पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/२१८

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महाराष्ट्र वर्ष पहले गट्ट, रछ, राष्ट्रिक और भोज उपाधि । करने के लिए याये । नगरके गधिपति सापित धारी क्षत्रियगण महाराष्ट्र देशमें वास और आधिः। उपाधिधारी और क्षत्रिय थे। उनका प्रभार पहुनर पत्य करते थे। यही नीन जातियां कालक्रमसे; तक फैला हुआ था। 'आशीर नामक स्थान में भी ए. साहस और पराक्रमवणतः उत्तर महाराष्ट्र प्रदेशमें । एक छोरा राज्यं था। प्रयाद है, कि ईस्वी सन् २०० 'महारठ्ठ' 'महाराटिक' और 'महामोज' नाम "सिद्ध वर्ष पहले फोशलदेशसे कुछ क्षलिए परियार महारोगों हुई। ये लोग अपनेको जिनियर सात्यक्षिके चंगधर आ कर वस गये। आमीर राजवंश पूर्णतः कोमल.. बतलाते थे। शिलालिपियोंमे उनको रमणियां 'महारहिनी' देशसे गाये हुए शवयंशसम्भूत थे। विदर्भ देने ओर 'महाभोजी' कही गई हैं। महारद्वजातिके साथ) यशसेन नामक राजाका राज्य था । मगधपति रोह महाभोज जातिकी कन्याका आदानप्रदान प्रचलित थाशीय पुष्प मित्रो साथ उनका जो युद्ध हुमा था उस उसी प्राचीन महारठठ और महाराटिक शब्दसे पत्तेमान का विवरण कालिदास प्रणीत मालविकाग्निमित्र नारक- समपम महाराष्ट्र, मराठा 'थार मरहट्टा माध्दकी उत्पत्ति में वर्णित

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हुई है। इस रठ जातिके गन्तर्गत कुछ परिवार या फुल .. साववादन-वंश। ..... फटे हो कर फालपमसे "कूड़" (सस्टान फूट) या ईस्वी सन १०० वर्ष पहले सात याहन (शालि. कुलो परिणत हुआ था। इस संस्कन फुलमें जिन्होंने | पाहन ) यंशका गम्युश्य हुगा । इस शो राजामाने जन्म लिया. वे पहले " रकूड़' (संस्कृत राष्ट्रकूट) और | उपयुक्त राज्योंको यिनष्ट कर रट्ट, महारह. भोज मौर भार्यावर्त्त जा कर "राठोर" नामसे प्रसिद्ध हुए। रमाड प्रभाति जातिको हरा दिया.और सारे दक्षिणपय- 'मराठोंके प्राचीन नामानुसार उनका यासप्रदेश ईस्वी का सार्वभौम शाधिपत्य लाभ किया। कहते हैं, कि सत्र सन् ३०० वर्ष पहले महारट्ठ देश कहलाता था। महा- शालिवाहनने शाशीर पतिको मो धाधु यगॉय साथ रन देशका आयतन घर्तगान महाराष्ट्र के जैसा वहान मार डाला तब उ राजबंशीय एक महिला राजांक था। पूना, सतारा और भादनगर यद तीन जिला बहुत छोटे पये को ले कर भाग गई और शतपुरा पहाड़ भार सोलापुर जिलेका पश्चिमाञ्चल प्राचीन कालम पर छिप फर प्राणरक्षा की ही चालक अन्तम निसीर. "महारद" देशके नामले प्रसिद्ध था । कालक्रमसे महाराष्ट्र के राणावशफे प्रतिष्ठाताए। . . . . जातिके चंशविस्तार तथा क्षमतावृद्धि के साथ साथ नासिक और. कोल्हापुर प्रभृति स्थानीस मास प्राचीन फोडण, कोलयन, गोएडयन, मानदेश, विदर्भ, उत्तर- मुद्रा और शिला शासनादि पढ़नेसे जाना जाता है, फर्णाट प्रभृति प्रदेश भी महाराष्ट्र देशले अन्तर्भुत गुए। कि हस्यी-सन् ७३ वर्ष पहलेसे कर २५८ ई० तक गालि. हारेको यांचवें अनुशासनमें और दीपपंश, महा। बाहन या सातपादनशियोंने महाराष्ट्रदेशका राज्य. शादि पौद्ध इतिहास प्रन्यमें लिया है, कि महाराज शासन किया। तेला या मनभदेश भातर्गत धनक, प्रियदशी अशोफफे आदेशानुसार महोरट्ट, अपरान्त टक (गण्टुरेफे निकटयतों वर्तमान घरफोट) मगरमें (उत्तरकोण) और वनवासी (दक्षिण महाराष्ट्र) प्रदेशमें उनको राजधानी यो । महाराष्ट्र देशमै प्रतिनिधि : भोज तथा राष्ट्रिक जातिके और प्रतिष्ठान पुरयासियों शासनकर्ताफे रूपमें भेजे जाने थे। गोदायरोफे किनारे के मध्य पौधर्म प्रचारफे लिए बहुत से यौनयाजक! प्रतिष्ठानपुरमें उनको राजधागो यो। उनके शासन- भेजे गये। - - कालमें महाराष्ट्रदेश शाति द्वारा माकान्त दमा था। . उस समय यमान महाराष्ट्रवेश तगर, भाशीर, उस समय सातवाहन गीय भूगतिगण का होनाल प्रतिष्ठान, विदर्भ, कुन्तल, अपरान्त और यनवासी मादि- हो गये थे। उसी समय राजानियाने महाराष्ट्र गाना पटुत-से छोटे छोटे राज्योम विभक धा। भनन्तर इस्यो | स्यानोको अधिकार कर गमग या राया। मन २५० वर्ग पदले मिगीय यणिकगण रहा याणिज्य भारत कान्हा का पिप देखो। भागिर १३३ .