पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष षष्ठ भाग.djvu/५७३

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पादित्य-गोपाल पमन्द न पाया। इमोसे देवदत्त यशोधाराका चिरशत्रु जातिके बहुतसे मनुथ वाम करते हैं । कहीं कहीं ये हो गये एवं २१ वर्ष तक उसका प्राणनाश करनेकी चेष्टा गोम' नाममे परिचित हैं। करते रहे। एक समय देवदत्तने यशोधाराको पुष्करिणी- ये देखने में कृष्णकाय, याकति मधाम, मुख लम्बा, में निव किया। ऐमा करने पर भी यशोधारा मरी नहीं गाल चिपटा तथा गला कोटा और लम्बा है। मबर्क माथ- एव पुष्करिणीस्थित मराज कटक सुरक्षित हो कर में चोटी, अल्प दाढ़ी ओर म छ रहते हैं। माधारणत: पिटमदन नाई गई। उक्त पुष्करिणो यशोधाराके दूभरे ये दाल और रोटी खाते और मत्स्य, काग, भेडा, खरगोम, नाम 'गोपातीर्थ' से बहुत समय तक प्रसिद्ध थी। मुरगाका शिकार कर उनका मांभ भी खाते हैं । माद- गोपादित्य ( म० पु०)१ काश्मोरके एक गजाका नाम। कताके लिए ये ताड़ी, गांजा और तम्बाकू मेवन करत। ईके ४०० वर्ष पहले गे काश्मोग्के मिंशामन पर प्रारो- ये धातु एवं नाना प्रकारके वृक्षांमे औषध प्रस्तुत करना हण हए थे। ये अतिमशृङ्खलासे राज्यशामन एवं ब्राह्म जानते हैं। स्त्रियां तथा छोटे छोटे लड़कं घरमें रह एक गोंको बहुत भूमिदान किया करते थे । २ सुभाषितावली. तरहको चटाई तैयार करते और बाजार जा विक्रय किया धृत एक प्राचीन कवि। करते हैं। गोपाध्यक्ष (म० पु० ) गोपानामाधाक्षः, ६-तत् । गोपाल ये ब्राह्मणों के प्रति विशेष श्रद्धा भक्ति रखते एवं विवा- कोंके कर्ता, गोपन, श्रीक्षण। ( महाभारत ४।३५ १०) हादि कर्म में उन्हें पोरोहित्यम नियक्त करते हैं। मिर्फ गोपानमो ( म० स्त्री० ) गां जलं पाति निवारयति गोपा- विवाहमें हो ये जातिभोज देते हैं । य हिन्दू देव देदो- नं छाट मेति प्राप्नोति गोपान- मिड-डीप । १ वड़भो, को पूजा करते, इसके अलावा मारुतो, व्यङ्गोवा, नीवा घरको वातका निम्रस्थ वक काष्ठ । २ कणि का, विष्क- और यलमादेवीको मूर्ति अपने अपने घरमं रग्ब पूजते हैं। भि काष्ठ। ३ वक्रीभूत धारणकाष्ठ, घरमें लगानकों पुत्र प्रसूत होने पर ये पचिव द वोको पूजा, एव टेढ़ी धरन। नवम दिनको पुत्रका नामकरण करते हैं। ये सबको गोपानोय ( म० को ) गोमूत्र, गायका मत । गाड़ते और ५ ममाह काल अशीच मानते हैं। लिगायत गोपायक (म० वि०) गोपायति गुप प्राय रावल । रक्षक, पुरोहित आ शङ्ख बजाकर इनका अशीच दूर करते हैं। बचानेवाला ४ विणका अवतार वशेष नन्दनन्दन श्रीकण पद्मपु. गोपायन ( म.ली.) गुप-आय भावल्य ट। १ गोपन, राणमें लिखा है कि ये मवदा वालकम त्ति धारण करते छिपाव। २ रक्षक। हैं। इनके शरीरका वर्ग नवोन जन्नधरके जमा है। गोपायित (म त्रि० ) गुप आय कम णि त । १ रक्षित। गोपकन्या और गोपवालक मवंदा इन्हें वेष्टन किया (क्ली० ) गुप-आय भावे क्त। २ गोपन, विपाव । रहते हैं। ये गोपवेश परिधान करते । इनका मुव हमेशा गोपायिट ( म० त्रि०) गुप आय-टच । रक्षक। __ मृदु मधुर हास्ययुक्त दोख पड़ता है। ये वृन्दावनके गोपाल (म० पु.) गां भूमि पशविशेष पालयति पालि- कदम्वम लमें रहना बहुत पमन्द करते हैं। शवशाक्तको अण, उपस। १ राजा । २ गोरक्षक, गोपालक, नाई बहुतसे इन वालगोपालको उपामना करते हैं। "ग्वाला। ३ संकोण जातिविशेष । पराशरके मतानुसार जगदोश तर्कालङ्कार पार गदाधर भट्टाचार्य प्रभृति नैया. क्षत्रियके औरस और शूद्रकन्याके गर्भसे गोपाल को उत्पत्त यिक ग्रन्थकारने ग्रन्थारम्भम इष्टदेव वान गोपालको है। ब्राह्मणों के लिए इसका अव भोज्य कहा गया है।* नमस्कार किया है। तन्त्रमारमें इनको उपामनामगालो दाक्षिणात्यक मन्द्राज और वेलगांव जिलेमें गोपाल लिखो हुई हैं। गोपालका धान- • "विधान शूद्रकाशं समुत्पन्नावः सुतः । "अश्या या नौलाबजचिसयभीनमेवोऽबनो.. मोपाल तियो मौका वि स गया।" (पायर) . ली बापटप्रस्थलबबितर विहिपोका मकुन्द . .