पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५८७

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गोमतौशिला-गामहिषदा ५८२ बेग बढ़ जाता है। पावतोय त्रिपुरा राज्यमें इस नदोके हैं। (काशीखण)। ऐमा प्रवाद है कि गोमयमे वृश्चिक उत्तरकूल पर काशोगञ्ज, पिथरागञ्ज, और मैलाकचेरल होता है। (त्रि.)२ गोस्वरूप । नामक तीन शाखाएं हैं। नदीकै कुन्न पर कुमिल्ला, गोमयच्छत्र ( म० लो० ) गोमयजात छत्रमिव । करक, जाफरगञ्ज और पाँचपुखुरिया ये तीन प्रधान नगर हैं। कुम्भी, कुकुरमाता । कमिला, कम्पनीगञ्ज और नुरपुरमें नदी पार होने के लिए गोमयविका ( म० स्त्री० ) गोमये गोमयप्रचुरस्थाने नौकादि हैं। जाता छविकव। गोमयच्छत्र, छातके आकारका एक ६ गोरोचना। कोटा गाछ जो प्रायः गोमयको ठेर पर निकला करता। गोमतोशिला ( मं० स्त्रो.) हिमालयको वह चट्टान जिम गोमयतेल ( म० की.) नेत्रगेगका तेल। पर पहुंच कर अर्जुनका शरीर गल गया था। गोमयप्रिय (म' को०) गोमय प्रियमस्य उत्पादकत्वात् । गोमत्स्य (मं० पु०) गोरिव म्यून्नो मत्स्यः । सुश्रुतकै अनुमार १ भ टण, एक तरहको सुगन्धि धाम । २ बालरु, सुगन्ध एक तरह की मछली । वाला। गोमन्त ( मं. पु. ) एक पब तका नाम । इसके ऊपर एक गोमयाद्यत ( म.ली.) नेत्ररोगका वृत, पोखको पोठ स्थान है जिसको अधि ठात्री देवोका नाम गोमतो है। बामागेका घो। इसकी प्रस्तुत प्रणाली इम तरह है- मामतो, गांचा, जरासम पीर देवा। छागत ४ शराव, गोमयरम ४ शराव, काकोली, सोर- गोमन्द ( मं० पु० ) पर्वतविशेष । यह क्रौञ्चद्वीपमें अवस्थित काकोली, जीवक, ऋषभक, मुहपर्णी, माषाणा, मैदा, है, कमल नोचन मर्वदा इसी पर्वत पर वाम करते हैं। महामदा, गुलुञ्च, कर्क टशृङ्गी, वंशलोचन, पदमका, (भारत भौ ० १९१०) पुगडरिया, ऋद्धि, वृद्धि, किशमिश, जीवन्ती और यष्टि- गोमय ( मं० पु. ली. ) गो: पुगेषं गो-मयट । १ गोको मधु इन मब १ शराव च गा मिलाते हैं । इसके बाद विष्ठा, गोबर । इस का गुण गा शब्दमें देस्यो । स्मृतिका मत है कि उममें १६ शराव जल डाल दिया जाता है। वन्ध्या, रोगपीड़िता और नवप्रमता एवं वृद्रा गौका गोमय गोमयोत्था (म० स्त्री०) गोमयादुत्तिष्ठति उद-स्था-क टाप । ग्रहण करना उचित नहीं है। पुगणमें लिखा है कि एक १ गोमयजात कोटविशेष, एक तरहका कोडा जो समय ममम्त गौन मिल कर आपममें इस बातका परा- गोबरमे उत्पन्न होता है, गोबरीला, पर्दभी। मर्श किया कि उन मबकी उन्नतिका क्या उपाय है। गोमयोद्भव ( म० वि० ) गोमय उद्भव उत्पत्तिस्थान यस्य अनेक वादानुवाद के बाद स्थिर हुवा कि जो मनुषा उनके बहुवी०।१ गोमयजात, जो गोबरसे.उत्पन्न हो। (प.) गोबर तथा मूत्रमे नान करेगा उमीका शगेर पवित्र २ पारग्वध, अमलताम । होगा. ऐसा होनसे ही उनकी उवति होगी अन्यथा नहीं। गोमर्द ( म०प०) मारस पक्षी। दूमके लिये समस्त गोने एक शत वर्ष कठोर तपस्या की। गोमर (हि.पु० ) वचर कमाई । प्रजापतिने तपस्यासे संतुष्ट हो कर बही वर दिया जो गोमरी ( म० स्त्री० ) वार्ताकविशेष, रामबैगन । उनका अभीष्ट था। उमो ममयमे गोका गोमय और मूत्र गोमल ( म० पु.) १ गोमय, गोबर । २ पंजाबके पश्चिम पवित्र माना जाता है। गोमय हारा देवदेवियों के अभिः सुलेमान पहाडमे निम्मत एक नदी। ऋग्वेदमें यही पंक करनका विधान है। महाभारत के दानधम में लिखा नदी गोमती नाम वर्णित है। इम नदीक निकटही है कि एक ममय गौन लक्ष्मीजीमे कहा कि "हम सब गोमल नामका गिरिसकट पजाबमे अफगानिस्तान तक आपका सम्मान करेंगे और आप हमार गोमय और गया है। मूत्रमें वास कोजिए।" लक्ष्मो उनकी प्रार्थनाको अनि- गोमहिषदा ( म० स्त्रो० ) गाः महिषांश्च ददाति भक्तभ्यः कार कर तभीमे गोमूत्र पोर गोमयमें वास करने लगी। गो-महिष दा-क-टाप । कात्ति केयको अनुगामिनी कोई कोई इन्हें साक्षात् यमुना कह कर वर्णन करते माटकाविशेष । val VI. 147