पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२५९

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महाराष्ट्र मुगलों के साथ युद्ध ठान दिया। मराठों ने अलौकिक साथ मित्रता करके शिवाजीने पाश्चात्य नौविद्या और उत्साह और बलवीर्य दिखलाते हुए सिंहगढ़ आदि | जलयुद्धका कौशल सीखा। पीछे उन्होंने कोलो नामक बहुतसे दुर्गम गलो के हायसे छोन लिपे। दिल्लीके | धोबर जातिको ले कर एक महाराष्ट्रीय नौसेना दलका बादशाह औरङ्गजेवको भी शिवाजीको स्वतन्त्रता स्योकार संगठन किया । अन्तमें इमो नौसेना हायसे अगरेजों करनी पड़ी। महाराष्ट्र में स्वाधीन हिन्दू राजाका स्वतन्त्र और पुर्नगाजोंको कई बार परास्त होना पड़ा था। सिका चलने लगा। मराठों को इस पर मो संतोप। इससे बाद शिवाजीके मैन्यदलने कर्णाटकको जीत नहीं हुआ । इस समय स्वदेशवासियों मेंसे कितने कर स्वराज्यकी मीमा बढाई। इस प्रकार मरहठोका उनके साथ मिल गये थे, इस कारण आत्मद्धि देख कर। उत्कप देख मुसलमान जलने लगे और उनका दमन वे लोग खान्देशसे मुगलों को भगानेकी कोशिश करने करनेको तुल गये । बहुत जल्द लड़ाई छिड़ गई । मुगल- लगे। सालर और चन्दरमें मुगलों को पूरी तरह हार ' सेनापति दिलर बांको शिवाजोके क्षाथ पराजय स्वीकार हुई (१६७० ई०में)। - फरनी पड़ो। इस चढ़ाई के बाद ही अधिक परिश्रमके __ अब शिवाजीका ध्यान विजापुरके शासनसे दक्षिण . कारण शिवाजीका स्वास्थ्य खराब हो गया। फलतः थोड़े महाराष्ट्रके उद्धारकी ओर दौड़ा । युद्धमें वार वार । ही दिनों के मध्य अर्थात् १६८०६०को ५वों मलको हार खा कर विजापुरके सुलतानने आखिर महाराष्ट्रोंकी। महाराष्ट्र-शिरोमणि बीरशिवाजी इस लोकमे चल बसे। अधीनता स्वीकार कर ली। अब १६७४ ई०की ६ठी । शिवाजीकी चेष्टामें महाराष्ट्र राज्य मजबूत नींघ पर जूनको बड़ी घूमधामसे मुसलमानप्लावित भारतवर्षमे । खड़ा हो गया था। उन्होंने मुगल पठानकी तरह राजा- स्वाधीन हिन्दू राजा शिवाजो राज-सिंहासन पर अभि- के हाथ कुछ इस्तियार न सौंप कर आठ मन्त्रियोंके ऊपर पिक्त हुए। रायगढ़में स्वाधीन महाराष्ट्रको राजधानी हुई। महाराष्ट्रदेशमें गो, ब्राह्मण और सनातनधर्म निष्फोटक राजकायका कुल मार सौंपा था। ये आठ मन्त्री "अष्ट हुआ। इस स्वाधीन राजाको मरहठा लोग 'स्वराज्य प्रधान" कहलाने ये। राजाको इन आठ मन्त्रियोंकी कहते थे। सलाह लिये बिना कोई काम करनेका अधिकार नही अभिषेकके समय अन्यान्य परराष्ट्र के दूतोंकी तरह था। उन आठौके नाम भी उन्होंने प्राचीन संस्कृत इष्ट इण्डिया कम्पनोके दूत भी रायगढ़में उपस्थित हुए भापाको पद्धति के अनुसार रखे थे। नीचे उनके नाम, थे। अंगरेज और पुर्तगोज आदि पाश्चात्य जातियोंके काम और वेतनका विवरण दिया गया है :-- कार्य घेतन पेशया संस्कृत नाम पारसी नाम कर्मचारी के नाम १ पन्तप्रधान प्रधान मन्त्रित्व मोरोविमल गिडले वार्षिक १५००० होन २ पन्त अमात्य मनुमदार राजस उगाहना और हिसाव रखना नीलसोमदेय १२०००, ३ पन्त सचिव सुरनीस दसरखानेका अध्यक्ष भन्नाजी दत्त १००००n ४ मन्त्री यांकानवीस प्राइभेट सेक्रेटरी दत्ताजो पम्त ५ सुमन्त्र दवीर परराष्ट्रसचिय मोमनाथ पन्त ६ सेनापति सरनोवत सर्वसेनाध्यक्ष प्रतापराव गुजर और हम्मीरराय , .. ७ न्यायाधीश प्रधान विचारपति बालाजी पन्त और नीराजी रावजी , " ८ पण्डित राव धर्माध्यक्ष रघुनाथ पण्डित . मुगलोंको राज्य-व्यवस्थाका मूलसूत्र सामरिक विभाग-; शिवाजीका लक्ष्य था प्रजाधि। इसीसे उन्होंने राज- के कर्मचारियों के हाथ सौंपा था । इससे प्रजाके शुभ कार्यको १८ भागों में विभक्त किया था। प्रत्येक विभाग- भशुमका विचार मच्छी तरह नहीं होता था। किन्तु | में स्वतन्त्र परिदर्शक कमचारी था। शिवाजीने कर्म- Voin xVIL 68 - -