पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१४७

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पटादानपुर-महादेव कल्पगददाता गोगपश्यन्नु पदमन् । । मदादुन्दु (सपु०) रपयाधयिरोग, सदाफा । हिरणपकामधेनुप हिरपयापस्तमय च ॥ महादुर्ग (मो .) १ मदापिषद । २ो भटयन पमझाइएक नारामानन्नव । फरमे भी पूरा न दो मरे। दिरपपाश्वरपग्रामस्तिरपस्तया ।। महादुर्गालोक ( मं० पु० देयलोकविशेष। .. बादशं विन्गुनय ततः परपमगारगन् । मदादून ( म०पु० ) यमदूत । सप्तसागरदात रत्ननम्तमय च। महादृयक ( म० पु० ) मुनके भनुसार एक प्रकारका महाभवपटमहत् पोरगा परिकीर्तितः ।" धान। (मक्षमागतत्यभूत मस्स्यपुराण) महाइति (म.पु. गमको भैलो। मोलह महादानोंमें तुलापुरुष दान पहला, इमफे महादेय ( म०पू०) महाश्वामा मेयश्चेनि कर्मपाल मपपा बाद २ हिरण्यगर्भ, ३ प्रधाएडदान. ४ कम्पपादपदान, ५ महतां देयादीनां देयः ६-तन् । गिय । यद मलिक गोसहनदान, ६ दिरपयकामधेनु, ७ हिरण्याय, ८४ अन्तर्गत मोममूर्ति है। पथा--"भदायाप सोमभूप लागलश, ६ घरादान, १० हिरण्याभ्यरण, ११ मस्नि. ' नमः।" रथ, १२ विष्णुनमा, १३ कल्पलता, १४ समसागरदान, प्रमादि देयताओं मीर महामान्य प्रानयादी मुनियों के १५ग्ल नु और २६ महाभनघटदान। यही सोलह भी सो देय है, उन्हींका माम महादेव है। महती मूल- दान महादान है। प्रति देयो जगन्में पूजी जाती हैं, किन्तु ये उनमे मी जो उत्त सोलह प्रकारफे महादान करते हैं, उन्हें ___ अधिक पूजनीय है, इसीमे इनका महादेय माम पड़ा है। अन्समें भगन्त वर्गकी प्राप्ति होती है। "प्रारीना मुरापाव मुनीना मयादिना कूर्मपुराणये मसमे महादान दश प्रकारका है। सेपात मदत देणे मरादेवः प्रकीर्तितः । महवी पूजिता यि महाविपरी "कनका यतिला गापो दासीरप महोगदाः । राग्या देश। पुतिन महादेव म य स्मनः।" पन्या च पिता धनुर्महादानानि ये दा " महादेयफे पांच मुहै। पांच मुग होने का कारण १सोना, २ मोनेका घोडा, ३ तिल, ४ गो, ५ दासी, ग्राम पतपुराणमें इस प्रकार, निपा-पूर्व समपमें ६ रथ, ७ मही, ८, फन्या और १० फपिला धेनु। विष्णुने अति मनोरम किनाररूप धारण किया। प्राया पे दश दाम भी महायान कहे गये हैं। भगन्त प्रादि भनेक मुगवाले देयताभोंने बहुग देर तक २ यह दान जो प्रहण मादिफे ममय डोम, गमार उम मनोहर रुपको टफ नगा कर देगा मौर उनका स्लप मादिछोटो जातियों को दिया जाना है। किया। परन्तु एक मुग और दो मेजपाले गिय में मदारागपुर-मद्रास प्रदेशके विचनापल्ली जिलामागेत देश पर गम म प । मनः उन्होन मोगा, हिपनि उनके एक नगर। यहां जैग भौर शेष-पोतिका ध्यंसा भी मनेश मेव मौर मुव होनेको ये भी उस ममोदरमूर्ति पाशेष गनमें पाता है। को देष कर गुम हो मन ये बम फिर क्या था, म महादाय (मो०) मदत् दाम पल्य। १ देयवाद। पामना उदय होने दी उनपं. मौर भी गार मुख निवार महत्वा । २ यूहन्काष्ठ । मापे। पर मुरमें तीन लोग मेल । म उन मदादिकरमी ( सरी ) यसकिणिही करना। पारा मुग पार पन्हाभय हो गये। मी ममपमे महावियाको (सी .) साममेर। इनका पचयपन भीर बिन्दोरम माम पदा। मक्षारित्य (पु.) मोगरिएका ! महादेप परमार है। दर तीन मेल गटर, महादो (स .) मानदेयदार। । राजमार नम गुणोंग युन। सारे मागि मेनगे महानुपा (म०पी०) पगस्पमिभेद । - सारित, रामसरामा भीर सामगमेशाममोहा