पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष सप्तदश भाग.djvu/११६

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

महम्मद शादः तहस नहस होना चाहता था। सन् १७६६ ई० में बाजी। इस समय पेशवां बड़े बहादुर' गिने जाते थे। शाही रावने गुजरात और मालवा छोड़ देनेको सनद भेज देने- फौजको हार माननी पड़ी। सन् १७३८ ई०को ५वी के लिये लिखा । इच्छा रहते हुए भी बादशाह मन्त्रियोंके फरवरीको दारा सरायमें निजाम-उल-मुल्कको बाध्य हो कहनेसे पेशवाको आकांक्षा पूर्ण न कर सका। किन्तु | कर सुलह करनी पड़ी। . . . . • मन्त्रियोंके परामर्शसे दाक्षिणात्यके राजकरमें २) रुपया दिल्लीके बादशाह महम्मद शाहको महाराष्ट्र सरकार सैकड़ा कर धसूल कर लेनेकी आशा दो। दिल्ली दरवार को युद्धके क्षति स्वरूप ५० लाख रुपया देना पड़ा। (बादशाह)का विश्वास था, कि दाक्षिणात्यको मायसे चौथ सिवा इसके पाजोरायको माया और नर्मदा तथा के मलाया २) सैकड़ाफे हिसावसे वसूल करनेसे ही निजाम चम्बलफे योचकी भूमि भी मिलो । . महम्मद शाहको उल-मुल्कके साथ पेशवाका युद्ध अनिवार्य हो जायगा मराठोंसे कुछ छुटकारा मिला। किन्तु अधिक दिन अथया निजाम-उल-मुल्कको दिल्लीका सहायता लेनो वितने भो न पाया, कि बादशाह एक नई पलामें फसे । पड़ेगी। किन्तु बाजीराव भी पादशाइकी वात पर राजी | सन् १७३८में हो नवम्यरके महीने में सिन्धुनंद पार फारस. न हुआ। अन्तमें वादशाह मराठोंको मालयासे निकाल | का राजा नादिर शाह फरनौलमें मा पहुचा। सन् १७३६ भगानेका आयोजन करने लगे। पां दोरान और कमार. में उसने मुगल सैन्य पर माममण कर दिया। उसके उद्दीन खां नामक दो सेनापति वाजीरायके विरुद्ध भेजे विपुल पराक्रमके आगे शाहीसैन्यको दवना पड़ा। फलतः गये। इसी समय अयोध्याफे सूवेदार ज्यादत खां| वादशाहकी गहरी हार हुई। महम्मद शाहने नादिरके होलकरको पराजित कर मथुरा आ कर खां दौरान्के । सामने वशता स्वीकार कर ली। पीछे चे नादिरके साथ मिल गया। इघर वाजीराव पेशवा मौका देख खेमे में लापे गपे। किन्तु नादिरने शाहको उचित जंत एक दिनमें २० कोस चल कर तुरन्त दिल्ली पहुंचे। नहीं की। इसके बाद उसको फौजाने कितने अत्याचार इस समय शाही फौज दिली छोड़ कर चली गई थी, किये, जिसका आज भी कहावत 'नादिर शादी' विण्यात फिर भी बादशाहने माठ हनार सिपाहियोंको मुजफ्फर है। इस नादिर शाहीके फत्ले आममें कितने मुगलों सांके अधीन करके वाजीरावका सामना करनेके लिये | और सहन सहस्त्र नागरिकों को प्राणविसर्जन करना भेजा , किन्तु इनका हारना भी अनिवार्य था। याजी पड़ा था। नादिर कितना धन दौलत ले गया, उसकी राय पेशवाफी उस विशाल वाहिनीके सामने यह कव | शुमार नहीं। इसका विशेष विवरण 'नादिर शाह' शब्द तक ठहर सकते थे। इस समय खां दौरानको मालवाफी में लिखा गया है । नादिरशाह देखो। आशा छोड़नी पड़ी तथा घाजीरायको युद्धको क्षतिका भवम्बरसे १४ मई तक मादिर भारतमें लूट-पाट १३ लाख रुपया देना पड़ा। मचाता रहा। १५यों मईको.जिस राहसे नादिर भारत- . बादशाहको यह पहला ही समय था, फि बाजीराव- मैं माया था, उसी राहसे फारसको लौट गया। जाते फे सम्मुख पराजित होनी पड़ी। पादशाहने तुरन्त हो । जाते यह दिल्लीको इस तरह तहस नहस कर गपा, कि निजाम उल-मुल्कको घुला भेजा। निजाम दाक्षिणात्यसे | उसके सुधारमें कई यर्ष लग गये थे। . . . दिल्ली पहुचे, किन्तु यह युद्ध हो गपे थे। इससे उन: इस समय वाजीराप पेशया मुगलोंके साम्राज्यको को सेनापति न यना दूसरे दुसरे कई सेनापति उन्हींको 'जइसे उखाड़ फेकनेको गजैसे राजपूताना और पुग्देल. सलाहसे मालयाकी भोर भेजे गये। सन् १७३७ ई० में | खएडके रामामोंसे मिल कर युरको तयारी करने लगे। निजाम-उल-मुल्कने कई सेनापतियों और विशाल पाहि-| किन्तु उनका उद्देश्य सफल होनेसे पहले दो कालने नियोंको साथ ले युद्ध के लिये यात्रा की । वाजीरायने यह उन्हें फलित कर लिया। पाजीरायके बाद दमक सपर पाते ही सितारासे ८० हजार घुड़सवार सैनिकोंको मुयोग्य पुत्र बालाजी राय पेशया हुए। पेशा देखो। ले भूपालके समीप गादी फौजोंका मुकाबला किया। ___बालाजीराय भी पिताकी तप्प सम्राटसे मालाकवा