पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२६१

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पहाराष्ट्र २५१ दरियासागर, मैनाक भण्डारी और इब्राहिम ग्याँ आदिके सम्भाजीके कर्मदोपसे यह उसी परिमाणमें रसातलको नाम महाराष्ट्र एडमिरल वा नौसेनाध्यक्षों के मध्य इति- चला गया । सम्भाजी शौर्य और सामथ्र्य हीन तो हासमें बहुत प्रसिद्ध है। | नहीं थे, पर उनकी घोर ध्यसनासक्ति और प्रष्ट . नवप्रतिष्ठित महाराष्ट्र राज्यको राजस्व व्यवस्था भो । राजनीतिहानके अभावसे सारे महाराष्ट्र समाजको - मजाके पक्षमें सुखकर थी। पहले प्रजामण्डलो उपजका ३। विपश्न होना पड़ा था। शाहजादा अकवरको उन्होंने भाग मालगुजारोमें देती थी, पर अब नगद रुपये देनका आश्रय दिया था, इस कारण औरङ्गजेब स्वयं १२ लाख 'नियम जारी हुआ। पहले ठेकेदारों के ऊपर मालगुजारो (काको खाके मतसे २० लाख ) सेना ले कर दक्षिणपथ • उगाहनेका भार था. पर इस समयले सरकारी कर्मचारी जितनेके लिये १६८३ ईमें नर्मदा नदी पार हुए। स्थय उगाहने लगे। दीवानी मुकदमेका फैसला ग्राम्य सम्माजोको व्यसनासक्त देख कर अंजोरामें सिहोने पंचायत द्वारा ही होता था। विशेषज्ञ महरेज राज. और गोमा पुर्तगालोंमें सर उठाया । इन सय शत्रुओं- नीतिज्ञ भी कहते हैं, "In provinces in which the के साथ जो युद्ध हुआ था उसमें सम्माजीने असाधारण laws of Shivaji remained in force, there was धोरता दिखलाई थी। किन्तु उनको यह मालूम नहीं था, nothing to improve but imuch to invitate," कि वहुतसे शत्रुके उपस्थित होने पर एकसे युद्ध और समूचा राज्यधारह महालोंमें विभक्त था । महालके दूसरेसे सन्धि करना उचित है। इस विषयमें घे अष्ट अध्यक्ष वार्षिक ४ सौ होन पाते थे । राज्यकी वार्षिक आय प्रधानको सलाह भी नहीं लेने थे । सिद्दा, पुर्तगीज ५३ लाख रुपयेकी थी। अलावा इसके मुगल राज्यसे, और अगरेज आदि शनुओं के साथ युगपत् समर आरम्म कर (चौथ) और लूटका माल भी माता था । मरहठोंको , करके भी उन्होंने असाधारण शौर्य बलसे सबोंसे अनु. धर्मोन्मादकताके फलसे यह नया राज्य प्रतिष्ठित होने पर कूल संधिपत्र ले लिये थे। इन सब युद्धप्रसङ्गमें महा. भी इसलाम धर्म पर आघात करने की मरहठोंने कभी भो राष्ट्रीय नौसेनाने अलौकिक समर कौशल दिखलाया कोशिश नहीं को । मुसलमानोंकी मसजिदकी देख भाल, था। गोमाके निकट कोएडदुर्ग में पुर्तगीजों के साथ खर्च वर्ग और मुसलमानोप्रजाको आध्यात्मिक उतिक जो युद्ध हुआ उसमें मरहठोंने पुर्तगीजोंके दो सौ यूरो. लिए शिधाजीने भूमिदानको व्यवस्था कर दी थी। पीय और एक हजार देशीय सैनिकोंके सिर काट डाले इस विप्लवपूर्ण समयमें भी महाराष्ट्रपतिका देशमें थे। औरङ्गजेब उस समय यदि दक्षिणपथमें न रहते तो विद्याप्रचारकी ओर विशेष ध्यान था। टोल पाठशाला : सम्भव था, महाराष्ट्रगण पुर्तगीजोंको समूल नष्ट कर मादि खोलनेके लिए शास्त्रज्ञ ब्राह्मणोंको राजकोषसे देते। वार्षिक वृत्ति मिलती थी। संस्कृत और मराठी भाषा- १६८३ ई०में औरङ्गजेयको मुगलसेनाके साथ धाग- . में प्रन्य-रचनाके लिये ग्रन्थकार राजास पुरस्कार लानमें मराठोंका घोर युद्ध हुआ। मराठोंने इस युद्ध में पाते थे। । मुगलोंको नितान्त जरित कर दिया । सुप्रसिद्ध निजाम

शिवाजीको मृत्युके बाद महाराष्ट्र समाजका नेतृत्व | उल मुल्क जव बहुतसे प्रसिद्ध सेनापतिओंके साथ राम

दुर्भाग्यवशतः सम्भाजोके हाथ आया। एकनाथ ओर सेज दुर्ग जीतनेको गये, तवं उन्हें मराठोंके हाथ से हार . रामदास आदि ब्राह्मणों के धर्मभावको उत्तेजनासे, तानाजी | सा कर लोट जाना पड़ा। शिवाजीके शिष्य हम्मीर राय मालसरे और प्रताप राय आदि क्षत्रिय वीरोंके वाहुयल- मोहिते इस समय मराठा सैन्यदलके अधिनायफ थे। से तथा घालाजी निटनोस आदि कायस्थो के नोति- कोकण जोतनके लिपे मुगलौके कदम बढ़ाने पर महा. कौशलसे शिवाजी जैसे प्रतिभाशाली धर्मप्राण राजाके राष्ट्रीय सैन्यदलने अव्यवस्थित युद्धनोतिका अवलम्बन नेतृत्वाधोनमें महाराष्ट्र राज्य जिस परिमाणमें उन्नति कर उन्हें ऐसा विपन्न कर डाला, कि भागनेका रास्ता की चरमसीमा तक पहुंच गया था उनके दुत्त पुत्र) मो नहीं मिला । असंख्य मुगलसेना मराठा सैनिक