही महिषासुर पुनः चेतासुर नामसे उत्पन्न हुआ। देयो । प्रधान सेनापति देयोके माथ लड़ने लगे।" नन्दाने विन्ध्याचल पर उसे मी मारा, अर्थान् यो कहिये, उनके घोड़े, हाथी, ematram Tol. AVII, TI