पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५९४

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गाध म-- गोध माद्यष्टत कमान वेबमाहमने हिमालय पर्वतके दक्षिणको ओर का होता है-महागोधूम, माधुलो ओर नान्दोमुख । १२००० फुट ऊंची स्थान पर गेहूं की उपजको देखा था। महागोधूम इस देशमे बड़ गोधूमा नामसे प्रसिद्ध है, यह स्पिति उपत्यकाके लाड़ा और लदङ्ग नामक स्थानमें पश्चिम देशसे लाया जाता है और माधुलोसे कुछ बड़ा १३००० फीट ऊंची जगह पर एवं सिन्धुनदोके निकट रहता है। माधुली गाध म मध्यदेश वा प्रयाग प्रदेशके वर्ती उपत्यकाकं मध्य उगमी और चिमरा नामक स्थान पश्चिमसे यहां लाया जाता है। नान्दोमुख गोध म बल- में ११०००से १२००० फोट ची भूमि पर गेहं उपजाया होन और दीर्घावतिके होते हैं। जाता है। युक्त प्रदेशमें एक तरहका मफेद गह होता है महागोध मका गुण-मधुर रम, शोतवोय, वातघ्न, जिसको 'दुग्ध गोधम, कहते हैं। शत नदोके दोनों पित्तनाशक, बलकारक, स्निग्ध, भग्नमन्धानकारक, धातु उपकूल पर एवं उनके किनारेकी जलमित वालुकामय वृद्धिकर, रुचिकारक, वण प्रसादक, व्रणका हितकर, भूमि पर इस तरह के गेलु उपजते देखे गये हैं। पन्जाब निकर और शरीरका स्थिरतामम्पादक है। नया गेह प्रदेशक गह में बाल होते हैं और उमक अाटेकी रोटी ग्वानमे कफको वृद्धि होती है, किन्तु पराना हान पर लाल और हल्दो रंगको होती है। मुलतानकै गहमें वान्न उममें कफवृद्धि नहीं होती। मधुली गोधमका गुगण- नहीं होते। अयोध्या प्रदेशमं श्वत मोरिलवा. बालहोन, शोतवाये, म्रिग्ध, पि.तनाशक, मधुर रम, लघुपाक, शुक्र- रामोदवा और लालिया ये चार प्रकारक गोधम उपजते वर्डक, शरीरका उपचयकारक और सुपथ्य है। हैं। मम्बलपुर जिलेमें भी गेहको खेती बहुत होती है। नान्दोमुख गोध मका गुण मधुलो गाथम के मदृश । जब्बलपुर, नरसिंहपुर, होमेङ्गाबाद, मन्द्राज प्रदेश और ( भावनाश पूर्व खगड १ भाग) ब्रह्मराज्यमें प्रचर परिमाणमें गेहूं की फमल होती है। गोधूमक ( सं० पु. ) गोध म इव कं शिरो यस्य, बहुव्री० । बम्बई प्रदेशका गेहू काठियावाड जिलक गह से कुछ मर्पविशेष, गहुअन नामक माँव। ( मश्रुतं ) सफेद और भागे होता है, इमलिये उमम मूजी और मैदा गोध मचा ( सं० ली० ) गोध मस्य चूर्ण, ६ तत् । चों- अधिक प्रस्तुत होता है। कत गोध म, मैदा, आटा। परीक्षा कर देखा गया है कि भारतवर्षका गेहं पृथ्वो- गोध मज ( मं० पु० ) तवक्षोर, पायम, तमम, खोर । के समस्त स्थानोंक गह से उत्कृष्ट है । इमे कारण भारत. गोध मफल ( मं० लो०) गोध म, गेह । वर्ष से प्रतिवर्ष मात करोड रुपये के गेळ विलायत भेजे गोध ममगड ( सं० पु. लो० ) गोध मक्कत मगड, गेहूका जाते हैं। बना मगड़ । चीन देशमें भी गहं का प्रचुर व्यवहार देखा जाता है। गोध ममम्भव (सलो . ) सम्भवत्यस्मात् मं भू अपादाने यूरोपोय चिकित्सकके मतसे इसका गुण-स्निग्ध और अप गोध म: मम्भवो यस्य, बहुधा । मैदाको बनो खट्टी बलकारक है। रक्तपित्त रोग और दैहिक प्रदाहमें इम- का प्रलेप विशेष निग्धकर है। विष खान पर मदा और गोध मसार ( सं० पु. ) गोध मस्य मारः, ६-तत्। गोध म- जलके माथ पारा; ताम्र, दस्ता, रूपा, लौह और अयो. का सारांश, गेहका निर्याम । प्रस्तुत प्रणाली यो डाइन मिला कर मेवन करनेसे विषका प्रतिकार होता है-गह को अच्छी तरह साफ कर ऊखलमें चर्ण करते हैं। मध्या समय पहले इस चर्गाको मट्टोकपात्रमें रख है। क्षत स्थान पर में देको पुलटिम लाभ दायक है। वैद्यकशास्त्र मतसे मका गुण-सिग्ध, मधर, वात, कर जलसे भर देते हैं। दूमरे दिन मबेरे जलको फेक पिप्स और दाहनाशक, गुरुपाक, श्लेष्मा, मत्तता, मल, रुचि ता, मल, चि कर उसे सुखा लेते, रमीको गोध ममार कहते हैं। पौर वीर्यकारक । (राजनि.) वहण, जीवनका हितकारक गोध मक्षोरिका ( सं० स्त्री० ) गेहको खोर । शीतवीर्य, भग्नसन्धान और धैर्यकारी एव सारक है। गेध माद्यत ( सं० लो०) रमायनाधिकार। इसकी (ज) भावप्रकाशमें लिखा है कि गोध्म तीन प्रकार प्रस्तुत प्रणाली इस तरह है-वृत ४ शराब, दुग्ध १६.श. लप्सी ।