पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/१३

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मन्नमास "भमावस्यादय यत्र रविसंक्रान्तियनिंगम् । पञ्चमो पड़े, तो किम शुक्लपक्षको पञ्चमीमें पूजा होगी, मतमासः स विशेयो विष्णुः स्वपिति कर्कट ॥" . इस प्रकार संशय होता है। भापादमासको पूर्णिमामें (गदमासतत्त्व ) यदि किसीके पिताको मृत-तिथि पडे, नो फिस पूर्णिमा. दो अमावस्याका शेष क्षण यदि एक सौर मासमें में यह पितृश्राद्ध करेगा, इत्यादि संदेहको दूर करने के पड़ जाता है, तो मलमास होता है। मलमाम होने । लिये ही मलमास परिमापा है। पर दो चन्द्रमास होता है, इनमें पहला मल वा मलिम्लुच "इन्द्राग्नी यत्र हूयेने मासादिः स प्रकीर्तितः । और धूसरा शुद्ध । दो नन्द्रमास होनेका तात्पर्य यह, कि अग्नीषोमो स्मता मध्ये समाप्ती पितृमोमको ।। ‘शुक्लपक्षीय प्रतिपदका पूर्वक्षण अर्थात् पूर्व अमावस्या तमतिकम्प तु रपिर्य दागच्छेत् कमनन । का शेष समय जिस मौरमासमे पड़ेगा, वह शुक्लपक्षीय आद्या मतिम्लुची गेयो द्वितीयः प्रकृतः स्म तः॥ प्रतिपदसे अमावस्या पर्यन्त तीस तिथि - रूप मास है। तस्मिस्तु प्रकृवं मासि कुर्यात् श्राद्ध यथाविधि ॥" यह मास सौरमास कहलाता है। जैसे, सौर वैशाख- (म हारीत) मासमें एफ अमावस्याका शेष होनेसे परवत्तों शुक्लपक्षीय शुक्लपक्षीय प्रतिपदसे अमावस्या पर्यन्त जिस मास- प्रतिपद्से अमावस्या तकका मास मुख्य चान्द्र वैशाख में रविका संग्रमण नहीं होता, यह मास पहलेको होगा। मलमासका विषय स्थिर करनेमें पहले मास/ तरह दो होता है। पहला मरिम्लुच और दूसरा शुद्ध कितने प्रकार हैं, उनके लक्षण क्या है, इत्यादि विषय मास । शुद्ध मासमें दी श्राद्धादि करने होंगे। आश्य- जानना आवश्यक है। मास चार प्रकारका है-सौर-1 लायन ब्राह्मणमें लिखा है.-"अर्द्धमासा छ अघस्तात् मास, चान्द्रमास, नक्षत्रमास और सावनमास । चान्द्र! सन्तोऽकमायन्तु मासाश्व स्याम इति ते द्वादशाह मनु- मासके हिसाबसे मलमास होता है, इसोसे चान्द्रमासः | मुपायन् त्रयोदशं ब्राह्मणं कृत्वा तस्मिन् मृष्ट्रोदतिष्टन् फा विषय जानना जरूरी है। - तन्मासोऽनायतन इतरामनुपजीयति ।" तिथिघटित मास ही चान्द्रमास है। चान्द्रमास दो ___ अर्थात् अद्धमासको सकल मास करनेके लिये तेरह प्रकारका है,-मुख्यचान्द्र मौर गौणचान्द्र। शुक्लपक्षकी, अर्थात् मलमासको ब्राह्मण बना कर द्वादशाहसाध्य यश प्रतिपदुसे अमावस्या परत इन तीस तिथियों में जो चांद। करना चाहिये। इससे ये ( यश करनेवाले ) उस मल. मास होगा उसे मुख्यनान्द्र और कृष्णपक्षको प्रतिपदसे मासमें अपने पापोंको विसर्जन कर अमिलपित फल पूर्णिमा पर्यन्त मासको गौणचान्द्र कहते हैं। कर्मविशेपमें ! पाते हैं। कहीं मुख्यचान्द्र और कहीं गीणवान्द्र दिया जाता है। मलमासके कोई नियम नहीं है। चैत्रमास मादिका मास शब्द देख्यो। तरह मलमास अमुक मासके बाद और अमुक मासके दो शुरूपक्षीय प्रतिपदफा पूर्व क्षण अर्थात् दो अमा- पहले पड़ेगा, ऐसा कोई नियम नहीं है। मलमास अन्य वस्याका शेष समय एक सौरमासमें पढ़नसे पूर्वोत! मासका अवलम्वन करके ही रहता है। साधारण लक्षणानुसार दोनों मासका एक ही नाम | शास्त्र में कहा है, कि सभी मासोंका पाप इस मल- होता है। शुक्लपक्षीय प्रतिपदसे अमावस्या पर्यन्त तीस | नासमें जमा होता है। इसलिपे मलमासमें कोई धर्म- तिषि-स्वरूपमास पफ नहीं, दो है। इनसे पहला मल | कर्म करना नहीं चाहिये। किन्तु नित्यकम और कुछ • और दूसरा शुद्ध है। इसीसे तेरह महीनेका वर्ष होता। नैमित्तिक-याम जो मलमासमें कर्तव्य है उसे तो इस है। कम योग्य कालनिर्णयके लिये हो ऐसा नाम / मासमें करना ही होगा, नहीं करनेमे काम चलता नहीं। ..." मापाढ़ मासकी शुक्लपक्षीय पञ्चमीमै मनसा-पूजा ) दिया और रात्रिका परिमाण ६० दाद और निधि- • करनी होती है। आपादमासमें यदि दो शुलपक्षीप का मान श्रीसतसे ५४ दण्ड है। प्रतपय ओमनमे ३० Vol. XVII. 3