पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२३५

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महाराष्ट्र स्वीकार न करके प्रायः विदोहादि किया करते थे। इस। और घुटरन निजाम शाहने महाराष्ट्र, उत्तरभागका कारण सुलतानने पेशया कंवरसेनके, परामानुसार शामन किया। इनके नामनकाल में सिया और मुनियों में उन्हें उच्च राजकार्य में नियुक्त करके शन्न किया। इसी । झगडा बढा था । फलम्बम्प मीरनको भी माण देने पष्टे समयसे महाराष्ट लोग दिनों दिन राजकार्य में समधिक थे। इस्माइलया गज्यकाल मुमलमानोंक थापस दक्षता दिखा कर अपने भाषी अभ्युदयका मार्ग साफ कलहमें हो समाप्त हुआ। एक दल मुसलमानाने दिली फरने लगे। पुरहन शाह सियामत के विशेष पक्षपातो थे, के यादगाद अकबरको महायताके लिए प्रार्थना की थी। इससे सुक्षी सम्प्रदायके लोग सनक गये। फल यद्द , वुहरन भी धर्मसम्बन्धी कलहको नितिन कर मो. हुआ. कि राज्यमें लड़ाई-दंगा और अशान्ति होने लगी। : थे। इनकी सेना पुरला नामक म्यानमें पुतंगोजोंमे युद्ध.

४७ वर्ष राज्य भोगनेके बाद १५५३ ई०में सुलतानी में पराजित हुई थी।

मृत्यु हुई। इसके याद हुमेन निजाम शाहको लहको सुलताना इस वंशफे तृतीय मुलतान हुसेन निजामगादयः . चांदवीवीका नासनकाल ही विशेर सिम है। इस • शासनकाल में दक्षिणापथमें हिंदू, मुसलमानोंका झगड़ा असाधारण गुणशालिगो रमणीने मगलोंमे अपने राज्य. चरम सीमा तक पहुंच गया । दाक्षिणात्यकी सभी को रक्षा जिम तरह की धी, यह वणं गातीत है। मुसलमान-शक्तिने इकट्टी हो फर एकमान हिन्दू राज्य विस्तृत विवरण चांदोरीकादमें देखो। विजयनगरका ध्वंस कर डाला । १५६४ ई०में तालफोट. चांदी के बाद निजामशाहीका प्रतिदास इस के युद्ध में रामराजफे मारे जानेसे हिन्दू लोग हिम्मत हार राम मत्रियोंक. काय कलापस ही भरा पड़ा था। गये। मुसलमानोंको कुमारिका अन्तरीप तक अधिकार अहमदनगर मुगलोंके प्रधान दो जाने पर परिन्दा फैलानका मौका मिल गया । इसी समय आर्यावर्त में फिल्में निजामशाहा राज्यको राजधानी स्थानान्तरित • मुगल-सम्राट अकबर एक एक करके सारे हिंदू राज्यों कर दी गई। इस समय मालिक अम्बर नामक एफ पर आममण कर हिन्दूजातिका विनाश कर रहे थे।, मुसलमान सरदार (जो अत्यात युद्धिमान भीर विश्वासी गत एक हजार य के भीतर दिन्दू जातिके लिए ऐसा था) को घेटास निजामशाहीका नयप्राय गौरव पुछ • दुःसमय और सारा दिन्दुस्तान प्रायः ययन स्थानमें । दिनम् लिये रक्षित हुआ था। मुसलमानोंक परस्परफ ऐसा परिणत हो गया था, कि भारतवर्ष में स्पधर्मनिष्ठ' झगड़े से मरदठोंको या लाभ हुभा, इनको शनि और हिन्दुओं के लिए कोई आभय न रह गया। प्रतिपत्ति विशेषरूपसे गृद्धि हुई। मरहटोंकी मदायता. ., इसके बाद मुजा निजामशाहका जमाना आगा। से निजामशादीको रसानादार भायरने की थी। इनके जमाने में विजयनगरफे राज्य विभागको ले कर। शियाजी पितामह मालोजी भोसले चार मातामह मुसलमानों में युद्ध विमहका मूसपात हुआ। नतीजा यह । लुम्पनी यादय रायने उससे युष्ठ पहलेसे निमामा हुआ कि मराठोंको सिर उठाने का मौका मिला। इसो दरवारमें प्रतिपत्ति लाभ की थी। धीमापुर आदिल समय पुर्तगीमोंने भी आ कर पश्चिम भारतमें उपद्रव शाही दरवार में मो गरहोंने अपनी प्रतिपत्ति और मचाना शुरु कर दिया । निजामगाहकं सरदारोंको प्रभुत्व प्रतिष्ठामें कोई कसर न रगी। रावको में दे पर इन लोगोंने भारत में उपनियेग गुगल-समार मयर और कुछ दिनों तरजापित स्थापन करने की मामा प्राप्त कर लो। मुर्तजाने रंपा। रदन पर निजामशाहीका अम्नित्य शोर हो यिनए पर अधिकार करफे इमादशाहोयंका अस्तिरय दो हो जाना, इसमें जरा भी सन्देश नहीं। किन्तु उसको मिटा दिया। इनके जमाने में पान देश भी निजाममा मृत्यु हो जानेमे जदांगीर मिलीफ मिहासनको प्रात राज्य अन्तर्गत हो गया। करने जी पररपर कल हुआ, उससे मालिक भावाने १५८६० से १५६४० तक मोरन् सेन, स्माल । महरटोकी सहायतासे फिर महमद नगर पर अपना Vol. XVII