पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/९०

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ख्वाज कुतव-ग खाज कुतब-एक मशहूर गायक । इनकी बनाई बहुतमी , खाज मीर-एक प्रसिद्ध कवि । इनकी एक कविता इस कवितायें हैं जिनमें से एक इस तरह है :- तरह है- मेदनो सव पारेला मम ठरम रकानाज कुतव देहरौ। धन धन राग थमात्रौ धन धन गोकुव गाम । शप मगायक धोनोथा वन पाप नबो हे रमून सम रंग नवौलाहाबर धन धन नन्द योशमति जहां प्रगटे सुन्दरण्याम ॥ रहोस एसाइलमन नार मेला खाज मौतदीन कुतबदीन-एक मशहर मुसलमाम एस दरवान दावमेन में। कवि, इन्होंने बहुतो कवितायें रची हैं जिनमें से एक खाजौ खिदर --- एक प्रमिड कवि और गायक। इनकी कविताओं में से एक यह है- यां है- पाज रच्यो कहार दीक बन्ध होय दम दम मदार ग्लाडिले खवान पोर मेरे अवतपो उत काय मत मायुको नन्द । तिनको विथा दूर कगे निहोर । वेतिकिर हर तू दाव दारद दूर करण बवाम मौतदोन कुतबदीन रकमान वाको तेन मेरा सप सिकायो एमग । राखले तुम परमो पार खाजो दोन शकरगञ्ज-एक नामी कवि तथा गायक । खाब ( फा० पु.) १ निद्रा, नोंद २ स्वप्र, सपना । इन्होंने अच्छी अच्छी कवितायें रचना की हैं जिनमें में खार ( फा० वि० ) १भ्रष्ट, बर्बाद, खराब । २ अपमानित, एक यों है :- बदनाम । रोमें घाऊ पाऊ'सरस खवानदीन मकरगन खारी ( फा० स्त्री० ) १ भ्रष्टता, बर्बादी । २ तिरस्कार. सुलतान ममायक महबून रलाही। मिनामदौम पालिवा पमर खोमरोकेवल वल नाही। बेइज्जती। ग कवर्गका तीसरा यञ्जनवर्ण। इसका उच्चारण: । प्रथम रेखाको अधिष्ठात्री लक्ष्मी तथा तीसरी रेखाक स्थान कण्ठ है। इसका आभ्यन्तर प्रयत्न जिह्वामूल अधिष्ठाता स्वयम् ईश्वर हैं। गकारको दाडिम कुसुमके पश और वाह्यप्रयत्न संवार नाद घोष है। गकार सदृश रतवर्णा, चतुर्वाहु, रक्तवस्त्र धारिणी और रत्नलझार- अल्पप्राण वर्ण के मध्य गिना जाता है। मात्टकान्यामक से सुशोभित ब्राह्मणीके सदृश ध्यान करना पड़ता है। दक्षिण मणिबन्धमे इसका न्यास करना चाहिये । इसकी इसका नाम गो, गौरी, गौरव, गङ्गा, गणेश, गोकुलेश्वर, लिखन-प्रणाली तन्त्रक मतमे इस प्रकार है-गकारमै शार्णी, पञ्चात्मक, गाथा, गन्धर्व, सर्व ग, स्मृति, सव्व मर्व ममेत तीन रेखायें होती हैं, पहली अधोगत वक्र सिद्धि, प्रभा, धूमा, हिजास्थ, शिवदर्शन, विखात्मा, गौ, रेखा है इम रेखाके ऊवं स्थित अग्रभागमे एक दूसरी सरल बालवङ्ग, त्रिलोचन, गोत, सरस्वतो, विद्या, भोगनी. रेखा खींचनी पड़ती हैं । इस सरल रेखाके दक्षिणाग्रसे नन्दन, धरा, भोगवती, हृदय, ज्ञान, जालन्धर ओर लव अधोदिक्को फिर एक सरल रेखा खींचते हैं। है। (वर्णभिधान ) तान्त्रिक मतसे हृदयमें जो हादशदल वर्तमान समयमे' गकारमें भी एक मात्रा दी जाती है, पद्म है, उसके तृतीय दलमें गकार अवस्थित है। काव्या- किन्तु सन्धमें उसका कोई उल्लेख नहीं मिलता। इसकी दिकं प्रथममें गकार हनिये रचयिताको भाकांक्षा बढ़ती