पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२६५

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महाराष्ट्र २३५ 'चौय'के लिये प्रार्थना करते थे। अन्तमें सन् , लिये उसने उन लोगों को दक्षिण-भारतस्थित मुगलं- १६६८ ई०में मुगलों के आक्रमणके भयसे भयभीत हो | शासित प्रदेशके सरदेशमुखी सत्य यो समप्र राजस्वके दक्षिणके सुलतानों ने चीथस्वरूप आठ लाख रुपये दशमांश-वार्षिक १ करोड़ अस्सी लाख रुपया देना शिवाजीको देना स्वीकार किया। इस पर शिवाजीने | स्वीकार किया। इसके लिये सरदेशमुखकी तरह अपने उनको रक्षाका भार अपने ऊपर लिया उस समय केवल सैन्य द्वारा दक्षिण भारतके शाही प्रदेशों को शान्तिरक्षा- शिवाजीकी सहायतासे ही विजापुर और गोलकुण्डाके को भार उन्हें लेनेको कहा गया। किन्तु इस पर मरहठे सुलतानोंने मुगलों के भीषण आक्रमणस रक्षा पाई थी। सम्मत और सन्तुष्ट नहीं हुए। ये सरदेशमुखीके साथ । इस तरह सर्वसम्मतिसे पहले पहल दक्षिणमें "चौथ". ' शिवाजीकी चलाई उस 'चौथ' प्रथाके प्रवर्तन के लिये की प्रथा प्रचलित हुई। बादशाहसे प्रार्थना करने लगे। क्योंकि उस समय . यह कहनेकी आवश्यकता नहीं, कि यात्मरक्षानीति- । देशमें जिस तरह असंख्य राज्यों और स्वातन्वाप्रिय के यशवत्ती हो कर राजनीतिज्ञ शिवाजोने इस चौथः। पुरुषों का आविर्भाव हुआ था, उससे यथोपयुक्त सैन्य प्रथाका उदभावन किया था। उन्होंने समझ लिया । न रखनेसे देशमें शान्ति तथा मरहठों की रक्षाको सम्मा- .था, कि दूसरे राज्यको रक्षाका मार ले उसके बदले में । वना न थी। किन्तु सम्राटकै चौथप्रथाके स्वीकार म चौथ न लेनेसे भारतमें महाराष्ट्र शक्तिको प्रतिष्ठा नहीं करने पर फिर दोनों पक्षों में युद्ध आरम्म हुआ। मतमें . हो सकेगो। कारण, इसके द्वारा प्रथमतः परराष्ट्रफे। १७१० ई में औरङ्गजेवके पुत्र फससियरमे आंशिक ध्येयसे महाराष्ट्रों की सैन्य संख्या और सामरिक बल रूपसे और उसके बाद सन् १७१६ ईमें सम्राट महम्मद .पढेगा। दूसरे जो राज्य महाराष्ट्र सेनिकों से रक्षित शाहने सम्पूर्णरूपसे मरहठों को सरदेशमुखी सत्त्व तथा होगा, उन सब राज्यों से महाराष्ट्र राजशक्तिकी विशेष कोई । चोथ प्रथाके चलानेके लिये सनद प्रदान की। बाजीराव अनिएको आशडा न रहेगी। तीसरे 'नीच' नामसे शान्ति, पेशयाके पिता बालाजी विश्वनाय स्यय दिल्ली जा कर रक्षाका चेतन होने पर भी कार्यता वह सामन्तों के निकट । शेषोक सनद ले आये। प्रधान राजशक्तिका प्राप्त 'कर' समझा जाने लगा । इति- सनद लाम करके भी मरहठे सर्वत्र चौथ प्रथाको हास पाठकों को अविदित नहीं, कि ईस्वीसन्से १८वी प्रचलित कर न सके। दिलोके बादशाहके सूबेदारीने शतादीके प्रारम्भमें मार्षियम आफ पेलेसली साहबके। और दूसरे स्वातन्ता-प्रिय राजाओंने भी विना द्वारा प्रवर्तित "सस्सिडियरो सिष्टम' भी इसी नीतिके | महाराष्ट्रोंकि रक्षणाधीन स्वीकार करने में असम्मति प्रकट आधार पर हुआ था । जो हो, सन् १६८० ई०में शिवाजी | को। निजाम उल-मुल्क इनमें प्रधान था। इसीलिये .के स्वर्गारोहणसे पहले ही दक्षिण भारतकी सभी बीस वर्षों तक उसके साथ मरहठोंको लड़ना पड़ा हिन्दू-मुसलमान राजशक्तियों को सम्मतिसे उनकी था। याजीराव पेशवाने इस युद्ध में विशेष प्रसिद्धिलाम रक्षाका भार ग्रहण और उसके बदले में चौथ वसूल करने किया था। ध्योंकि मरहठोंफ एकमात्र ये ही नेता थे। को प्रयान जोड़ पकड़ लिया था। मरहठोंसे वारंवार माक्रान्त हो कर निजामशो उनकी . शिवाजीको मृत्युके बाद सम्राट् औरङ्गजेब मरहठों रक्षणाधीनता और चौथ प्रथाको स्वीकार करना पड़ा की स्वतन्त्रताको अपहरण कर उनकी शक्तिको चूर्ण- 1 था। इसके याद दक्षिणके सभी छोटे बड़े राजाओको विचूर्ण करने के लिये यथासाध्य चेष्टा करने लगे। किंतु | मी मरहठोंकी प्रधानता स्वीकार करनी पड़ी । फलता स्वाधीनता-प्रिय महाराष्ट्रीय वीरों के असाधारण शौर्य धालाजी विश्वनाथने मुगलोंसे भपने स्वदेश-यासियोंके गुणसे उसके सब यत ही विफल हुए। बीस वर्ष युद्ध लिये जो सनद प्राप्त की थी, उनको जीवनश्यापो चेष्टाके करनेके बाद सन् १७०५ ई०में सम्राट्ने उनको सनद फलसे ही मरहठे उस यथार्थ फलभोगके अधिकारी प्रदान की थी । पर उन्होंने देशको अशान्ति दूर करनेके पथे।' . . . . . . :