पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/६०४

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गाल-गोलक १०२ कई एक शाखायें हैं। एक शाखा दूसरी शाखामे पान अपरिष्कार होते हैं। जब ये निशा नहीं खाते तब ये भोजन और आदान प्रदान नहीं करती। कृष्णगोन किमी कर्मठ और मितव्ययो होते हैं। कार्तिक मामके अन्तमें किमी स्थानमें यादव नाममे परिचित है। ये कनाड़ी जब वर्षा नहीं रहती, तब ये प्रायः दो तीन महीनों तक भाषामें बोलत हैं, इममे अनमान किया जाता है कि ये वन वनमें औषधियां खोज कर संग्रह करते हैं। लोग निजाम राज्यमे हम प्रदेशम पाये हुए हैं। स्त्रियां चटाई बुनतों और खेतोक ममय पुरुषीको कृयागोन्नमें कोई भी जनेऊ धारण नहीं करता है, मदद करती हैं। इन्हीं लोगोंमेंसे एक स्वजाती गुरू होता जो ‘उम्तमोर' ये बड़े धार्मिक होते । श्रावण मा ममें प्रति माल कहलाता है। वह गुरु विवाहकै ममय उपस्थित रहता वार और शनिवारको स्नान कर मारुतीको पूजा किया है। इनका मृत शरीर जलाया जाता है। करते हैं। व्यङ्गोव, तुलजाभवानो, मरगाइ, पारमगढ़के मुह विहाल उपविभागके तालिकोट, नलतियाद नजमा और मिराजके मोर माहब इनके पूज्य हैं। समाज और कौर नामक स्थानमें भिङ्गिगोल नामका एक दमरी में किमी तरह की घटना उपस्थित होने पर वृह मनुष्यमे श्रेणीका वाम है। ये देग्वनमें 'इनम् मे मिन्नते जुलते हैं। इमका निबटारा करा लेते हैं। समाधासा गहस्थ हैं। हनुमान मन्दिरमें याजकता गोलक ( मं० पु. ) गुड-गवन्न डस्य लः। १ मणिक, करनी ही इनका प्रधान कार्य है। इनके गुरुका नाम अलिञ्जर । २ गुड़ । ३ गन्धरम ४ कलाय, मटर । गोल 'मोमेर' और मोमनाथ ही इन लोगीका कुलदेवता है। स्वार्थ कन्। ५ गोलाकृति पदार्थ । ६ गोलपिगड़ । समानारको जमोनमें गाड़ते हैं। इसके मिवा निजाम ७ काल मकरवृत्त । ८ रक्त सुगन्ध वोल। ६ सुगन्ध राज्यमें कैङ्गगे नामको एक और गाग्वा है । मफेट भेड़ा रोहिषटण। ( क्लो० ) १० गोलोकधाम । ११ ऑग्वका जानकाका व्यवमाय ही नको उपजीविका है। ये डला । १२ आंखको पुतलो। १३ मट्टीका बड़ा कुण्डा । नोभीनमान और कृषा की पूजा करत तथा मृतदेह १४ पुष्पीका निकला हुआ मार, इत्र १५ गुम्बद । १६ जमीनमें गाड रखते हैं। प्रवाद है कि जिम ममय बादामौ रुपये रखनको घेली या मन्दक । १० रोजाना आमदनी विभागम मनणोंका वाम नहीं था, उमो समय रम्वनको थलो या मन्दक ।१८ मनुप्रोक्त विधया के गर्भा- प्रदेवानी या अदोनी प्रदेशमे ये एम प्रदेशमें आ कर त्पन्न जारज पुत्र। (मन० ३.१५६ ) यं अपनको गोवईन बमे है ब्राह्मण कह कर परिचय देते हैं । बम्बई प्रदेशकै नामिक, आडवि या तेलगू गोल रास्ते रास्ते औषध बेचा पूना धारवार, बेलगाँव, शोलापुर प्रभृति स्थानमें वाम करते हैं। इनमें याधव, मोरि, पवार, शिन्दे, यादव करते हैं । शोलापुरमें इस जातिकै मुगड, पुगड और रगड़ और साराष्टोयोको पदवी देखी जाती हैं। एक हो गोलक, बेलगाम और धारावारमें कगड़गोलक और रगड- पहनीक पर अर कन्याम विवाह नहीं चलता । ये गोलक एवं नामिक जिन्नामें इनकी कई एक शाखायें हैं। तेलग और मराठी भाषा बोलते हैं, कुछ कुछ हिन्दम्तानो केशमुगड़नकारिणी विधवा पुत्रका नाम मुगडगोलक, पति भाषा भी जानते हैं। मृत्य के एक वर्षके मधा विधवासे जो पुत्र उत्पन्न होता ये रविवार और मङ्गलवारको ग्रहदेवताको पूजाक उसे पुगडगोलक, विवाहित होने के पहले ब्राह्मण कन्यासे लिए स्नान किया करते हैं। जिसे गृहदेवता नहीं होता, दूमर ब्राह्मण हारा जो पुत्र उत्पन्न होता उसे कुण्डगोलक 'वर माती मन्दिरमें जा पूजा करता है। विवाह के बाद एवं विधवा ब्राह्मणोके गभजात पुत्रका नान रण्डगोलक ये तुलजा भवानीके मामने बकरा बलिदान देते हैं। है। इनके भारद्वाज, भार्गव, काश्यप, कोशिक, सांख्यायन, ये मद्य, ताड़ी, गांजा, भाँग, तम्बाकू और अफीम खाना वशिष्ठ पौर वत्स प्रभृति गोत्र हैं । भिन्न शाखा और एक बहुस पसन्द करते हैं। गोत्र में इन लोगोका विवाह नहीं होता है। ये समस्त । स आसिके मनुध मिदय, पमिमानी, चतुर पौर अपनेको प्रवत ब्राह्मण कह कर परिचय देते है, किन्तु