पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/७२

यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

खयोङ्गया जितने रुपये यह प्रजासे लेकर राजा या महरको फिर लड़के मात दिन तक पुरोहितके कथनानुमार खाते देते हैं उनमेंमे कुछ क० शालके अन्तमें कमिशन काट | पोते और पहनते ओढ़ते हैं। यही उनकी दोक्षा है। कर उन्हें मिल जाता है। प्रत्येक परिवारको चारसे । स्त्रियां इस व्रतकी नहीं कर मकतीं। जब कोई प्रिय • लेकर आठ रु. तक प्रतिवर्षमें कर देना पड़ता है। व्यक्तिको गुरुतर पीड़ा वा आशु विपदमे रक्षा पाता है, उन लोगोंको कुछ भी कर नहीं देना पड़ता है जो तो उसे ईश्खरको खुश करनेके लिये यह व्रत करना अविवाहित पुरुष, पुरोहित, विधवा, पत्नीहीन व्यक्ति पड़ता है। है अथवा जो सम्म ण रूपमें शिकारही के अपर अपनी उक्त क्षुद्र क्षुद्र मन्दिर व्यतीत इनके दो मन्दिर जीवन निर्वाह करते हैं। प्रधान हैं । एक वोमोङ्गाके राजाको गजधानी वृन्दावन- ___ पहले पहल यह जाति भी अन्यान्य पार्वतीय जाति- मगरमें, दूसरा चट्टग्रामक गवजान थानाके अन्तर्गत है। को तरह भूत प्रेतोंको खुश करनेके लिये पूजा करती इन दो स्थानोम बुद्धदेवके दर्शनके लिये अनिक यात्री थी। आजकल इस जातिर्क मनुष्य गौतम बुद्धको वैशाख मामको पात हैं। पूजा करते हैं जिसके लिये प्रत्येक ग्राममें एक धर्म खेयोङ्गथा बहुत मामान्य भावमें वस्त्रादि परिधान मन्दिर है। माधारणतः कई एक वृक्ष की छायामें चार करते हैं। माधारण मनुष्य घटने तक लम्बा सूती वस्त्र हाथ ऊचा मन्दिर बनता है। मन्दिरके बाहर और पहनते हैं, किन्तु बड़े आदमी रेशम या बारीक मलमल भोसर प्रकले बांसका काम किया जाता है। व्यवहार करते हैं। मव लोग अङ्गाग्वा और टोपी पहनत ___ प्रत्यह प्रात: और मध्यासमय ग्रामके ममस्त पुरुष हैं, इनमसे कोई भी मनुष्य जूता व्यवहार नहीं करता। दल बाँध बाँध कर पाते और सिरसे पगड़ी उतार कर स्त्रीजाति साधारणतः अपनी छातीमें एक खगड़ कपड़ा घुटनं टेक बुद्धदेवकी उपासना करते हैं और प्रतिष्ठित | बांधते हैं। ममय ममय पर अङ्गा भी पहनते और मूर्तिको पाव स्थित घण्टाको बजाते हैं। उन लोगोंका टोपीके बदले मिर पर रूमाल लपेटत हैं। ये अलङ्कार विश्वास है कि घण्टा बजानेसे देवता जाग उठते और पहनना बहुत पसन्द करती हैं। हमारे भजनको सुनते हैं। लड़कोंकी शादी १७ या १८ वर्षको अवस्थामें होती .. सध्यासमय ग्रामके युवक वहीं खेलते कूदते और है। पुत्रक योग्य एक सुपात्री पिताको खोजनी पड़ती मांचते हैं। भजन-मन्दिरके भीतर ऊचे बांसके है। तत्पश्चात् वरकर्ता एक घटक स्वरूप आत्मीयको मच पर गौतम बुद्धको मूर्ति रहती है। प्रतिदिन प्रातः । कन्याकर्ताकै निकट विवाह सम्बन्ध स्थिर करनेके समय ग्रामको लड़कियां, मन्दिर पातौं और फूल आदिसे | लिये भेजते हैं। यदि कन्याकर्ताको मम्मति हुई तो बुहदेवको पूजा करती है। यह उपस्थित अतिथियोंका | एक दिन वरकर्ता जाकर कन्या देखते और यौतुक स्वरूप दैनिक आहारोपयोगी खाद्यद्रव्य साथ हो लिये पाती हैं। एक अङ्गा और चांदीको एक अंगूठी देते हैं। बाद उसके थियङ्गके बाहर चारो• पोरकी दिवार पर काला | शुभनक्षत्र देखकर विवाहका शुभलम्न स्थिर होता है। सखता लटका करता है और इसी स्थानमें ग्रामके समस्त दोनों पक्षवाले अपने अपने कुटुम्बको निमन्त्रणपत्र और वालक वालिका पाकर लिखना पढ़ना मोखते हैं। एक मुरगी भेजते हैं। किमों किसी स्थानमें आजकल प्रतिवर्ष इन लोगों में खेतीको बौनीमे पहले 'मियाज मुरगीके बदले पैमा दिया जाता है। विवाहके दिन वर पुहपा' प्रत होता है। इस व्रतमें आठ या नौ वर्षके लड़ और यात्री बहुत धूमधामके साथ लड़की के घर जाते हैं, कोका सर मुंडाया और पुरोहितोंका जैसा पीला कपड़ा जहां वर और बरातक टिकनेके लिये बांसके छोटे छोटे पहनाया जाता है, उनमेसे प्रत्येक दक्षिणास्वरूप चावल घर बनाये जाते हैं। इन घरों से एक घर वरके लिये या कपड़ा लेकर पुरोहितके चारो ओर बैठता है। इस सजा हुवा रहता है। सन्ध्या समय पर लड़कीके घर समय प्रत्येकके सामने एक एक दीपक जला करता है। जाता है। जहां लडके और लडकीको एक सूतसे लपेट