पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२९७

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महावीरहामी करते हुए स्वामी संसार त्याग करनेका दृढ़ निश्चय करने : लगे । सो और विच्छुओंका डंसना, धूल, मिट्टी, लगे। -यथा- पानीका घरसना, विजलीका फड़कना, स्त्रियोंका दायभाय "यद्यनेनापविनेण पवित्रा गुणगशयः। और शृङ्गार दिवाना, पिशाचोंका नाचना आदि घंटों तक ... कैवल्याद्याः प्रसिद्धयति तत्काये का विचारणा " स्थाणुने अनेक उपाय किये कि किसी तरह प्रभुका मन ___"यदि इस अपवित्र शरीरसे पवित्र गुणोंके समूह। ध्यानसे चलायमान करें और उनके क्रोधादि पैदा हो केवलज्ञान केवलदर्शनादि सिद्ध हो सकते है, तो इस ' जाये। परंतु किसी तरह भी ये सफल काम न हुप । कार्यके करने में विचार हो क्या करना ? - भगवान् महावीर उसी तरह तपल्या दृढ रहे, जिस • स्वामोके इन पवित विचारोंका पता लौकान्तिक देवों- तरह विना उपसर्गके रहते थे। उन्होंने अपनी आत्माको को लगाये तुरन्त हो मा कर भगवान्को प्रशंसा करने अजर, अमर, अविनाशी, अच्छेद्य अनुभव कर शरीरकी 'लगे, जिससे उनका निश्चय और भी दृढ़ हो गया। भग- क्रियाओंको पुद्गलकी क्रिया जान कुछ भी क्षोभ न किया। वान उसी समय राजपाद, माता-पिता, कुटुम्यादि सर्वस्व स्थाणु अपनी परीक्षा में हार गये और अनेक प्रकार त्याग कर तपस्या करके मोक्ष प्राप्त करने के उद्देशसे वन- विनती कर क्षमा प्रार्थना की। फिर यहाँसे बिहार को चल दिये। करते हुए ये कौसांवी नगरी गये । यहां एक सेठ

- नगरके लोग धन्य धन्य करने लगे। पिता पूर्ण वृपभसेन बहुत धनी थे। उनके यहां प्रभुने आहार

..शानी थे, उन्होंने ऐसा ही होनहार जान कर सन्तोष प्रहण किया । इस प्रकार भ्रमण करते हुए वैशाख धारण किया। परन्तु माता निशलाको तोय मोह था, थे। शुक्ला दशमोको अपराहके समय 'जम्मिका' प्रामके याहर , अनेक सखियोंके साथ रोती हुई भगवान्के पोछे पीछे 'ऋजुकूला' नामक नदीके किनारे पहुंचे और यहां चलीं। यथा- शालवृक्ष के नीचे विराजमान हो कर प्रभु ध्यानमान . "रोदनं चेति कुर्वाण्या यन्धुभिः सममाधीः।" हो गये। वहां भगवानने चार घातिया कर्माको नष्ट कर आखिर जब युद्धिमानोंने संसारका स्वरूप समझाया, ' 'केवलज्ञान प्राप्त किया। तव माताका चित्त कुछ कुछ स्थिर हुया और ये सखियों अनन्तर द्रादि देवोंने समशरण रचा, उसमें प्रभु सहित अपने मन्दिरको लौटी। मतरीक्ष ( अघर ) सिंहासन पर विराजे। भगवान्क . इसके दाद भगवान महावीरने अपने हाथोंसे मस्तक दर्शनार्थ विदेहदेशमें प्रसिद्ध इन्द्रभूति, वायुभूति, अग्नि- के तथा श्मधुके केश उपाड़ डाले और शिशुवत् नग्न हो । भूति नामक यड़े दिग्गज ग्राह्मण पंडिन अपने सैकड़ों कर (मार्गशीर्ष कृष्णा १०मोको ) त्रयोदश प्रकार चारित्र । शिष्यों को ले कर आये और प्रभुके शिष्य हो गये। प्रभ धारण कर मुनि हो गये। | शिष्योंमें २८००० मुनि और ३६००० किार तथा एक ___ मनन्तर बहुत दिन बाद भगवान् विहार करते हुए लाल धावक और तीन लाख श्राविकार थीं। सबमें एक थार. उजयिनी नगरीके धाहर श्मशान भूमिमें पहुंचे मुख्य थे द्रभूति, जिनका प्रसिद्ध नाम गौतमस्यामी और यहीं तप करने लगे। उन्जयिनी में उन दिनों ११वें हुआ।सुधर्माचार्य, घायुभूति, अग्निभूति आदि ११ गण. , रुद्र स्थाणु नियास करते थे, इनको ही रोका नाम | धर और हुये। अर्जिकाओं में मुख्य सती चन्दना हुई। पाती था। पहले ये बड़े मारो तपस्वी थे। जब इनको भगवान्का दिव्य उपदेश जीयोंक पुण्यके उदयसे दिन मंत्रादि विद्याए सिद्ध हो गई, तब ये कामाशक्त हो विच- रातमें चार बार छः छः घडोके लिये धारामयाह मेघकी लिन हो गए । श्मशानमें महावीरस्वामीको ध्यानमग्न देव, ध्वनिके समान होता था। इस उपदेशको देय, देवा, कर आप विचार करने लगे, कि.ऐसे पुरुषका मन कितना मनुष्य, स्त्री, पशु आदि समस्त प्राणो द्वादश सभामों में ध्यानमें गढ़ है, इस वातकी परीक्षा करनी चाहिये । वस, बैठ कर अपनी अपनी भाषा सुनते थे। श्रोताओं में । आप अपनी विधाके पलसे नाना प्रकारके उपसर्ग करने । मुम्प राजगृह नगरके म्यामी राजा पिक Vol. III, 67 .