पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१३३

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पहाकाव्य-पदाकन रसी में एक रम यही रहगो। मिया इसके हास्य, · मदाफाश (स.पु.) १ एक पर्वतका माम। (नि) करण, बीभत्स आदि. रस इसमें थलपमे पर्णित २ महादौतियुक्त, बहुत चमक दमस्याला दोंगे। किसी ऐतिहासिक घटना अथवा दूसरे किसी ' महाकाशी (मं रखी०) मनमोका देवनामेद। साधुको चरित-रचनामें इसका प्रणयनका नियांह महाकाश्यप (सं० पु.) गौतम पुरुफे एफ शिका करना होता है। इससे धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष इन नाम । चार यगों का आवश्यकतानुसार समावेश करना मदाकोरपर्यंत ( स० पु०) गन्धमादनके अन्तणुक पर. चाहिये। फिर इसमें एक सर्ग में इसके प्रतिपाद्य विषय- . पर्यनका नाम। फी वर्णना होगी। इसमें नाटकोक्त सम्धि अर्थात् महाकुपकुटमासनेल (स'लो०) तेलीपगिरीष । प्रतुत मुखादि पशकका प्रयोग करना होता है। प्रणालो-तिलनेल ४ सर, काढ़े के लिये उर ४ पेर, महाकाव्य धादिमें नमस्कार, आशीयांद मया । वगमूल ६ सेय, विजयंदका मूल २५ पन्द, फेनको मन्द वस्तुनिर्देश रहना चाहिये। कहीं कहीं दुर्शको निन्, स न २५ पल. मुगेका मांस ३० पन्त, माटोका मूल २५ पन्त, और साधुजनका गुणकीर्तन भी दिखाता है। महा .

कार्य जल १२८ सेर, शेर ३२ सेर। पूर्णफे लिये

'काव्यफे वर्णन करनेका विषय बना। इसमें मिन । जीयकादि भटपर्ग, पिपरामूल, मुलेडी, फर, उदर, मल- लिपित साधारणतः विशेष मावश्यक है । यथा,-सध्या कर कुनीका पोज, गोका मूल, सोयां, विट, सैम्पय भी सूर्य, चम, प्रदीप, रात्रि, पथ, दियस, प्राताकाल और भाम्भर लवण, पीपर, असगंध, गुलछ, भमयायन, इन्द्र मध्याहकाल, मृगया, पर्यत, ऋतु, धन, सागर, सम्भोग, .. जो, गतमूली, कनूप, साई, मोथा, पुनर्णया, हरिया, दाद- 'विप्रलम्म, मुनि, स्वर्ग, पुरी, या, युग, प्रयाण, यियाद, road हरिदा, कटाई और भटकटैया प्रत्येक दो तोला । पौडे मन्त्रणा और पुनोत्पनि मादि। सिया इसके जल . . लपाक विधानानुसार इसका पाक करें। इस नेलको केलि भीर मधुपान आदि मो इसके वर्णनीय विषय है। मालिश करने से पक्षाघात भयणेशनि और शिक्तिको अपना, दग्न्तकम्प, शिरस्कार, धधिरना, कर्णनाद, दादा- जो काव्य रचना करते हैं, उनके मामानुसार यथया पतानक, मन्यास्लम्मा हनुस्तम्भ, निशारोग, मन्त्रादि जिस घटना पर काव्य रचा जाता हो, उस घटना अथया' और पातरम. मादि नामा प्रकारकी पीड़ा बहुत जन काव्यका मायफ अधया कोई दूसरे मामसे महाकायका आरोप होती है। मामकरण करना होगा। कपिके नाम--माघ, भारयि महाकुण्ड (म.पु. शिवानुवरप गिय एक मनुः मादि । घटना भौर वृत्तान्तका मामकुमारसम्मय : नरका नाम । मादि। मायफफे माम--रघुवंश आदि । अन्य नाम महाकुमार (म.पु. ) गुवरात, मादमादा। पया माहित्यादि। किन्तु काप्यफे अन्तर्गत मर्गी के महामुरा ( स० सी० ) महनी पासी गुदा पति माम नेमें उपादेय कथागोंके माधार पर साना । कर्मधारकाम, गंभारी। चाहिये। . महाकुम्मी (म' जी० ) महलो चामी कुम्मी गति काय. ..... महाकापका मापक देव सपघा धीरोदास गुपसम्प४, फल । सदयंगमास को हतिय होना चाहिये। धीरोदास कीन महापुल (पं.नि.) महत् पुर पंगोऽम्प , TIR. है। जो मोर गोकफे पशीभूत नदी दोसे, मिन' कुलमान, यह जो बहुम उमर पुममें उत्पन्न हुमा पनियको भाउ शो प्रतिक्षा पालममें तापर: । पर्वाप-कुल्लीग, मा,सम्प, सजन, माध, पुल्य, पहने दो, जो पाया गदी कामे, जो समागील गिजात, कोलेगा, जास्य, माहाल, कॉलेर, कोपर, गम्भीर स्वमायके दो प्यानि पीरोदात कहे जा कुलम, साधुन, कुलश्रेष्ठ। सकरी है। पया,-विहिर, एम मादि । (40)Tमन दुम, तमा