पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२५७

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महाराष्ट्र

घर द्वार छोड़ कर पञ्चवटी चले गये और यहां द्वादश- उपाय सम्बन्धमें उन्होंने जो लिखा है उसका एक अंश वर्षव्यापी तपस्याका आरम्भ कर दिया । तपस्या और नीचे उद्धत किया जाता है। इसोसे पाठकीको मालूम योगसाधनके बाद बारह वर्ष तक भारतके नाना स्थानों होगा, कि रामदासने साहित्यक्षेत्र में कैसे विषयोंकी अव- में घूमते रहे। बाद में स्वदेश लौर कर थरचनामें लग तारणा की थी। उन्होंने लिखा था, 'मुसलमान लोग गये। उनके उपदेश और रचनासे महाराष्ट्रमें युगान्तर बहुत दिनोंसे अत्याचार करते आ रहे हैं। हिन्दुओं में उपस्थित हुआ। पूर्ववत्तीं साधु-पुरुपोंके यलसे महा.! ऐसा एक भी योर नहीं जो उन्हें उचित दण्ड दे सके। रानमें नूतन धर्मोत्साह और शानानुरागका संचार दुष्टोंके अत्याचारसे देव-ब्राह्मणका उच्छेद, सभी धर्म-कर्म होनेसे समाज में जिस नये पलका सञ्चार हुआ था उसे भ्रष्ट तीर्थक्षेत्र विध्वस्त, ब्राह्माणों के पासस्थान अप. इन्होंने देशकी भलाई में लगाया। इन्होंने सबसे पहले चित्रीकृत, समस्त देश विप्लवपूर्ण और धर्म विलुप्त हो पैदेशिक-शासनके विरुद्ध उत्तेजनापूर्ण कवितायलो लिख गया है। पापियों का बल बढ़ जानेसे धार्मिकगण दुघल फर मरहठोंको स्वराज्यस्थापनमें उत्साहित किया था। हो गये हैं और देवगण अत्याचारके भय से छिप रहे हैं। दासबोध नामक ग्रंथमें उन्होंने जातीय शिक्षोपयोगी ब्राह्मणगण तिलकमाला आदिका परित्याग कर मसल- सभी विषयोंका उपदेश भर दिया है। परमार्थसाधन मानों के अनुकारी हो गये हैं। सवो का पूर्वसम्मान जीवका मुख्य उद्देश्य हेने पर भी पार्थियविषयमें अमनो लोप हो गया है। मुसलमान लोग दुर्थल प्रजाके प्रति योग अकर्तव्य है। "स्कूल मेन" के अनावश्यक ज्ञानके कटु भाषाका प्रयोग करते और उन्हें धुरी तरह सताते हाथसे घेकनने जिस प्रकार यूरोपवासी। उद्धार कर हैं। अतएव धर्मरक्षाके लिये सभी अपने अपने जीवन- उनके चित्तको अधिक फल देनेवाले शानकी भोर खींचा। को विसर्जन कर दो, देशका म्लेच्छभाव दूर करो और था, उसी प्रकार रामदासने भो आधिभौतिक विषयको सभी मराठा मिल कर एक मतावलम्बी हो जाओ । अपने प्रयोजनीयता प्रतिपादन करके महाराष्द्रयासोके वैराग्य | महाराष्ट्रधम को फैलाओ, देवद्रोहियों को कुत्ते समझ भौर उदासीनताका निराकरण और उन्हें राष्ट्रोनतिका कर मार भगाओ । देवताओं को अपने मस्तक पर रख पथ प्रदर्शन किया। वैकनके Advancement of कर एक उद्यमसे सभी उठ खड़े हो और तुमुल-संग्राम Learning नामक प्रथसे रामदासका दासबोध ग्रंथ ठान दो। अध्ययसायके साथ सभी चारों ओरसे किसी भशमें कम नहीं है, वर आधिभौतिक और म्लेच्छो' पर टूट पड़ो। स्वदेशद्रोहियो का विनाश भाध्यात्मिक उन्नति के पकता विधान फौशलमें यदि इसे कर देशकी रक्षा करो। धर्म स्थापनके लिये नये देशको उच्च स्थान भो दिया जाय, तो कोई दोप नहीं। राम. फतह करो तथा चारों ओर महाराष्ट्र-धर्म और महा- दासके 'पंचीकरण', 'मनोवोध' और रामायणादि नया राष्ट्र राज्य फैलायो। अभी समय है, सतक हो जाओ, भी कम प्रसिद्ध नहीं है। किन्तु दासबोध हो उनका नहीं तो पीछे पछताओगे। सर्वप्रधान Hथ समझा जाता है। उनके इस प्रथमें रामदासके शिष्यगण जब इस उत्तेजनामयी वाणीको मक्षरपरिचय और लिपिपद्धतिसे ले कर स्थापत्यविद्या | भोजस्विनी भापाको कवितामें मरहठों के दरयाजे तक प्रायः सभी लौकिक ज्ञानका उपदेश देखा जाता दरवाजे गाने लगे, तभी नूतन महाराष्ट्र साम्राज्यको है। देशको दुरवस्थादिके वर्णन, पराधीन जातिको नीवं डाली गई । महात्मा शिवाजी जैसे उद्यमशोल अयलम्यनीय नीति, राजनीति आदि विषयोंके साथ | क्षत्रिय युवकने रामदासका शिष्यत्व स्वीकार किया, प्रनिर्वाणलामके सभी उपाय इस प्रथमें वर्णित हैं। स्वधर्म और स्वदेशरक्षाको प्रयलाकांक्षाने सारी महा- उधान रचना, पण्यशाला स्थापन ( कारखाना) और राष्ट्र जातिको उन्नत कर दिया। शिवाजीके नेतृत्यमें दुर्गनिर्माण-पद्धति विषयोंमें भो रामदासने अच्छा उपदेश | महाराष्ट्रवासी दक्षिणपथसे मुसलमानी राज्यको जड़ दिया है। देशकी दुरवस्था और उसके निवारणके उखाड़ फेक देनेके लिये पद्धपरिकर हुए ।